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कुनकुनी धूप

>> Sunday, 25 December 2011


 



धूप जो निकली है 
कुनकुनी सी 
मन होता है कि  
घूंट घूंट पी लूँ  
तृप्त हो जाऊं 
तो फिर मैं 
झंझावातों की 
आंधियां भी जी लूँ .


76 comments:

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') Sun Dec 25, 03:07:00 pm  

घूँट घूँट धुप को पीना....
बहुत खूब दी.... सुन्दर ख़याल...
सादर...

मेरी क्रिसमस.

रश्मि प्रभा... Sun Dec 25, 03:12:00 pm  

सूरज की गर्मी आत्मसात करके ज़िन्दगी से जूझने का मनोबल हमेशा रहे

अनुपमा पाठक Sun Dec 25, 03:13:00 pm  

once the soul is rejuvenated... hardships can be dealt with heroically:)
घूँट घूँट धूप से तृप्त होने की कोमल सी यह तमन्ना...
और घूँट घूँट भीतर समाती हुई कविता!
बहुत सुन्दर!

Sadhana Vaid Sun Dec 25, 03:21:00 pm  

बहुत खूब ! घूँट-घूँट धूप के पान के साथ सूर्य की ऊर्जा को आत्मसात कर जीवन के झंझावातों से जूझने की सामर्थ्य बटोर लेने का आपका यह जज़्बा बहुत पसंद आया ! अत्युत्तम !

प्रवीण पाण्डेय Sun Dec 25, 03:44:00 pm  

बूँद बूँद घूँट पीना कितनी गर्माहट दे जाता है इस बर्फीले माहौल में।

अरुण चन्द्र रॉय Sun Dec 25, 03:45:00 pm  

धूप को पीने का विम्ब अच्छा बना है.. बहुत सुन्दर...

Amrita Tanmay Sun Dec 25, 04:07:00 pm  

कुनकुनाया मन मानो आँधी को ललकार रहा हो..

इस्मत ज़ैदी Sun Dec 25, 04:16:00 pm  

तो फिर मैं
झंझावातों की
आंधियां भी जी लूँ .

वाह !!
हमेशा की तरह नवीन विचारों को पढ़ पाने का ख़ूबसूरत एहसास मिला इस ब्लॉग पर आ कर !!

स्वाति Sun Dec 25, 04:48:00 pm  

man ki tripti sfurti deti hai...bahut sundar..aabhaar...

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) Sun Dec 25, 05:33:00 pm  

धूप को घूँट- घूँट पीना बिल्कुल ही अछूती कल्पना है, बहुत सुंदर....

Yashwant R. B. Mathur Sun Dec 25, 05:44:00 pm  

बेहतरीन।


सादर

Nidhi Sun Dec 25, 05:50:00 pm  

dhoop sii gungunii..........

संध्या शर्मा Sun Dec 25, 06:18:00 pm  

आँधियों को जीना कला है जीने की... बिरले ही समझ पाते हैं इसे... बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति... आभार

प्रतुल वशिष्ठ Sun Dec 25, 06:36:00 pm  

@ मैंने भी आपकी पंक्तियों से ही अभ्यास किया है, जो मेरा सच है...
______

धूप जो निकली है
बारह बजे
छत पर...
मुझे पिछड़ेपन का एहसास कराने को.
ठण्ड से सिकुड़ रहे थे हाथ-पाँव
मेरा दुमंजिला मकान भी
अपने चारों ओर बने
चार और पाँच मंजिले मकानों को देख
जड़ियाये खड़ा है.

जब भी आंधी-झंझावात आते हैं.
मुझे और मेरे मकान को छोड़ जाते हैं.
सारे थपेड़े सारा क्रोध
लम्बे-लम्बे बहुमंजलीय मकानों पर निकाल
चले जाते हैं.

प्रतिभा सक्सेना Sun Dec 25, 06:45:00 pm  

दोनो ही प्रयोग सुन्दर और सार्थक है !

डॉ टी एस दराल Sun Dec 25, 06:59:00 pm  

दिन की धूप ही रात की सर्दी से बचाव करती है ।
न पियो तो रिकेट्स हो सकती है ।

Nirantar Sun Dec 25, 07:00:00 pm  

sundar panktiyaan

zazbaa ,sabr aur saahas ho to bhee
jhanjhaavton se paar paayaa paa jaa saktaa hai

संगीता स्वरुप ( गीत ) Sun Dec 25, 07:22:00 pm  

आभार ...

