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अनजाने अक्स

>> Tuesday, 15 June 2010










कभी कभी 
तन्हाई में 
टिक जाती है 
नज़र
कहीं शून्य में
उतरने लगते हैं 
अक्स 
जान - पहचान
और
अनजान लोगों के...
और मैं घबरा कर
बंद कर लेती हूँ पलकें

धीरे धीरे 
धुंधले से 
होने लगते हैं
सारे अक्स  
और 
रह जाती है 
मात्र एक 
सपाट दीवार .





51 comments:

rashmi ravija Tue Jun 15, 04:11:00 pm  

हम्म..चेहरे बहुत कुछ याद दिला देते हैं...और घबरा कर आँखें बंद करनी पड़ती हैं...संवेदनशील पंक्तियाँ

shikha varshney Tue Jun 15, 04:18:00 pm  

खाली बैठे यही होता है :) बहुत कुछ जाना - अनजाना देख जाता है ..बहुत बढ़िया कविता है .

Amit Sharma Tue Jun 15, 04:23:00 pm  

और मैं घबरा कर
बंद कर लेती हूँ पलकें

सही कहा आपने आजकल जीवन ऐसे पल कम ही आने लगे है जिन्हें याद करके उल्लास से आँखे और चौड़ी हो जाये .

पी.सी.गोदियाल "परचेत" Tue Jun 15, 04:38:00 pm  

एकाकी पन का कटु अहसास सुन्दरता के साथ पिरोया आपने अपनी रचना में !

Shekhar Kumawat Tue Jun 15, 04:39:00 pm  

धीरे धीरे
धुंधले से
होने लगते हैं
सारे अक्स
और
रह जाती है
मात्र एक
सपाट दीवा


shandar

दिलीप Tue Jun 15, 04:51:00 pm  

sahi kaha kuch yaadein yunhi shoony me aakar aksar pareshan karti hain...bahut sundar rachna...

रेखा श्रीवास्तव Tue Jun 15, 04:55:00 pm  

बहुत सुन्दर ! भावों के तरण ताल में डूबते हुए बहुत कुछ रचा जाता है लेकिन ये एकदम सहज अनुभूति को जिस ढंग से शब्दों में ढाला है न, बहुत सशक्त लेखनी का प्रतीक है.

kshama Tue Jun 15, 05:06:00 pm  

Bahut sundar alfaaz...par palken band karke bhi,zehan se aks nahi mitte...kya karen?

कडुवासच Tue Jun 15, 05:10:00 pm  

....बेहतरीन रचना!!!

anoop joshi Tue Jun 15, 05:41:00 pm  

madam aankh band kar ke bhi. nahi mit paati dil se yadon ka tufaan

Sunil Kumar Tue Jun 15, 05:42:00 pm  

बहुत सुन्दर ,बेहतरीन रचना!!!

Arshad Ali Tue Jun 15, 05:53:00 pm  

behad sadhi hui kavita...pura bhaw nikal kar samne aata hua.
badhai

माधव( Madhav) Tue Jun 15, 06:04:00 pm  

बेहतरीन रचना!!

नीरज गोस्वामी Tue Jun 15, 06:04:00 pm  

सुन्दर भावपूर्ण रचना...बधाई
नीरज

seema gupta Tue Jun 15, 06:09:00 pm  

धीरे धीरे
धुंधले से
होने लगते हैं
सारे अक्स
और
रह जाती है
मात्र एक
सपाट दीवार .
"कितने अजीब अजीब एहसास से गुजर होता है हमारे जहन का......लाजवाब
regards

रश्मि प्रभा... Tue Jun 15, 06:20:00 pm  

धीरे धीरे
धुंधले से
होने लगते हैं
सारे अक्स
............yahi rahta hai saar

दिगम्बर नासवा Tue Jun 15, 06:24:00 pm  

शायद ऐसी स्थिति को ही योग कहते हैं .. जब सब कुछ निकल जाए ... शून्य ही शून्य हो बस ....

Arvind Mishra Tue Jun 15, 06:47:00 pm  

आंख मूद ही लिया करिए .....मूदहु आँख कतहु कुछ नाहीं !
कुछ कहती है कविता !

स्वप्निल तिवारी Tue Jun 15, 06:49:00 pm  

hehehe..ye to googly ho gayi mumma..ek kahani padhi thi ..face on the wall... usme na...ek aadmi ke ghar ki deewar pe chehra ubharne lagta hai ..dheere dheere roz wo spasht hota jata hai ...aapki nazm me to ulta ho gaya...lekin kitni sahi bat hai ...

अनामिका की सदायें ...... Tue Jun 15, 06:50:00 pm  

तन्हाई के विचारो का आइना खूबसूरती से पेश किया आपने.

Rajeysha Tue Jun 15, 07:06:00 pm  

ध्‍यान के अददभुत अनुभव का सजीव वर्णन कि‍या है ऐसा ही ओशो ने भी कहीं लि‍खा है... बहुत ही..

vandana gupta Tue Jun 15, 07:33:00 pm  

बहुत सुन्दर भावप्रवण रचना।

मनोज कुमार Tue Jun 15, 07:35:00 pm  

यह कविता विषय को कलात्‍मक ढंग से प्रस्तुत करती है ।

sanu shukla Tue Jun 15, 08:09:00 pm  

धीरे धीरे
धुंधले से
होने लगते हैं
सारे अक्स
और
रह जाती है
मात्र एक
सपाट दीवार .
बेहद भावपूर्ण सुंदर रचना....

Apanatva Tue Jun 15, 08:18:00 pm  

meree samajh se oochee soch hotee hai aapkee.......

