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वक्त की आँधी

>> Thursday, 17 November 2011





मरुस्थल सी 
ज़िंदगी में 
छाई थी 
घटा कुछ देर 
और खिल गए थे  
चाहत के कुछ फ़ूल ,
वक्त की आँधी
उड़ा ले चली 
उन बादलों को
और अब फ़ूल 
मुरझा गए हैं 
नमी की कमी से 

75 comments:

Minoo Bhagia Thu Nov 17, 07:07:00 am  

hamesha ki tarah suner choti nazm

आपका अख्तर खान अकेला Thu Nov 17, 07:17:00 am  

bhn ji bhtrin rchna ke liyen bdhaai .akhtar khan akela kota rajsthan

प्रवीण पाण्डेय Thu Nov 17, 08:12:00 am  

सावन आकर फिर बरसेगा...

डॉ. मोनिका शर्मा Thu Nov 17, 08:20:00 am  

मरुस्थल सी ज़िंदगी

सुंदर शब्द चुने ..... उम्दा रचना

अजित गुप्ता का कोना Thu Nov 17, 08:57:00 am  

बिम्‍ब अच्‍छा है लेकिन मरूस्‍थल में केक्‍टस में फूल उसकी जीजीविषा के कारण खिलते हैं। महिलाओं में भी यही जीजीविषा होती है। वे रेत से भी नमी लेते हैं और खिले रहते हैं। उन्‍हें बादलों के पानी की आवश्‍यकता नहीं होती।

Anonymous Thu Nov 17, 09:27:00 am  

सुभानाल्लाह............बहुत खूबसूरत.....नमी की कमी से........वाह |

Rajesh Kumari Thu Nov 17, 09:50:00 am  

bahut sundar bhaav chipe hain in shabdon me ,bahut achcha likha.

अरुण चन्द्र रॉय Thu Nov 17, 09:59:00 am  

bahut sundar kavita... har shabd chun chun kar rakhe gaye hain...

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया Thu Nov 17, 10:39:00 am  

बहुत अच्छी प्रस्तुति बधाई...
नई पोस्ट में आपका स्वागत है

प्रतिभा सक्सेना Thu Nov 17, 10:46:00 am  

रेगिस्तान में स्थित नखलिस्तान उसकी जीवन्तता के प्रमाण हैं - फूल फिर-फिर खिलेंगे !

Yashwant R. B. Mathur Thu Nov 17, 11:31:00 am  

मुरझाए फूलों को फिर से खिलना ही होगा।
----
कल 18/11/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!

Maheshwari kaneri Thu Nov 17, 11:49:00 am  

बहुत सुन्दर प्रस्तुति,,शब्द योजना लाजवाब..

Nirantar Thu Nov 17, 11:57:00 am  

jeevan kee yahee
gatee
kabhee hansaate kabhee rulaatee


sundar prastuti,man kee peedaa darshaatee

Nirantar Thu Nov 17, 11:59:00 am  

उसी प्रकार
जीवन म्रत्यु का इंतज़ार ही तो है
जीना है तो लड़ना है

Nidhi Thu Nov 17, 12:26:00 pm  

जज्बातों की नमी की अपेक्षा है........

kshama Thu Nov 17, 12:32:00 pm  

Chhoti-si nazm kitnee badee baat kah rahee hai!

दर्शन कौर धनोय Thu Nov 17, 12:55:00 pm  

केक्ट्स तो रेगिस्तान का ही रहवासी हैं ..फिर भी उसे नमी की जरूरत तो पड़ती ही हैं .. अद्भुत !समाजस्य !

Deepak Shukla Thu Nov 17, 02:04:00 pm  

Hi di..

Aaj main kafi dinon baad upasthit hua hain..aapki bhavpurn kavitaon ka rasaswadan karne ke liye.. Koshish rahegi ab se aapki har kavita par apni anubhuti ko yathasambhav shabdon main dhal kar unhen tippani ka prarup de sakun..

Jindgi marubhumi sabki, rahti tab tak hai sada..
Khushiyon ki barish agar na, dekhi hoti hai vahan.
Ek kshaan ki bhi khushi ke, phool murjhate nahi..
Gam ke tufaan gar na aakar, joor dikhlate nahi..

Shubhkamnaon sahit..

Deepak Shukla..

