वक्त की आँधी
>> Thursday, 17 November 2011
मरुस्थल सी
ज़िंदगी में
छाई थी
घटा कुछ देर
और खिल गए थे
चाहत के कुछ फ़ूल ,
वक्त की आँधी
उड़ा ले चली
उन बादलों को
और अब फ़ूल
मुरझा गए हैं
नमी की कमी से
खलिश होती है तो यूँ ही बयां होती है , हर शेर जैसे सीप से निकला हुआ मोती है
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75 comments:
hamesha ki tarah suner choti nazm
bhn ji bhtrin rchna ke liyen bdhaai .akhtar khan akela kota rajsthan
सावन आकर फिर बरसेगा...
मरुस्थल सी ज़िंदगी
सुंदर शब्द चुने ..... उम्दा रचना
बिम्ब अच्छा है लेकिन मरूस्थल में केक्टस में फूल उसकी जीजीविषा के कारण खिलते हैं। महिलाओं में भी यही जीजीविषा होती है। वे रेत से भी नमी लेते हैं और खिले रहते हैं। उन्हें बादलों के पानी की आवश्यकता नहीं होती।
सुभानाल्लाह............बहुत खूबसूरत.....नमी की कमी से........वाह |
bahut sundar bhaav chipe hain in shabdon me ,bahut achcha likha.
वे फिर खिलेंगे।
bahut sundar kavita... har shabd chun chun kar rakhe gaye hain...
ehsaason kee nami chahiye inhen ...
बहुत अच्छी प्रस्तुति बधाई...
नई पोस्ट में आपका स्वागत है
रेगिस्तान में स्थित नखलिस्तान उसकी जीवन्तता के प्रमाण हैं - फूल फिर-फिर खिलेंगे !
बहुत सुन्दर सृजन!
मुरझाए फूलों को फिर से खिलना ही होगा।
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कल 18/11/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति,,शब्द योजना लाजवाब..
jeevan kee yahee
gatee
kabhee hansaate kabhee rulaatee
sundar prastuti,man kee peedaa darshaatee
उसी प्रकार
जीवन म्रत्यु का इंतज़ार ही तो है
जीना है तो लड़ना है
जज्बातों की नमी की अपेक्षा है........
Chhoti-si nazm kitnee badee baat kah rahee hai!
केक्ट्स तो रेगिस्तान का ही रहवासी हैं ..फिर भी उसे नमी की जरूरत तो पड़ती ही हैं .. अद्भुत !समाजस्य !
Hi di..
Aaj main kafi dinon baad upasthit hua hain..aapki bhavpurn kavitaon ka rasaswadan karne ke liye.. Koshish rahegi ab se aapki har kavita par apni anubhuti ko yathasambhav shabdon main dhal kar unhen tippani ka prarup de sakun..
Jindgi marubhumi sabki, rahti tab tak hai sada..
Khushiyon ki barish agar na, dekhi hoti hai vahan.
Ek kshaan ki bhi khushi ke, phool murjhate nahi..
Gam ke tufaan gar na aakar, joor dikhlate nahi..
Shubhkamnaon sahit..
Deepak Shukla..
पर आँखों में आंसुओं की कमी तो नहीं नमी के लिए .
घटाओं का तो काम ही आना जाना है...बिना बरसे रह भी नहीं सकतीं .
फिर से आएँगी.
चंद पंक्तियों में गहरे भाव ..हमेशा की तरह.
इस बिम्ब-कविता पर अजित गुप्ता जी की टिप्पणी पर ... वाह-वाह कर उठा.
कभी-कभी रचना से अधिक टिप्पणी दमदार हो जाती है. कुछ ऐसा ही लगा.
बहुत सुन्दर दी....
वक़्त की आँधियों में कुछ पराग भी होंगे...
ये जमी और नमी पाते ही फिर महकने लगेंगे....
सादर...
ना जाने वो नमी कहाँ चली जाती है………………सुन्दर भावाव्यक्ति।
घटा फिर छाएगी मुरझाये फूल फिर से नमी पाकर खिल उठेंगे... सुन्दर रचना
बादल बरसेंगे फिर से और नमी भी आएगी , बस जरुरत है मेघ गीत गाते रहने की .
बूँद में सागर भरने की अद्भुत क्षमता है आपमें संगीता जी ! बहुत ही सुन्दर एवं भावपूर्ण रचना है ! मन में सीधे उतरती हुई ! बधाई एवं शुभकामनायें !
वाह ...बहुत खूब कहा है आपने ।
ये घटा फिर वापस आयगी और बरस बरस के तृप्त करेगी ... ये रीत है जीवन की ... अच्छी रचना है ...
बहुत ही खुबसूरत अभिवयक्ति....