@ प्रतुल जी ,
आपका अभ्यास गजब कर रहा है .. शुक्रिया

देवेन्द्र पाण्डेय Sun Dec 25, 07:27:00 pm  

कुनकुनी धूप की प्यास कभी नहीं बुझती।

मनोज कुमार Sun Dec 25, 07:38:00 pm  

जिसके जीवन में धूप भर गया
वह हर मुसीबत पार कर गया।

पी.सी.गोदियाल "परचेत" Sun Dec 25, 08:00:00 pm  

तृप्त हो जाऊं
तो फिर मैं
झंझावातों की
आंधियां भी जी लूँ .
सुन्दर !

shikha varshney Sun Dec 25, 08:15:00 pm  

ये घूँट घूँट पी हुई धूप ही जीवन का संबल है.
४ पंक्तियों में पूरा जीवन समेट दिया.

Aruna Kapoor Sun Dec 25, 08:51:00 pm  

वाह वाह!...सर्दियों का मौसम और कुनकुनी धुप...मजा आ गया!...बहुत बढ़िया अहसास करवाया आपने संगीता जी!

उपेन्द्र नाथ Sun Dec 25, 09:44:00 pm  

is kunkuni doop ka sunder ehsas. ....badiya prastuti.

सूबेदार Mon Dec 26, 12:25:00 am  

कबिता छोटी परन्तु भावपूर्ण बहुत सुन्दर प्रभावित किया आपने.

Anju Mon Dec 26, 01:10:00 am  

तो फिर मैं
झंझावातों की
आंधियां भी जी लूँ ............बेहतरीन ....

Dr.NISHA MAHARANA Mon Dec 26, 08:23:00 am  

तृप्त हो जाऊं
तो फिर मैं
झंझावातों की
आंधियां भी जी लूँ .very nice expression.

vandana gupta Mon Dec 26, 10:58:00 am  

मन होता है कि
घूंट घूंट पी लूँ
तृप्त हो जाऊं
तो फिर मैं
झंझावातों की
आंधियां भी जी लूँ .
बेहद गहन विचारो का समावेश्……………सुन्दर भावाव्यक्ति।

vidya Mon Dec 26, 11:52:00 am  

वाह...
चंद पंक्तियाँ मानों पूरी कथा कह गयीं..
सादर..

Yashwant R. B. Mathur Mon Dec 26, 11:52:00 am  

कल 27/12/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!

सदा Mon Dec 26, 12:14:00 pm  

तृप्त हो जाऊं
तो फिर मैं
झंझावातों की
आंधियां भी जी लूँ .
सुन्दर !

वाह ...बहुत खूब।

दर्शन कौर धनोय Mon Dec 26, 12:49:00 pm  

घूंट घूंट पी लूँ
तृप्त हो जाऊं
तो फिर मैं
झंझावातों की
आंधियां भी जी लूँ .वाह ...बहुत खूब।

ashish Mon Dec 26, 12:51:00 pm  

कम शब्दों में बहुत कह जाने की की परंपरा में एक और कड़ी .

Kunwar Kusumesh Mon Dec 26, 02:12:00 pm  

गहन तथा भावपूर्ण अभिव्यक्ति.

वाणी गीत Mon Dec 26, 03:42:00 pm  

ठण्ड से जिंदगी के दर्द और कुनकुनी धूप सा हौसला ...
बेहतरीन !

रेखा श्रीवास्तव Mon Dec 26, 04:10:00 pm  

बहुत सुंदर शायद सूर्य की किरणें ही देती हें नए दिन के साथ धूप लेकर ऊर्जा लेने के लिए और उस बात को सुंदर भावों में ढाला है.
बधाई इस सन्देश के लिए.

ब्लॉ.ललित शर्मा Mon Dec 26, 04:48:00 pm  

वाह! कुनकुनी धूप से उर्जा ग्रहण करना अच्छा लगा।

sangita Mon Dec 26, 05:15:00 pm  

सूर्य की उर्जा से जीवन को जीतने की निराली बात कही है आपने सुन्दर रचना ||

vikram7 Mon Dec 26, 05:54:00 pm  

सुन्दर रचना

चला बिहारी ब्लॉगर बनने Mon Dec 26, 07:28:00 pm  

यही तो हैं दो बूँद ज़िंदगी के... एक कतरा धूप और कितनी बड़ी ताकत मिल जाती है!!
बहुत सुन्दर, संगीता दी!!

***Punam*** Mon Dec 26, 08:47:00 pm  

"घूंट घूंट पी लूँ
तृप्त हो जाऊं "

और नए साल की शुभ कामनाएं....

ऋता शेखर 'मधु' Mon Dec 26, 09:11:00 pm  

गहन अभिव्यक्ति...

अनामिका की सदायें ...... Tue Dec 27, 11:18:00 am  

jiwan ki raah saral karne ke liye ye bhi soch uttam hai.

कविता रावत Tue Dec 27, 05:30:00 pm  

har din prerana ban udit hota hai suraj apni rashmiyan bikher kar..
jiwan jhanjhawaton ko dradta se samna karati sundar rachna..aabhar!

