दंश ..
>> Tuesday, 24 May 2011
जब भी
मन के
चूल्हे पर
मैंने
ख़्वाबों क़ी
रोटी सेकी
तेरे
दंश भरे
अंगारों ने
उसे जला डाला ...
खलिश होती है तो यूँ ही बयां होती है , हर शेर जैसे सीप से निकला हुआ मोती है
© Free Blogger Templates Wild Birds by Ourblogtemplates.com 2008
Back to TOP
93 comments:
उफ़ उफ़ ...ये तस्वीर वाली रोटी पतिदेव देखते तो कहते - एक काम ठीक से नहीं कर सकतीं रोटी भी जला दी ..
अब उन्हें कौन बताये कि उन्हीं कि वजह से जलती है :)
मजाक के अलावा दी! क्या गज़ब पंक्तियाँ लिखीं है. मन के छाले जैसे रोटी पर उभर आये हैं. .
दंश,तंज के अंगारे कलेजा जला डालते हैं...ख़्वाबों कि रोटी तो अदना सी चीज़ है..............आपने बहुत अच्छा लिखा है........गज़ब कि बात समेत ली है ७-८ पंक्तियों में..........साधुवाद
बहुत सुन्दर क्षणिका ... मन की रोटी सेंकी भी अंगारों के सहारे जाती है !
बहुत सुंदर और गहन अभिव्यक्ति लिए हैं पंक्तियाँ.....
bhut hi saargarbhit abhivakti..
bahut gahan bhaav liye hua hai aapka yeh sher...really..nice...umda.
बहुत ही सुन्दर भाव लिए मन की आवाज़ , आपने मोती समेत लिए बिखरे जो पड़े थे बधाई
बड़ा गहरा।
तेरे
दंश भरे
अंगारों ने
उसे जला डाला ...
वाह! संगीता जी बहुत खूब लिखा है आपने! मन की गहराई को बहुत ही सुन्दरता से प्रस्तुत किया है! आपकी लेखनी को सलाम!
dekhan me chhotan ghaw gambheer
waah!....kuchh hi shabdo me itni badi baat...
kunwar ji,
वाह ! वाह ! वाह ! रोटी पर उभरे काले दाग मानो सच मुंच के छाले हो... क्या बात कही है संगीता दी..
बहुत सही ,एकदम सटीक !
इन दंशों के कारण ही कुछ कर गुजरने का जज्बा भी आता है। इसलिए दंश अच्छे भी है। जैसे दाग अच्छे हैं।
ख़्वाबों का यह हश्र मन को भी जला देता है ! चंद शब्दों में मन की गहनतम अनुभूतियों को इतनी सशक्त अभिव्यक्ति देने में आपको महारत हासिल है संगीता जी ! रचना की जितनी सराहना की जाये कम ही होगी ! बहुत ही सुन्दर ! बधाई एवं आभार !
जब भी
मन के
चूल्हे पर
मैंने
ख़्वाबों क़ी
रोटी सेकी
तेरे
दंश भरे
अंगारों ने
उसे जला डाला ..
दर्द का चित्रण इससे बेहतर कैसे हो सकता है।
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ...बेहतरीन रचना है यह आपकी
तेरे
दंश भरे
अंगारों ने
उसे जला डाला ...
वाह...बहुत भावपूर्ण...बहुत सुन्दर...
ख्वाबों की रोटी और अंगारों के दंश ने सब कुछ बयां कर दिया है...
हार्दिक बधाई.
:)
jab baat dil par lagti hai to esaa hi mehsoos hota hai
kyaa baat hai!...roti par bhi bahut kuchh likha jaa sakta hai....behtareen!
बहुत अच्छी रचना है। वधाई
ये रोटी भी न कहाँ कहाँ पहुच जाती है ? पेट की ज्वाला बुझाने के लिए तो है ही पक भी जाती कहाँ कहाँ की आग पर.
ये मजाक कि बात है लेकिन बहुत सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया हैं अपने अंतर के भावों को.
