चवन्नियां ख्यालों की
>> Friday, 1 July 2011
पोटली में बंधी चवन्नियां
खनखनाती हैं ज्यों
ख्याल भी मेरे मन में
कुछ इसी तरह बजते हैं
रही नहीं कीमत
जैसे अब उनकी
मेरे ख्याल भी
धराशायी हो गए हैं ..
खलिश होती है तो यूँ ही बयां होती है , हर शेर जैसे सीप से निकला हुआ मोती है
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57 comments:
gajjjjjjjjjjab ... ise kahte hain lakshy sadjna bhawnaaon ka
सचमुच संवेदनाएं चवन्नी हो गई हैं... बहुत बढ़िया क्षणिका... मुकम्मल कविता...
लो जी चवन्नियों को भी जाते जाते तार दिया :).
भावनाएं वाकई चवन्नियां हो गई हैं.क्या तीर मारा है निशाने पर.
खयालो को भी महगाई मार गई . स्वप्न स्फीति जैसा कुछ प्रतीत हुआ . हम तो अपने स्वप्नों को अब अठन्नी की तरह देखते है .
आपके ख्यालों की कीमत चवन्नी के बराबर नहीं है संगीता जी ! वे तो अनमोल हैं ! तभी तो लगातार एक के बाद एक इतनी संवेदनशील रचनाएं हमारे लिए ब्लॉग पर प्रस्तुत कर रही हैं आप ! उनकी कीमत इतनी कम करके मत आँकिये ! यह तो सरासर अन्याय है ! मेरी बधाई स्वीकार करें !
bahut achchi kshanika Sangeeta ji dheere dheere aapki purani post bhi padhoongi jo miss hui hain.
संभाल कर रखिये उन ख्यालों को,
सौंपिए आने वाली पीढ़ी को,
ये चवन्नियाँ कभी बेकार नहीं जातीं,
मलिका विक्टोरिया के रुपये की तरह
कौन जाने किसी समय
ये भी मोहरों के मोल मिलें
ख्याल बेशकीमत होते हैं
चाहे चवन्नी भर ही क्यों न हों.
.
संगीता दी!
वैसे भी मेरे शुरुआती दिनों में आपकी पहचान मेरे लिए आपके माथे पर चमकती ये चवन्नी भर की बिंदी ही होती थी!!
:)
इसे कहते है विचारों की अभिव्यक्ति और आगे कुछ नहीं .
रही नहीं कीमत
जैसे अब उनकी
मेरे ख्याल भी
धराशायी हो गए हैं ..
Kya khoob likhtee hain aap!
bahut badhiya kshanika.
हूँ....कभी कभी नहीं रहती ख्यालों की कीमत ....चव्वनी की तरह ....
बहुत सुंदर पंक्तियाँ
sunder abhivyakti hai
चवन्नीयों की कीमत बेशक कम हो गई हो पर हम सभी के लिए आप अनमोल है और ये सदा बरकरार रहेगी।
बाज़ार से चवन्नी गई और दिलों से भावनाएँ. बिंब बहुत सी बातें कहता है.
जिनकी कीमत नहीं रही, उन्हे विदा कर दिया।
दुर्लभ चीजों का दाम बढ़ जाता है...बस कुछ साल इंतज़ार कीजिये...और...इन्हें कुछ रुपयों में बेचिए...ये बात ख्यालों पर भी लागू है...
मम्मा,
बहुत सटीक तुलना की है....:)
(आज बहुत जल्दी आ गयी मैं शायद.....अच्छा लग रहा है 17 वें नंबर पर होना...:D)
चलिए ,
चरण स्पर्श....
शुभ रात्रि ! :)
एक छोटे सिक्के के माध्यम से बडी बात कह दी आप ने
बहुत बढ़िया !!
अब इतिहास हो गयी चवन्नियां ....!
chaaniyon ka prayog to kabse ham aur aap band kar chuke the par blog jagat me is ghatna par itna likha gaya hai ki chaani ke itihas banne par bahut dukh ho raha hai.sangeeta ji aapki chhoti see kaita bahut sundar lagi hai.
कहां से कहां की ख्याली पुलाव पका दी आपने।
अजी देखिए अब इसका महत्त्व कितना अधिक हो गया कि हम कहेंगे ... हम उस जमाने के हैं जब चवन्नियां होती थीं।
gum hoti chavani ke dard ke bahne apne dard ko bakhoobi bayan kiya ai aapne...
आपके ख्याल जो इन कविताओं में बंधे हैं वो भी कुछ वक्त बाद इन चवन्निओं की तरह अनमोल हो जायेंगे ....सुन्दर...सामयिक रचना
उदासी के क्षण की खूबसूरत अभिव्यक्ति ....
शुभकामनायें !
मन के ख्यालों को 1000 का नोट बना लो, देखो कैसे धराशाही होते हैं? वैसे छोटे-छोटे ख्याल ही हमेशा जीवित रहते हैं, ये ही मान्यता भी पाते हैं।
चवन्नियाँ सँजोये रहिये .संग्रह की कीमत कभी बहुत बढ़ जाती है .
chawannai jaisee bhawna....:)kabhi kabhi anmol lagti hai...!!
di bahut dino se aap mere gine chune post padhne nahi aaye ho:D
चवन्नी की विदाई एक युग की विदाई जैसी है...बखूबी आंका है आपने अपनी इस कविता में...