मरुथल में फूल मुरझाने का दोष बादल की ओट से, समय को देने का चातुर्य हर किसी के बस का नहीं.
गागर में सागर की तरह मुट्ठी में मरुथल समा गया है.अद्भुत.
जब नीर भरी दु:ख की बदली
ही नमी कमी की बात करे.
तब नागफनी गाये मल्हार औ'
अँसुवन जल बरसात करे.
इस कविता को पढ़ने का सही तरीका है बस आँखें बंदकर कापना करना और गुनगुनाना... संगीता दी, बहुत सुन्दर!!
वक़्त की आंधी ही उड़ा भी लाएगी बादलों को और मरुस्थल तर हो जाएगा!
इस हेतु प्रार्थना के लिए स्वतः ही हाथ जुड़ जाते हैं आपकी कविता पढ़ कर...
चाहत की नमी...और चाहत की कमी...
वाह संगीता जी.
behtreen khubusrat rachna abhivaykti.....
बिल्कुल नए बिम्ब के साथ मन की अभिव्यक्ति।
मरुस्थल में नमी की कमी से पौधों को मुरझाना ही होता है !
सुन्दर नवीन बिम्ब !
Bahut sundar....
वक्त की आँधी
उड़ा ले चली
उन बादलों को
और अब फ़ूल
मुरझा गए हैं
नमी की कमी से.बहुत अच्छी प्रस्तुति।धन्यवाद संगीता जी ।आपके गीत हमेशा ही सदाबहार होते हैं।
Bahut sundar....
Bahut sundar....
वक्त की आंधी वापस उड़ा लाये बादलों को और मरुस्थल तर हो जाए...! इस हेतु प्रार्थना में हाथ स्वतः जुड़ जाते हैं आपकी कविता पढ़ कर!
मरुस्थल की बहार और जीवन के उतार चढाव का खूबसूरत वर्णन करती सुन्दर लघु रचना .
यही तो कुदरत का नियम है एक फूल गिरता है, तो तब ही चार नए फूल खिलते हैं। कम शब्दों में गहरे भाव लिए खूबसूरत रचना ...आभार
बहुत सुन्दर बिखरे मोतियों में से एक ...!
क्या बात है.. इधर वक्त की आँधी
और मेरे तरफ " बेबसी की आँधी "
आकर पढ़े आपका हार्दिक स्वागत है !
very beautiful...
मन कभी एक सा नहीं रहता. कभी मरूस्थल बन जाता है कभी नमी बन जाता है. सुंदर रचना.
dua hai fir se ghatayen chha jayen.
sunder abhivyakti.
फिर भी नमीं बाकी है कहीं...जो इस रचना की रचना में काम आ गयी...!!
बहुत ही सुन्दर कहन शैली और कविता
बेहद ख़ूबसूरत और शानदार रचना ! दिल को छू गई हर एक पंक्तियाँ!
मेरे नये पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
मेरे नए पोस्ट पर स्वागत है ....
छोटी परंतु सारगर्भित नाज़्म
बधाई
ghata fir aayengi.....
मरुथल ही न हो तो हम प्यास महसूस न कर पाएंगे
मरुथल नहो तो हम प्यास महसूस न कर पाएंगे ...............
जीवन में नमी की कितनी अहमियत है पर,
बहारें फिर भी आती हैं बहारें फिर भी आयेंगी ।
आदरणीय संगीता जी ...बहुत ही सुन्दर प्यारी अभिव्यक्ति ..काश फिर से वक्त की आंधी उन बादलों को इधर का रुख दिखाए
भ्रमर ५
bahut sundar...
प्यारी रचना है भावों से ओतप्रोत |
आशा
Behatreen Bhaav.. :)
……सुन्दर अभिव्यक्ति।
shakuntala diushyant ki kahani yaad aa gayi...behtarin prastuti..sadar pranam aaur apne blog per aapke ashirwad bristi ki aakancha ke sath
वाह,बहुत सुंदर
वाह, बहुत सुंदर
सुन्दर अभिव्यक्ति ..रिमझिम फिर आएगी बरसात रे मनवा मत हो तू उदास रे मनवा ...
मुरझाने नहीं दीजिये....
और अब फ़ूल
मुरझा गए हैं
नमी की कमी से
हाँ दीदी सच में अब वो फूल मुरझा गये हैं सारे के सारे ..कहाँ से लाऊं अब इतनी नमी मैं
प्रभु कृपा बरसे....घाएँ छायें , खोई नमी फिर से बहाल हो...बहुत सुन्दर.
www.belovedlife-santosh.blogspot.com
वक़्त की आँधी का क्या भरोसा.
kam shabdo mei puar abhivyakti...
Gaharaai se baat kahana to koi aapse seekhe..
घटा फिर छायेगी
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