ये रोटी भी न कहाँ कहाँ पहुच जाती है ? पेट की ज्वाला बुझाने के लिए तो है ही पक भी जाती कहाँ कहाँ की आग पर.
ये मजाक कि बात है लेकिन बहुत सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया हैं अपने अंतर के भावों को.
तेरे
दंश भरे
अंगारों ने
उसे जला डाला ..
गहन भावों को समेटे यह पंक्तियां ।
कुछ शब्दों में गहन चिंतन समाहित कर देना आपकी रचनाओं की विशेषता है...यह प्रस्तुति भी इसका अपवाद नहीं..आभार
बहुत ही सुन्दर भाव ....गहन अभिव्यक्ति ....
आभार
sara dard ubhar aya panktiyon me,isse acchi abhivyakti dard ki ho nahi sakti
man ko dikhane ka is se achchha doosra koi tareeka nahin hai...!
bahut sundar...!!
सच दंश में आग से भी ज्यादा दहन करने की क्षमता होती है...
कितनी गहरी बात आपने इस क्षणिका के माध्यम से कह दी. सीधे दिल पर असर हुआ...आभार
In chand alfaazon me kitna kuchh kah daalaa!
शिखा की बातें मैं भी कोट करना चाहता हूं ...“ मन के छाले जैसे रोटी पर उभर आये हैं”!
कम शब्दों में बहुत गहरी बात कह दी आपने तो!
रोटी सेंकना...अच्छी बात नहीं है...नेता भी तो रोटियां सेंकते है...पर जलते तो नहीं जलाते हैं...काश कोई दिल से आपकी तरह रोटियां सेंके...
मन का चूल्हा और खावों की रोटी. काफी स्वादिष्ट और रोचक सृजन. शुभकामनाएँ.
अत्यंत सुन्दर
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
is baar tasvir bhi takkar ki hai ,bahut hi sundar dono cheeze
अगर आच तेज हो तो सपने जल ही जाते है , सुन्दर रचना ...
बहुत खूब .. कुछ ही शब्दों में गहरी बात ....
सुभानाल्लाह....बहुत खूब....रोटी और मन....वाह
मै जरा देर से आया लेकिन दुरुस्त आया . जली रोटी के फफोले ह्रदय की बात कह गए ., देखन में छोटन लगे------.
Short but effective !!!
दी,कम शब्दों में बहुत बड़ी बात कह दी ....सादर !
सुन्दर अभिव्यक्ति... उस पर शिखा जी कि पहली टिप्पणी भी जबरदस्त रही.....
वाह वाह वाह
संगीता जी,
गागर में सागर इसे ही कहा जाता है.
bahut khub...kahan to log kalam ghiste jate hain...par guni to wahi hai jo gagar me sagar bhar de....aapki tarah..
छोटी सी कविता में चौंका देने वाली बहुत बड़ी बात कह दी आपने.आभार .बहुत-बहुत शुभकामनाएं .
बहुत गहरे भाव छिपे हैं इस क्षणिका में |बहुत बहुत बधाई |
गागर में सागर.
दंश भरे
अंगारों ने
उसे जला डाला ..
गहन भावों को समेटे यह पंक्तियां ।
:)
सुन्दर...
शब्द-शब्द संवेदनाओं से भरी मार्मिक रचना ....
गहन मनोभाव हैं आपकी इस रचना में...
गहन विचारों के साथ सार्थक प्रस्तुति ।
lovely lines !
दंश तो बहुत कुछ जला डालते हैं...
बहुत सुंदर...
चंद शब्दों में काफी गहरी बात...
सुख-दुःख के साथी पर आपके विचारों का इंतज़ार है..
आभार
'दंश ' की तीव्रता का अहसास कराती सारपूर्ण पंक्तियाँ !
बहुत सुंदर लिखा है आपने,
हर शब्द एहसासों का समंदर समेटे है !!
बारह शब्दों में बारह महीनों की व्यथा.ह्रदय स्पर्शी रचना.