चवन्नियों के बहाने मानवीय संवेगों की गिरावट की सुन्दर मीमांसा...बधाई.
simply awesome....just too good....aap hi likh sakti ho aisa :)
उफ़ ये क्या कह दिया? ऐसा ना करे ज़रा संभाल कर रखिये अपने ख्यालो को हमे भी उनकी बहुत जरूरत है। बहुत सुन्दर प्रस्तुति हमेशा की तरह्।
रही नहीं कीमत
जैसे अब उनकी
मेरे ख्याल भी
धराशायी हो गए हैं ..
वाह ...हमेशा की तरह लाजवाब करती पंक्तियां ..
अब अठन्नी का क्या होगा....
ख्यालों की चवन्नियों को अठन्नी में बदलना ज़रूरी है ।
इसी का नाम विकास है ।
वाह!क्या बात है......एक चवन्नी जो बंद हो गयी और कुछ सपने जो टूट गए.
behtareen!!
चवन्नियां रहें न रहें आपके ख्याल बहुत अनमोल हैं धराशायी नहीं हो सकते........ बहुत सुन्दर अनमोल प्रस्तुति आपके ख्यालों की तरह.........
chwanni par bahut sunder likhin.....
chavanni ho rahe khyal bikhar bhale rahe hon lekin dharashayi nahin hote kabhi rupaye bankar jab samane aayenge to itihas rach jaayega.
संगीता जी बहुत सुन्दर क्षणिका ! विचारों की गहन अभिव्यक्ति के साथ लाजवाब प्रस्तुती!
बहुत सुन्दर क्षणिका!
अब अठन्नी की बारी है!
आपकी छोटी सी कविता थोड़े में ही बहुत कुछ कह गयी। इसका सार-संक्षेप यह हुआ कि किसी के जाने के बाद ही उसका महत्व पता चलता है।धन्यवाद।
बदलते समय के साथ यह सब होता है। ख़याल ही सही,पर पुराने से मोहभंग होगा,तभी कुछ नया हाथ लगेगा।
गहरा तारतम्य स्थापित किया है दोनों बिम्ब के बीच में ... बहुत लाजवाब रचना ..
गागर में सागर
ख्याल.....विचार....यही तो अवरोध हैं आगे बढ़ने के लिए इनका हट जाना ही बेहतर है ........कम शब्दों में शानदार पोस्ट.......लाजवाब|
पोटली में बंधी चवन्नियां
खनखनाती हैं ज्यों
ख्याल भी मेरे मन में
कुछ इसी तरह बजते हैं
Aaphee likh saktee hain istarah se! Kamalkee lekhani hai!
उफ, दर्द का बयान भी माहौल के हिसाब से,
आभार,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
kya sunder tulna ki hai .bahut navin tulna hai
sunder kavita
rachana
संगीता दी!लाजवाब रचना ..
पोटली में बंधी चवन्नियां
खनखनाती हैं ज्यों
ख्याल भी मेरे मन में
कुछ इसी तरह बजते हैं
रही नहीं कीमत
जैसे अब उनकी
मेरे ख्याल भी
धराशायी हो गए हैं ..
आपको पढना हमेशा अच्छा लगा है. समय हो तो युवतर कवयित्री संध्या की कवितायें. हमज़बान पर पढ़ें.अपनी राय देकर रचनाकार का उत्साह बढ़ाना हरगिज़ न भूलें.
http://hamzabaan.blogspot.com/2011/07/blog-post_06.html
मेरे खयाल भी धराशाई हो गये हैं।बहुत खूब! याद है आपको जब मैने कहा था आपका चेहरा मेरी माँ मे मिलता है आज तो लगता है विचार भी मिलते हैं। क्योकि माँ ने भी कहा था कुछ दिन पहले हमें कौन पूछता है मेरी सारी नसीहते तुम लोगों के दिमाग से चवन्नी की तरह गायब हो गई है...:)
chawnniyan bhale hi mulya hin ho chuke ho lekin khayalon main sadev bane rahengey, sankshipt kintu prabhavshali rachna hetu abhaar......
संगीता जी एकदम सटीक बात कही है आपने. कमाल के उदहारण आस पास से बटोर लाती है आप...
आदरणीया संगीता जी सम्भाल कर रखिये उन ख्यालों को मन को बहुत सुकून देंगे-उनका भी बहुत मूल्य है - बहुत जगह तो चवन्नियां भी बटोरी जा रही हैं ....
खूबसूरत रचना -बधाई
शुक्ल भ्रमर ५
भ्रमर का दर्द और दर्पण
मेरे ख्याल भी
धराशायी हो गए हैं ..
bahut khoobsurat...aabhar
kabhi chabnni chalti thi...ab pighalti bhai....aag pe galti hai...samay samay ki baat hai..chabanni bhi waqt ke paikar mein hi dhalti hai..mandir pe baithi budhiya jab sham dhalti hai..chabnniyon ko noton mein badalti hai...raat bhar soti hai chabnni phir subah hote hi chalti hai...aapke bhi khyal chup ho sakte hain..thodi der ke liye so sakte hain..kintu jab jagte hain ek sundar rachna bankar bikharte hain..chabnni chabnni ho sakti hai..aapke khyal kho nahi sakte ..chabbni ho nahi sakte..sadar pranam ke sath
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