तपिश
>> Sunday, 4 December 2011
मैं
समंदर के साहिल पर
भीगी रेत सी
ज़रा सी कोशिश से
बन जाती हूँ
एक घरौंदा
और फिर
न जाने कौन सी
तपिश से
यूँ ही
बिखर जाती हूँ
खलिश होती है तो यूँ ही बयां होती है , हर शेर जैसे सीप से निकला हुआ मोती है
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80 comments:
खूबसूरत एहसास.
सादर.
'भीगी रेत सी
ज़रा सी कोशिश'
प्यारे शब्द विम्ब!
सुन्दर प्रविष्टि के लिए बधाई.
यही तो बात है, कि नमी लेकर कुछ सृजन कर तो लो, पर तपिश लगाने वालों की कमी नहीं है।
बहुत ही सुंदर ..
जीवन में गढ़ने का नमी ही करती है बिखेरती तपिश ही है....
यथार्थपूर्ण अभिव्यक्ति...बहुत सुन्दर...बधाई|
phir se ek chaah liye nami ki talaash hai...
विचारों की लहरें सशक्त होती हैं।
यही बनना बिगड़ना ही तो जिंदगी है ।
सुन्दर पंक्तियाँ ।
तपिश और नमी तो जीवन के अभिन्न अंग है , हा तपिश बिखेरने वाले बहुतायत में पाए जाते है.
कुछ तपिश भी जरुरी है. सुंदर प्रस्तुति और गज़ब अहसास.
कम शब्दों में पूरा जीवन संसार रच देती हैं आप...बहुत सुन्दर...
Behad sundar!
मैं
समंदर के साहिल पर
भीगी रेत सी
ज़रा सी कोशिश से
बन जाती हूँ
एक घरौंदा
और फिर
न जाने कौन सी
तपिश से
यूँ ही
बिखर जाती हूँ
यही तो विडम्बना है…………आज शब्द खामोश हैं।
आपके इन घनीभूत भावों में उलझ रहा हूँ... यदि मैं इस भाव को जीता तो क्या लिखता ...
मैं
समंदर की भीगी रेत में
कुछ देर चल लेना चाहता था...
और जब चला तो भीगी रेत में
खुद-ब-खुद बन गये पाँव के गहरे निशान
और जब उन निशानों को
मेरा सुखद एहसास
'घरौंदा' मानकर प्रविष्ट हो गया.
तो मुझे भी लगने लगा
'मैं अब गृहस्थी हो गया.'
jab apnepan ki nami milti hain to man fir harabhara gharonda ban jaata hain...aur fir jahan rukhe vyavhaar ki tapish mile to yahi gharonda tut kar bikhar jaata hain.
dil ko chune vaali prashtuti.
बेहतरीन और आज के परिपेक्ष में सार्थक कविता के लिये मुबारकबाद व आभार्।
waah !!
kya baat hai !!
Banana aur bikharna...sundar bhav
badhiya prastuti
www.poeticprakash.com
बहुत खूब आंटी।
सादर
सुंदर पंक्तियाँ दी..
सादर...
यही तो जिंदगी है...बहुत सुन्दर...
निर्मिति और विसर्जन की अद्भुत अभिव्यक्ति है संगीता जी ! बहुत सुन्दर भाव हैं और बहुत करीने आपने उन्हें शब्दों में पिरोया है ! अति सुन्दर !
--
Rekha Srivastava to me
show details 1:32 PM (1 hour ago)
बहुत दिन बाद पहुँच पाई हूँ और फिर एक सुंदर सी गीतिका मिली जो अंतर तक छू गयी. इस सुंदर गीतिका के लिए बधाई. (कुछ नेट प्रॉब्लम है इसलिए आपके कमेन्ट बॉक्स में नहीं जा रहा है. )
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति |
कोमल एहसास......
yahi to ek nazuk se man ki pahchan hai.
अदृभुत बिम्ब।
यही जीवन का सार है ...जल्दी बनता है ...
संभाल लो ,नही तो उतनी जल्दी ही बिगड जायेगा |शुभकामनाएँ!
आदरणीया संगीता जी बहुत सुन्दर . छविओं ने सब कुछ जता दिया ..यही तो है हमारी जिंदगानी ..कभी धूप कभी छाँव ...
भ्रमर ५
हलचल मचाती सुन्दर प्रस्तुति है आपकी.
भावपूर्ण और हृदयस्पर्शी.
आभार.
Khoobsoorat rachana!
क्या बोलूं...जाने कितनी बार जिए हैं आपके ये शब्द ..परन्तु अभिव्यक्त करना कभी इतना सहज न था..इतना सहज आपने कर दिखाया.
सुंदर पंक्तिया..बधाई....
नई पोस्ट में आपका स्वागत है
चंद पंक्तिया और बहुत खुबसूरत भाव अभिवयक्ति.....