कम शब्दों में बहुत कुछ कहना ....आपकी छोटी छोटी नज़्मों की खासियत
बहुत ही सुंदर भावपूर्ण रचनायें
दंश ,हरसिंगार ,हसरत या पलाश ...
समंदर रेत का,बाढ़ का कहर ,या फिर
तेरे होने का अहसास.....
मन को कहीं गहरे तक छू जायें ,पर प्रत्युतर में कुछ कह न पाएं ..
....??????????.......बस इतना ही
"जिन खोजा तिन पाइया गहरे पानी पैठ "
शुभकामनाएं ...
तेरे
दंश भरे
अंगारों ने
उसे जला डाला
bahut tees bhari hai in panktiyon mein....
yah dansh pet puja ke liye bhari na pare...laghu kavya mein anant vyatha ki katha...
निशब्द !
जो दिल ने कहा ,लिखा वहाँ
पढिये, आप के लिये;मैंने यहाँ:-
http://ashokakela.blogspot.com/2011/05/blog-post_1808.html
बहुत सुन्दर पंक्तिया
Happy Environmental Day !
वाह संगीता जी ..क्या बात है... जली रोटी और ख्वाबों का चूल्हा .. वाह
main to smiley banane ke liye bhi late ho gayi mumma...:(
anyways.....mail account kharab tha yahi kaaran tha.....:)
अंगारों का साहचर्य
जलना तो तय है
निशब्द इतने कम शब्दों मे गहरी बात और अद्भुत बिम्ब। शुभकामनायें।
Man ke chulhe parkwabon kee rotee kyq bqt hai ? Jalne kee bat se jaise man ka dard ubhar aaya. Bahut sunder,\.
man ki vyatha ka chitran behtarin dhang se kiya.....taarif ke liye shabd nahi..........
gagar men sagar bhara hai......aapane. Bhavsampann racana..
badhyee.
bahut hi khubsurti se dil ki baat btai rachna .
सुन्दरता से लिखा है आपने..शुभकामनायें
बहुत बढ़िया...
अक्सर ऐसे दंश मन को उदास कर जाते हैं , लेकिन शायद यही ज़िन्दगी है।
are wah.......bhav pranav...sadhuwaad
sangeeta di
soch rahi hun ki kya comments dun --
likhne ko shabd nahi mil rahe hain.
in chohti-chhoti si panktiyon ne apne andar sab kuchh samet liya hai .
bahut behtareen xhanika
bahut bahut bdahi
poonam
वाह.बहुत दिन से दिख नहीं रहीं.
घुघूती बासूती
Lajwab !
गहन अभिव्यक्ति लिए हैं पंक्तियाँ.....
मन के चूल्हे पर पकते ख़्वाब वाक्यदंश से जलते रहते हैं.
बहुत सुंदर लिखा है.
तेरे दंश भरे अंगारों ने उसे जला डाला ...
थोड़े से शब्द सब कुछ कह गये...
एक दर्द न जाने कहाँ छुपा है उभर ही आता है लेखनी में -सुन्दर छवि और बहुत कुछ कह सुना गयी ये जली रोटी --
शुक्ल भ्रमर ५
behtareen :)
_____________________________
मैं , मेरा बचपन और मेरी माँ || (^_^) ||
thoughtful poem
ख़्वाबों की रोटी अभिनव प्रयोग ,नियति के आगे सब कुछ ढेर .
dekhan me chhote lage, ghaw kare gambhir .. :)
जब भी
मन के
चूल्हे पर
मैंने
ख़्वाबों क़ी
रोटी सेकी
मनमोहन तेरे
दंश भरे महंगाई के
अंगारों ने
उसे जला डाला ...
kya baat...bdhayi...
no words to appreciate
excellent
bahut hi gahre bhav hai is rachna men...
मेरे ब्लाग पर आने के लिये बहुत-बहुत आभार।
दंश हमेशा दु;ख नही देता बल्कि हमारे लिये
प्रेरक का भी काम करता है।अच्छा लगा पढकर।
Post a Comment