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शगल ....

>> Friday, 1 February 2013




मेरे मन के समंदर में
तुमने उछाल दिये 
बस यूं ही 
कुछ शब्दों के पत्थर 
और देखते रहे 
उनसे बने घेरे 
जो भावनाओं की लहरों पर 
बन औ  बिगड़ रहे थे 
शायद  तुम्हारा तो मात्र 
यह शगल रहा था 
पर वो पत्थर 
समंदर में कहीं 
गहरा गड़ा  था ।


 

50 comments:

रश्मि प्रभा... Fri Feb 01, 12:23:00 pm  

भावनाओं का गोताखोर ही जान सकता है तुम्हारे शगल का नुकीलापन .......... तुम्हारे पास तो सिर्फ पत्थर है

Anita Lalit (अनिता ललित ) Fri Feb 01, 12:31:00 pm  

बहुत सुंदर दीदी !
मन के समंदर में फेंके गये ऐसे पत्थर ... हमेशा ही चुभते रहते हैं....! गुज़रते वक़्त के साथ....पत्थर और भी गहरे धंसते जाते हैं...
~सादर!!!

ANULATA RAJ NAIR Fri Feb 01, 12:38:00 pm  

हमारी जान पर बन आयी...और उनकी अदा ठहरी....

बहुत सुन्दर रचना दी..

सादर
अनु

Sadhana Vaid Fri Feb 01, 12:40:00 pm  

बतौर शगल ये जो पत्थर समंदर में फेंक दिए जाते हैं सागर के सीने को कितना छलनी कर जाते हैं यह सागर की सतह पर उठने वाली तरंगों को देख आनंदित होने वाले कभी समझ ही नहीं सकते ! बहुत ही सुन्दर रचना !

पी.सी.गोदियाल "परचेत" Fri Feb 01, 01:05:00 pm  

बहुत सुन्दर , किसी का शौक किसी के लिए गहरे अर्थ समेटे होता है।

डॉ टी एस दराल Fri Feb 01, 01:18:00 pm  

शब्द के पत्थर मन के समंदर में गहरा प्रभाव छोड़ते हैं।
सुन्दर अभिव्यक्ति।

विभा रानी श्रीवास्तव Fri Feb 01, 01:40:00 pm  

शायद तुम्हारा तो मात्र
यह शगल रहा था
पर वो पत्थर
समंदर में कहीं
गहरा गड़ा था ।
सच्चाई बहुत आसानी से बयाँ हो गई .... !!

Unknown Fri Feb 01, 02:12:00 pm  

Atti uttam ..Badhai
meri nayi rachna .. "Ye fitrat nhi humari" pe swagat hai apka

प्रवीण पाण्डेय Fri Feb 01, 02:20:00 pm  

जल के अन्दर पत्थर भी हल्का हो जाता है, गति भी बदल जाती है..

shikha varshney Fri Feb 01, 02:24:00 pm  

उन्होंने तो कर लिया अपना शौक पूरा, अब आगे क्या हो रहा है उससे उन्हें क्या :)
फिर से कम शब्दों में गहरी बात, बहुत सुन्दर.

Yashwant R. B. Mathur Fri Feb 01, 02:31:00 pm  

बहुत बढ़िया आंटी


सादर

रेखा श्रीवास्तव Fri Feb 01, 02:37:00 pm  

बहुत आसन है पत्थर उठाना और उठा कर फ़ेंक देना ,
किस जगह लगा और घाव कैसे हुए इसकी फिक्र किसे ?

बहुत सुन्दर बात कही और जो दिल को छू गयी।

Pallavi saxena Fri Feb 01, 03:35:00 pm  

आज आपकी यह रचना पढ़कर यह गीत याद आया "दिल के टूटके टुकड़े कर के मुस्कुराकर चल दिये" :)
लेकिन मन पर शब्दों का आघात शरीर पर पत्थरों से लगे हुए जख्मों की तुलना में कहीं ज्यादा गहरा होता है। बहुत ही उम्दा एवं भावनात्मक प्रस्तुति....

सदा Fri Feb 01, 03:52:00 pm  

शायद तुम्हारा तो मात्र
यह शगल रहा था
पर वो पत्थर
समंदर में कहीं
गहरा गड़ा था ।
कहीं गहरे उतरते ये शब्‍द भी ...
सादर

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया Fri Feb 01, 06:36:00 pm  

मन के समंदर में फेंके गये पत्थर हमेशा दिल में चुभते रहते हैं....

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया Fri Feb 01, 06:36:00 pm  

मन के समंदर में फेंके गये पत्थर हमेशा दिल में चुभते रहते हैं....

RECENT POST शहीदों की याद में,

मेरा मन पंछी सा Fri Feb 01, 06:37:00 pm  

शब्दों के पत्थर मन पर गहरी चोट करते है..
बेहद भावपूर्ण रचना...

रचना दीक्षित Fri Feb 01, 08:33:00 pm  

किसी का शगल दूसरों के लिये कितना परेशानी भरा हो सकता है यह सचमुच सोचने का विषय है.

सुंदर प्रस्तुति.

Anupama Tripathi Fri Feb 01, 08:34:00 pm  

बहुत गहन लिखा है आज आपने .....गहरे ही उतर गया ....

बहुत सुंदर ....

Suman Fri Feb 01, 09:27:00 pm  

बहुत सुन्दर रचना ...