सम्वेदना के स्वर Wed Jun 16, 12:50:00 am  

एक अनुभव जिससे हर कोई रू ब रू होता है आए दिन... आज जब आपने उन्हें अल्फाज़ दे दिए तो लगा जैसे उस बात में गिरह लग गई...

M VERMA Wed Jun 16, 06:45:00 am  

गज़ब का एहसास पिरोया है
गज़ब का निरीक्षण है आपका
अक्स फिर उभरेंगे

Unknown Wed Jun 16, 08:11:00 am  

well..thts the truth..at the end ..we always find ourselves alone!!!
do see my new poem "Ye kaisa samaaj!!"

मुकेश कुमार सिन्हा Wed Jun 16, 09:28:00 am  

aapki shailly lajabab hai, ek dum seedhe sapat sabdo me apne mann ki baato ko dusre se jod leti hai...:)

hamesha ki tarah ek khubsurat rachna!

Anonymous Wed Jun 16, 11:52:00 am  

वैसे तो हमेशा ही आपका लेखन शानदार रहता है लेकिन आज उसमें गंभीरता का चटखपन ज्यादा है। इतना सुंदर आप सब लोग कैसे लिख लेते हैं, कई बार यही सोचकर मैं दुविधा में पड़ जाता हूं। शायद अभी मुझे अनुभव के तौर पर बहुत कुछ हासिल करना है।

राजेश उत्‍साही Wed Jun 16, 12:25:00 pm  

संगीता जी दीवार सपाट नहीं होती है वहां वह लिखा होता है जिसे हम अभी तक नहीं पढ़ पाए हैं।

Avinash Chandra Wed Jun 16, 03:37:00 pm  

और मैं घबरा कर
बंद कर लेती हूँ पलकें

wakai..palko ka yun band hona badh gaya hai aajkal

राजकुमार सोनी Wed Jun 16, 05:16:00 pm  

आपकी रचना हर बार कुछ सोचने के लिए नया आयाम दे जाती है। जैसे गांधारी वाली कविता थी।
आपको बधाई।

sheetal Wed Jun 16, 07:38:00 pm  

jab man bhari ho jaata hain,
aur tanhai main man ghabraata hain,
to us anant vichaaro ki gehrai main yeh dil humko le jaata hain,
tabhi to hume yuhi jaane anjaane chehare ka deedar ho jaata hain.

gaurtalab Thu Jun 17, 10:54:00 am  

bahut khub....bahut sundar rachna

mukti Fri Jun 18, 12:09:00 am  

आप भावनाओं के बिखरे मोती कैसे शब्दों में पिरो देती हैं... बहुत अच्छी लगी ये कृति.

Shabad shabad Fri Jun 18, 04:36:00 am  

सुन्दर कविता...
धीरे धीरे
धुंधले से
होने लगते हैं
सारे अक्स
और
रह जाती है
मात्र एक
सपाट दीवा...

भावपूर्ण पंक्तियाँ....

Akshitaa (Pakhi) Fri Jun 18, 11:24:00 am  

सुन्दर गीत लिखा आपने ..बधाई.

निर्मला कपिला Fri Jun 18, 08:41:00 pm  

होता है होता है बहुत बार होता है। सुन्दर अभिव्यक्ति शुभकामनायें

हरकीरत ' हीर' Fri Jun 18, 11:43:00 pm  

अब इतनी जोर से भी आँखें बंद मत कीजिये संगीता जी ......

वैसे ये चेहरा आपका तो नहीं ........??

ज्योति सिंह Sat Jun 19, 11:23:00 am  

harkirat ji to maja laga di ,rachna wakai sundar hai ek dhoondhali tasvir khyalo me basi hoti hai .

rajesh singh kshatri Sat Jun 19, 02:27:00 pm  

बहुत सुन्दर...

सम्वेदना के स्वर Sun Jun 20, 01:59:00 pm  

आप हमारी श्रद्धेय हैं... इसलिए सीधा पूछने का दुःसाहस कर रहा हूँ... हमसे नाराज़ हैं क्या? कुछ लोगों की नाराज़गी खलती है और न आना और भी खलता है, इसलिए सोचा सीधा पूछ लूँ... अपने किसी अनकिए अनजाने अपराध की क्षमा सहित… आपके उत्तर की प्रतीक्षा रहेगी!!

hem pandey Sun Jun 20, 04:43:00 pm  

यही धुंधले अक्स समय आने पर फिर से स्पष्ट उभर आते हैं.

लोकेन्द्र सिंह Sun Jun 20, 06:33:00 pm  

धीरे धीरे
धुंधले से
होने लगते हैं
सारे अक्स
और
रह जाती है
मात्र एक
सपाट दीवार..............
सही लिखा जी

वन्दना अवस्थी दुबे Mon Jun 21, 03:32:00 pm  

क्या बात है संगीता जी...बहुत सुन्दर.

रावेंद्रकुमार रवि Mon Jun 21, 05:48:00 pm  

यह तो बहुत कठिन प्राणायाम है!
--
इसे कर पाना सबके वश की बात नहीं!

Sulabh Jaiswal "सुलभ" Tue Jun 22, 09:59:00 am  

कुछ अक्स डरावने भी हो जाते हैं...

Dr. Tripat Mehta Tue Jun 22, 03:40:00 pm  

wah wah! kya baat hai!

log on http://doctornaresh.blogspot.com/

i just hope u will like it!

ѕнαιя ∂я. ѕαηנαу ∂αηι Thu Jul 15, 05:51:00 pm  

और रह जाती है एक सपाट दीवार। ख़ूबसूरत लाइनें

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