डॉ. दिलबागसिंह विर्क Tue Dec 27, 07:27:00 pm  

आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें
चर्चा मंच-741:चर्चाकार-दिलबाग विर्क

www.navincchaturvedi.blogspot.com Tue Dec 27, 09:23:00 pm  

'वाह' इस से न तो कम और न अधिक
हतप्रभ हूँ इस सादगी भरे बयान पर

vidya Tue Dec 27, 10:26:00 pm  

आदरणीय संगीता जी.
आपका बहुत आभार मेरे ब्लॉग पर आने के लिए और मेरी कविताएं पसंद करने लिए....
धन्य हुआ मेरा ब्लॉग..
स्नेह बनाये रखिये
सादर नमन.

Jeevan Pushp Wed Dec 28, 11:07:00 am  

धुप की घूंट की दरकार है !
बहुत सुन्दर !

Pallavi saxena Thu Dec 29, 09:20:00 pm  

हमेशा की तरह शानदार गहन अभिव्यक्ति चंद पंक्तियों में ही जीवन का सार लिख दिया आपने आभार...

सु-मन (Suman Kapoor) Thu Dec 29, 10:26:00 pm  

कम शब्दों में बहुत कुछ कहना आपकी खासियत है ...

Amit Chandra Fri Dec 30, 01:09:00 pm  

कम शब्द संपूर्ण भाव.

M VERMA Fri Dec 30, 08:23:00 pm  

धुप की घूँट .. क्या कहने

Bharat Bhushan Sat Dec 31, 10:40:00 pm  

आपको और परिवारजनों को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ.

Jeevan Pushp Mon Jan 02, 06:16:00 pm  

आपको भी नववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें!
आभार !

Urmi Mon Jan 02, 09:48:00 pm  

आपको एवं आपके परिवार के सभी सदस्य को नये साल की ढेर सारी शुभकामनायें !
उम्दा रचना!

डॉ.मीनाक्षी स्वामी Meenakshi Swami Tue Jan 03, 04:52:00 pm  

भावपूर्ण अभिव्यक्ति।
शुभकामनाएं।
नव वर्ष मंगलमय हो।

वन्दना अवस्थी दुबे Wed Jan 04, 04:58:00 pm  

क्या बात है!!
नव वर्ष पर आपको और आपके परिवार को हार्दिक शुभकामनायें।

amit kumar srivastava Thu Jan 05, 09:41:00 pm  

नव वर्ष मंगलमय हो।

Kunwar Kusumesh Sat Jan 07, 09:05:00 am  

नववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें.

Asha Joglekar Sun Jan 08, 01:03:00 pm  

धूप को घूंट घूंट पीना वाह क्या नवीनतम कल्पना है मन करता है सचमुच धूप पी लें ।
अति सुंदर ।

Rachana Mon Jan 09, 07:48:00 pm  

bahut khoob suraj ko ghunt ghunt pina kamal ki soch
badhai
rachana

मेरे भाव Fri Jan 13, 05:59:00 pm  

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया Sat Jan 14, 02:16:00 pm  

बहुत अच्छी सुंदर प्रस्तुति,बढ़िया अभिव्यक्ति रचना अच्छी लगी.....
new post--काव्यान्जलि : हमदर्द.....

Maheshwari kaneri Tue Jan 17, 01:35:00 pm  

बहुत सुन्दर और भावपूर्ण अभिव्यक्ति !...

Bharat Bhushan Fri Jan 20, 10:54:00 am  

एक अहसास को ख़ूब कहा है आपने.

Naveen Mani Tripathi Fri Jan 20, 06:52:00 pm  

sundadr bhavabhiyakti.....ak chhoti kintu prabhavshali rachana ...sadar abhar Sangeeta ji.

S.N SHUKLA Mon Jan 23, 11:46:00 am  

thode se shabdon men bahut kuchh, saadar.

ghughutibasuti Mon Jan 30, 07:09:00 pm  

सुंदर! धूप पीना! वाह!
घुघूतीबासूती

Anonymous Mon Mar 26, 09:14:00 pm  

बहुत सुंदर रचना संगीता जी... इस ब्लॉग पर तो कमाल की रचनाएँ हैं.. पहले ये रचनाएँ न पढ़ पाने का अफ़सोस हो रहा है... तिरसठ की चाह हो या बसंत या वक़्त की आंधी हो या फ़िर आँसू और बारिश...सारी क्षणिकाएं और हाइकू बस बेमिसाल हैं...

और कुनकुनी धूप का तो कोई जवाब ही नहीं.... कहीं गहरे तक मन को छू गयी..

रफ़्तार

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