Amrita Tanmay Thu Nov 17, 02:39:00 pm  

पर आँखों में आंसुओं की कमी तो नहीं नमी के लिए .

shikha varshney Thu Nov 17, 02:44:00 pm  

घटाओं का तो काम ही आना जाना है...बिना बरसे रह भी नहीं सकतीं .
फिर से आएँगी.
चंद पंक्तियों में गहरे भाव ..हमेशा की तरह.

प्रतुल वशिष्ठ Thu Nov 17, 02:53:00 pm  

इस बिम्ब-कविता पर अजित गुप्ता जी की टिप्पणी पर ... वाह-वाह कर उठा.
कभी-कभी रचना से अधिक टिप्पणी दमदार हो जाती है. कुछ ऐसा ही लगा.

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') Thu Nov 17, 02:54:00 pm  

बहुत सुन्दर दी....
वक़्त की आँधियों में कुछ पराग भी होंगे...
ये जमी और नमी पाते ही फिर महकने लगेंगे....

सादर...

vandana gupta Thu Nov 17, 03:28:00 pm  

ना जाने वो नमी कहाँ चली जाती है………………सुन्दर भावाव्यक्ति।

संध्या शर्मा Thu Nov 17, 03:28:00 pm  

घटा फिर छाएगी मुरझाये फूल फिर से नमी पाकर खिल उठेंगे... सुन्दर रचना

ashish Thu Nov 17, 04:38:00 pm  

बादल बरसेंगे फिर से और नमी भी आएगी , बस जरुरत है मेघ गीत गाते रहने की .

Sadhana Vaid Thu Nov 17, 04:46:00 pm  

बूँद में सागर भरने की अद्भुत क्षमता है आपमें संगीता जी ! बहुत ही सुन्दर एवं भावपूर्ण रचना है ! मन में सीधे उतरती हुई ! बधाई एवं शुभकामनायें !

सदा Thu Nov 17, 04:51:00 pm  

वाह ...बहुत खूब कहा है आपने ।

दिगम्बर नासवा Thu Nov 17, 06:45:00 pm  

ये घटा फिर वापस आयगी और बरस बरस के तृप्त करेगी ... ये रीत है जीवन की ... अच्छी रचना है ...

विभूति" Thu Nov 17, 07:26:00 pm  

बहुत ही खुबसूरत अभिवयक्ति....

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) Thu Nov 17, 07:47:00 pm  

मरुथल में फूल मुरझाने का दोष बादल की ओट से, समय को देने का चातुर्य हर किसी के बस का नहीं.
गागर में सागर की तरह मुट्ठी में मरुथल समा गया है.अद्भुत.

जब नीर भरी दु:ख की बदली
ही नमी कमी की बात करे.
तब नागफनी गाये मल्हार औ'
अँसुवन जल बरसात करे.

चला बिहारी ब्लॉगर बनने Thu Nov 17, 08:39:00 pm  

इस कविता को पढ़ने का सही तरीका है बस आँखें बंदकर कापना करना और गुनगुनाना... संगीता दी, बहुत सुन्दर!!

अनुपमा पाठक Thu Nov 17, 09:42:00 pm  

वक़्त की आंधी ही उड़ा भी लाएगी बादलों को और मरुस्थल तर हो जाएगा!
इस हेतु प्रार्थना के लिए स्वतः ही हाथ जुड़ जाते हैं आपकी कविता पढ़ कर...

vidya Thu Nov 17, 10:08:00 pm  

चाहत की नमी...और चाहत की कमी...
वाह संगीता जी.

सागर Thu Nov 17, 10:11:00 pm  

behtreen khubusrat rachna abhivaykti.....

मनोज कुमार Thu Nov 17, 10:40:00 pm  

बिल्कुल नए बिम्ब के साथ मन की अभिव्यक्ति।

वाणी गीत Fri Nov 18, 07:40:00 am  

मरुस्थल में नमी की कमी से पौधों को मुरझाना ही होता है !
सुन्दर नवीन बिम्ब !

Dr.NISHA MAHARANA Fri Nov 18, 07:43:00 am  

वक्त की आँधी
उड़ा ले चली
उन बादलों को
और अब फ़ूल
मुरझा गए हैं
नमी की कमी से.बहुत अच्छी प्रस्तुति।धन्यवाद संगीता जी ।आपके गीत हमेशा ही सदाबहार होते हैं।

अनुपमा पाठक Fri Nov 18, 12:56:00 pm  

वक्त की आंधी वापस उड़ा लाये बादलों को और मरुस्थल तर हो जाए...! इस हेतु प्रार्थना में हाथ स्वतः जुड़ जाते हैं आपकी कविता पढ़ कर!

