नीलकंठ
>> Sunday, 23 January 2011
संवादों का आज
मंथन कर लिया
उसमें से निकला
हलाहल पी लिया .
तुमने नीलकंठ तो देखा है न ?
अब मुझे लोग नील कंठ कहते हैं .
खलिश होती है तो यूँ ही बयां होती है , हर शेर जैसे सीप से निकला हुआ मोती है
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85 comments:
भावनाओं को बहुत खूबसूरती से पिरोया है
सम्वादों के मंथन यदि स्वस्थ मंथन न हो तो सदा हलाहल ही निकलता है उससे...छोटी किंतु गहरे अर्थों वाली कविता,संगीता दी!
sangeeta ji gagar mein sagar bhar diya aapne!
bahut khoob
Bahut sundar abhivaykti
gazab ka likhti hain aap.wah.
ओह तो बन ही गईं नीलकंठ...
४ पंक्तियों में सागर भर दिया भावनाओं का.
बहुत सुन्दर.
संवादों का आज
मंथन कर लिया
उसमें से निकला
हलाहल पी लिया .
तुमने नीलकंठ तो देखा है न ?
अब मुझे लोग नील कंठ कहते हैं .
सब कुछ तो आपने कह दिया अब कहने को क्या बचा? एक बेहद गहन और उत्तम अभिव्यक्ति।
हर मंथन में हलाहल निकलता है।
A storehouse of meaning in brief. GooooD. Visit my blog. U have not come since long.
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भावमय अच्छी प्रस्तुति.
ओह ! गहन भाव, आभार
muk dekh rahi neel kanth
awruddh gala mera bhi kam neela nahin sakhe
मंथन से निकले विष को पीने वाला दूसरों की भलाई ही करता है।
सुन्दर रचना!
जो जहर पीता है वो देव और
जो गरल पान करता है
वह महादेव कहलाता है!
नीलकण्ठ इसका प्रमाण दे रहा है!
गज़ब की अभिव्यक्ति.आपकी कलम को सलाम.
shaayad ye har bhale aadamee kee niyati hai ,halaahal pee kar neelkanth ban jaana aur samvadon kaa halahal to antaraatma tak pahunchta hai
badhiya prastuti !
bahut khub
गूढ ! असली नीलकंठ तो कहीं तान-निंद्रा सो रहा है!
wah wah ...kya baat hai..
वाह! बेहतरीन अभिव्यक्ति, बहुत ही खूबसूरत!
तुमने नीलकंठ तो देखा है ना...... बहुत सुंदर संगीता जी ....
सुन्दर क्षणिका !
very nice.aapko republic day ki badhai
गहरे अर्थ वाली कविता... नीलकंठ को पुनः परिभाषित कर दिया..
पी लिया हलाहल एक घूँट में पूरा और नीलकंठ कहलाये ..
की जहर दूसरों तक ना पहुंचे ...
बहुत भावपूर्ण !
बहुत प्यारी क्षणिका है ! स्वयं को नीलकंठ बना कर आपने औरों के जीवन को कितना सुधामय कर दिया इसे यदि कोई समझ पाए तो आपका नीलकंठ बनना
सार्थक हो जाता है ! बहुत सुन्दर !
bahut khoob
वाह संगीता जी....कितने कम शब्दों में कितना दर्द बयां कर दिया है......बेहतरीन|
बहुत खूब कहा है आपने इन पंक्तियों में ।
भावपूर्ण रचना।
बेहतरीन अभिव्यक्ति, बहुत ही खूबसूरत!
nice one masi
संवेदना के गहरे भाव !
सिर्फ चार लाइनों में तुमने पूरा का पूरा दर्शन उतर दिया. बहुत गहरी बात कही है. दिल को छू लेने के लिए चंद शब्द ही बहुत होते हैं.
....मार्मिक, हृदयस्पर्शी पंक्तियां हैं। अच्छी कविता के लिये बधाई स्वीकारें।
संगीता जी , भावों को बहुत ही बखूबी अभिव्यक्ति किया है आपने .... सुंदर प्रस्तुति.
sundar prastuti ,bemisaal ,gantantra divas ki badhai .
गहरे भाव !
क्या बात है ...बहुत ही सुन्दर
आप को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभ कामनाएं!
गणतंत्र दिवस की बधाई एवं शुभकामनायें.
very nice..Happy Republic Day..गणतंत्र िदवस की हार्दिक बधाई..
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बहुत गहरी अनुभूति लिए सुन्दर क्षणिका |
Nihayat sundar alfaaz!
Gantantr diwaskee dheron shubhkamnayen!
गहरे अर्थ वाली कविता..
गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाइयाँ !!
Happy Republic Day.........Jai HIND
सही कहा आपने...जो साज़ पे गुज़रती है, वो कौन देख पाता है...उम्दा रचना.