यही जीवन का सार है .... बहुत सुन्दर...बधाई|मेरी नई पोस्ट में आपका स्वागत है
घरौंदे शायद बिखरने के लिए ही बनते है मैम|
सुंदर !
bahot bhawnatmak pangtiyan......
वाह! संगीता जी! बहुत खूब लिखा है आपने! ख़ूबसूरत एहसास के साथ सच्चाई बयान किया है आपने !
वाह ...बहुत खूब कहा है आपने ...आभार ।
ahsas jitna khubsurat....utna hi apne bhitar dard samete huye .....aabhar
bahut gahan jajbaat.
आपके ये छोटे मगर गहरे शब्द अक्सर मुझे यहाँ खींच ले आते हैं ....
रेत चाहे जैसे भी हो बिखत ही जाती है ... कमाल के भाव लिखे हैं ...
संगीता दी,
शब्दों के जाल से परे..कम शब्दों में अथाह संवेदनाएं समेटे!! इसे कहते हैं आपके मूड की कविता ..
शब्दों और चित्रों के माध्यम से गहरी बात को आसानी से कह दिया है - बहुत खूब
यही प्रकृति का नियम है।
रेत के घरौंदे जो ठहरे...टूटना ही इनकी नियति है.
बहुत सुन्दर....रेत के घरोंदे...और मानव मन..एक से तो होते हैं..ज़रा सी ठेस लगी और टूट जाते हैं..
मन और रेत के घरोंदे में थोड़ी सी भी चोट लगे तो टूट ही जातें है,.....सुंदर पोस्ट ...
बहुत खूबसूरत एहसास...हम सब अपने एहसास को ले कर कितने नाज़ुक है ...ज़रा सी चोट से टूट कर बिखर जाते है..
अति सुन्दर रचना..
chnad pantiyon men hee jivan ki sacchai ke ghare bhav kitni saralata se kah jaati hain aap :-)ki tariif ke liye shabd bhi nahi milte ...
सृजन और विसर्जन एक ही सिक्के के दो पहलू हैं यही तो कह रही है यह सुंदर क्षणिका ।
जीवन रेत सरीखा ही है. भीगता है तो कुछ बन जाता है. सूखता है तो झुर जाता है.
Gahan prastuti...khubsurat eahsaas..
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
मेरा शौक
मेरे पोस्ट में आपका इंतजार है,
आज रिश्ता सब का पैसे से
बनाती हूँ घरोंदा बहुत मैं बहुत जतन से ...पर न जाने आँधियों को खबर कैसे है हो जाती |
बहुत सुन्दर भाव |
Bahut Sundar Rachna :)
बहुत गहन और सुंदर अभिव्यक्ति...आभार
bhut pyari kavita hae .
nirman or srajan ki aadat hae tumhe
aansuon ko sahejna khushkiyo men bikhar jana,
yahi vo andaj hae jisse tera kayal
rkha hae mujhe.......
बहुत खूब कहा है.
कल 14/12/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है, मसीहा बनने का संस्कार लिए ....
छोटी किन्तु अर्थपूर्ण....
नये भावो का एहसास करा देती हैं आप... बहुत सुन्दर...
सुंदर रचना।
बेहतरीन प्रस्तुति!
kuch sulah sa gaya dil mein,sunder.
कम शब्दों में बड़ी सोच ......
आपकी इस माला का हर मोती 'एक से बढ़ के एक' है.
हर बार कुछ अलग सी फितरत .... वाह..
छोटा सा प्यारा सा गीत..बहुत अच्छा लगा..बधाई.
कविता मे सार है |
bahut khub.
ज़रा सी कोशिश से
बन जाती हूँ
एक घरौंदा
और फिर
न जाने कौन सी
तपिश से
यूँ ही
बिखर जाती हूँ
इतने कम शब्दों में बहुत बड़ी बात कह दी आपने..
आभार.
एक सुन्दर परिकल्पना!...बधाई!
jo baar baar toot kar phir ban jaae, uski khoobsurati aur takat ke kya kehne… vo kuch aap jaisa hi ho sakta hai… bahut hi sunder panktiyan :-)
sundar ahsas,,,sundar prastuti.....
घरौंदे बिखर गए ... उफ़! फिर बनेंगे
▬● अच्छा लगा आपकी पोस्ट को देखकर...
यह पेज देखकर और भी अच्छा लगा... काफी मेहनत की गयी है इसमें...
नव वर्ष की पूर्व संध्या पर आपके लिए सपरिवार शुभकामनायें...
मेरे ब्लॉग्स की तरफ भी आयें तो मुझे बेहद खुशी होगी...
[1] Gaane Anjaane | A Music Library (Bhoole Din, Bisri Yaaden..)
[2] Meri Lekhani, Mere Vichar..
.
Bahut sundar kavita
Sangeeta ji....bahut hi gehri najm hai. Aisa laga jo mere jeevan mei chal raha hai vahi aapne likh daala kuch panktiyon mei.
Ishwar se aapki khushiyon ki prarthna ke saath,
Shaifali
http://guptashaifali.blogspot.com
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