डॉ टी एस दराल Fri Nov 18, 01:56:00 pm  

मरुस्थल की बहार और जीवन के उतार चढाव का खूबसूरत वर्णन करती सुन्दर लघु रचना .

Pallavi saxena Fri Nov 18, 03:02:00 pm  

यही तो कुदरत का नियम है एक फूल गिरता है, तो तब ही चार नए फूल खिलते हैं। कम शब्दों में गहरे भाव लिए खूबसूरत रचना ...आभार

Jeevan Pushp Fri Nov 18, 03:11:00 pm  

बहुत सुन्दर बिखरे मोतियों में से एक ...!

क्या बात है.. इधर वक्त की आँधी
और मेरे तरफ " बेबसी की आँधी "
आकर पढ़े आपका हार्दिक स्वागत है !

Bharat Bhushan Sat Nov 19, 05:14:00 am  

मन कभी एक सा नहीं रहता. कभी मरूस्थल बन जाता है कभी नमी बन जाता है. सुंदर रचना.

***Punam*** Sat Nov 19, 10:43:00 pm  

फिर भी नमीं बाकी है कहीं...जो इस रचना की रचना में काम आ गयी...!!

जयकृष्ण राय तुषार Sun Nov 20, 06:00:00 pm  

बहुत ही सुन्दर कहन शैली और कविता

Urmi Mon Nov 21, 10:11:00 am  

बेहद ख़ूबसूरत और शानदार रचना ! दिल को छू गई हर एक पंक्तियाँ!
मेरे नये पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया Mon Nov 21, 01:28:00 pm  

मेरे नए पोस्ट पर स्वागत है ....

www.navincchaturvedi.blogspot.com Tue Nov 22, 09:49:00 am  

छोटी परंतु सारगर्भित नाज़्म
बधाई

Anonymous Tue Nov 22, 10:40:00 pm  

मरुथल ही न हो तो हम प्यास महसूस न कर पाएंगे

sangita Tue Nov 22, 10:42:00 pm  

मरुथल नहो तो हम प्यास महसूस न कर पाएंगे ...............

Asha Joglekar Thu Nov 24, 11:39:00 pm  

जीवन में नमी की कितनी अहमियत है पर,
बहारें फिर भी आती हैं बहारें फिर भी आयेंगी ।

Surendra shukla" Bhramar"5 Fri Nov 25, 10:42:00 am  

आदरणीय संगीता जी ...बहुत ही सुन्दर प्यारी अभिव्यक्ति ..काश फिर से वक्त की आंधी उन बादलों को इधर का रुख दिखाए
भ्रमर ५

Asha Lata Saxena Sun Nov 27, 07:29:00 am  

प्यारी रचना है भावों से ओतप्रोत |
आशा

मेरे भाव Mon Nov 28, 01:49:00 pm  

……सुन्दर अभिव्यक्ति।

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" Mon Nov 28, 07:12:00 pm  

shakuntala diushyant ki kahani yaad aa gayi...behtarin prastuti..sadar pranam aaur apne blog per aapke ashirwad bristi ki aakancha ke sath

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति Thu Dec 01, 08:40:00 pm  

सुन्दर अभिव्यक्ति ..रिमझिम फिर आएगी बरसात रे मनवा मत हो तू उदास रे मनवा ...

लोकेन्द्र सिंह Fri Dec 02, 12:11:00 am  

मुरझाने नहीं दीजिये....

आनंद Fri Dec 02, 02:55:00 pm  

और अब फ़ूल
मुरझा गए हैं
नमी की कमी से

हाँ दीदी सच में अब वो फूल मुरझा गये हैं सारे के सारे ..कहाँ से लाऊं अब इतनी नमी मैं

Santosh Kumar Fri Dec 02, 09:13:00 pm  

प्रभु कृपा बरसे....घाएँ छायें , खोई नमी फिर से बहाल हो...बहुत सुन्दर.

www.belovedlife-santosh.blogspot.com

Kunwar Kusumesh Sat Dec 03, 10:07:00 am  

वक़्त की आँधी का क्या भरोसा.

Anju (Anu) Chaudhary Mon Dec 05, 01:30:00 pm  

kam shabdo mei puar abhivyakti...

Dr.Bhawna Kunwar Fri Dec 09, 07:37:00 am  

Gaharaai se baat kahana to koi aapse seekhe..

M VERMA Fri Dec 30, 08:26:00 pm  

घटा फिर छायेगी

रफ़्तार

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