अशोक सलूजा Fri Feb 01, 09:42:00 pm  

महसूस करने वालों की उम्र गुज़र जाती है ....
शब्दों के घाव से ???

संध्या शर्मा Fri Feb 01, 10:39:00 pm  

मन के समंदर में गहरे उतरते शब्द... गहन अभिव्यक्ति के लिए आपका आभार

प्रतिभा सक्सेना Fri Feb 01, 11:15:00 pm  

शब्द,कोई शगल नहीं उन का प्रभाव गहरा असर करता है !

डॉ. मोनिका शर्मा Fri Feb 01, 11:46:00 pm  

विचारणीय..... सच ही है शब्द बस कहने भर को नहीं ना होते

virendra sharma Sat Feb 02, 12:02:00 am  

अभिनव रूपकात्मक तत्व है यह रचना .आभार आपकी टिपण्णी का .

Amrita Tanmay Sat Feb 02, 09:50:00 am  

ये पत्थर फेंकने वाले सोचते कहाँ हैं ? दर्द की लहरों से खेलते हैं बस...

Maheshwari kaneri Sat Feb 02, 07:04:00 pm  

बहद भावपूर्ण सुन्दर रचना...आभार

विभूति" Sat Feb 02, 08:57:00 pm  

भावों से नाजुक शब्‍द...

दिगम्बर नासवा Sun Feb 03, 04:51:00 pm  

ऐसे पत्थर अक्सर गधे रहते हैं अंदर तक ... भावनाएं हिलोरे लेती रहती हैं पर अंत नहीं नज़र आता ... गहरे भाव लिए पंक्तियाँ ...

ताऊ रामपुरिया Sun Feb 03, 06:01:00 pm  

बहुत गहरी और अर्थपूर्ण रचना, शुभकामनाएं.

रामराम.

वाणी गीत Mon Feb 04, 10:12:00 am  

वह पत्थर समन्दर में कही गहरा गडा था ...
यह पत्थर फेंकने वाले कहाँ जाने !

Jeevan Pushp Mon Feb 04, 04:28:00 pm  

सुन्दर भाव !
आभार !

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) Tue Feb 05, 09:03:00 am  

निर्मम दुनियाँ से सदा , चाहा था वैराग्य
पत्थर सहराने लगा, हँसकर अपना भाग्य
हँसकर अपना भाग्य , समुंदर की गहराई
नीरव बिल्कुल शांत, अहा कितनी सुखदाई
दिन में है आराम ,रात हर इक है पूनम
सागर कितना शांत,और दुनियाँ है निर्मम ||


कुमार राधारमण Wed Feb 06, 01:01:00 pm  
This comment has been removed by the author.
कुमार राधारमण Wed Feb 06, 01:03:00 pm  

दिखता है पत्थर,या कि
कंकड़ से बनता घेरा
समुद्र की यात्रा
कब किसने देखी!

Satish Saxena Sun Feb 10, 09:40:00 pm  

कष्ट होता है ...
शुभकामनायें आपको !

virendra sharma Sat Feb 16, 01:44:00 pm  



हाँ वह पथ्थर समुन्दर में कहीं गहरे गढ़ा था .शुक्रिया आपकी टिपण्णी का .

Surendra shukla" Bhramar"5 Sat Feb 16, 07:14:00 pm  

आदरणीया संगीता जी बहुत सुन्दर ..मन का समुन्दर सब वापस ही नहीं कर देता बहुत कुछ सहेजे रहता है ....यादें रह जाती हैं ..सुन्दर ..जय श्री राधे

भ्रमर 5
प्रतापगढ़ साहित्य प्रेमी मंच

Dr.NISHA MAHARANA Sat Feb 16, 10:18:00 pm  

bahut hi gahri abhiwayakti ......

Bhola-Krishna Tue Feb 19, 12:46:00 am  

संगीता जी ,
अति सार्थक अभिव्यक्ति ! जिंदगी के समन्दर में --------

गहरी गडी शिला की पीर
असहबीय, अतिशय गंभीर
-----------------
केवल भुक्त भोगी ही आँक सकता है उसकी गहनता !
स्नेहिल आशीर्वाद स्वीकारें

Dr (Miss) Sharad Singh Wed Feb 20, 11:44:00 am  

सार्थक सुन्दर रचना....

Unknown Tue Mar 05, 11:18:00 am  

आह!!! छोटी किन्तु बहुत गहरी रचना ....मन में वो पथ्हर कही गहरे गड गया ...बहुत प्रभावकारी अभ्व्यक्ति।।
मेरे ब्लॉग पर भी आपका स्वागत है

मेरा लिखा एवं गाया हुआ पहला भजन ..आपकी प्रतिक्रिया चाहती हूँ ब्लॉग पर आपका स्वागत है

Os ki boond: गिरधर से पयोधर...


Anju Thu Mar 14, 03:20:00 pm  

बहुत गहरी ......उतनी जितना गहरा गड़ा था पत्थर समंदर में .....

Anonymous Sun Jun 23, 01:04:00 pm  

बहुत सुन्दर रचना

Anonymous Thu Sept 19, 02:24:00 am  

तुम्हारा तो मात्र
यह शगल रहा था
पर वो पत्थर
समंदर में कहीं
गहरा गड़ा था..... kaun sochta hai itna .....

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