कम शब्दों में गहरी बात कैसे कहते है ये कोई आपसे सीखे .... निशब्द हूँ मैं .... बहुत बहुत और बहुत खूबसूरत
तुमने नीलकंठ तो देखा है ना...... बहुत सुंदर
bahut sundar
वाह आपने तो एक तरह के त्याग की बात कर दी संवादों से निकले हलाहल ... वाह .. नीलकंठ का त्याग .. बहुत सुन्दर रचना ...
km shabdoN meiN
bahut prabhaavshali baat
waah !!
"नीलकंठ वरदानी हमको पार करो तो जाने..."
हमारे यहाँ मान्यता है की नीलकंठ को देख ये बोलने से उसे गुण आपके अन्दर आ जाते हैं और और वो आपको अच्छा आशीर्वाद देते हैं क्योंकि वो ईश्वर के सबसे करीब माने जाते हैं... अधिकतर ये बचपन में ही बच्चे को सिखाई जाते है... आपकी रचना पढ़ ये पंक्ति याद आ गयी... सच कहूँ तो आप भी तो नीलकंठ ही हैं... जिसके बहुत से गुण हमें अपने आप में उतारने हैं...
sundar rachana
chotisi rachna par bahut arthpurn lagi.......bahut sunder.
नीलकंठ हो लिए आप तो,विष हम सबके जिम्मे क्या?
शंकरजी के संरक्षण में ,कोई कष्ट नहीं है क्या ?
छोटी रचना में भाव गहरा है !
चाँद शब्दों में लिखी गहरी रचना ... सच है कड़वे शब्दों को पीने वाला भी तो नील कंठ ही है ...
बहुत कमाल की हैं ये चंद पंक्तियां....छोटी मगर सार लिए
आपकी कलम को सलाम
हलाहल को पी कर ...सबमें अमृत बाँट दिया .आपका काम कुछ ऐसा ही है ... सुन्दर रचना .
शब्दों का हलाहल पीना ही तो सबसे मुश्किल काम है !
chand lafzo me bhar di sari kaaynat ..... waah !!!
in chhah lino me aapne pura bhaw hi bhar diya..!
badhai
chhoti magar behad umda. achchha i rachna.
अफसोस कि आजकल नीलकंठ बहुत कम दिखते हैं, सच है हलाहल पीना आसान काम नहीं....
ohh...very deep and intense!
आप कितनी खूबसुरती से इतनी गहरी बातें चंद शब्दों मे कह देती है । वाकई अनुसरणीय है आपकी रचना ।
bahut dino se sangeeta di aap dikh nahi rahi thin...:)
kya baat hai, bahut khoob
bahut sundar...
''मिलिए रेखाओं के अप्रतिम जादूगर से.....'
भावनाओं को बहुत खूबसूरती से पिरोया है|
behad sundar..............
नीलकंठ तो बाबा बम भोले का भी नाम है
संगीता दीदी,,, नीलकंठ देखा है....
बेहतरीन अभिव्यक्ति.गहरे भाव.
sangeeta ji aapne meri rachnaoo ko charcha manch pr kayi baar jgah di hai...lekin mai charchamanch site pr aapko aabhar vyakt nahi kr payi...pta nahi kyo jab bhi mai charchamanch ki site kholne ki koshish krti hu...site khul hi nahi pati..is samasya ka smadhan krne ki koshish kr rhi hu...lekin fir bhi agar charchamanch pr mera aabhar na aaye to site ki samasya hi hogi...
dhanybad
man ke gahare bhawon ko baya kartee bahut hee sundar rachna
namaste,
aap jese guroojano ke kadamo par chalte huye blog parivaar main kadam rakha hai , sayoug aur utsahvardhan ki asha karoongi.
krati-fourthpillar.blogspot.com
आज समाज को ऐसे ही नीलकंठ की जरुरत है. अर्थभरी रचना
संगीताजी, पुस्तक विमोचन के लिए हार्दिक बधाई !
संगीता जी, पुस्तक प्रकाशित होने के अवसर पर ढेरों बधाइयाँ !
मैं पिछले कुछ महीनों से ज़रूरी काम में व्यस्त थी इसलिए आपके ब्लॉग पर नहीं आ सकी!
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने! बढ़िया लगा!
sanshipt aur saargarbhit ,,bahut khub!
आप नील कंठ बनकर इतनी गहरी बात कह देते है.. अब और क्या कहे?
आदरणीया संगीता जी इसी बहाने आप ने हमारे न दिखने वाले नीलकंठ को भी दिखा दिया जिसे हम केवल दशहरा में देखने को खोजते थे -और एक गंभीर बात भी कह दी ये सच है अगर पचा सको इस हलाहल को तो नीलकंठ से तो हो ही जाओ ..
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५
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