कुछ विशेष नहीं है जो कुछ अपने बारे में बताऊँ...
मन के भावों को
कैसे सब तक पहुँचाऊँ
कुछ लिखूं या
फिर कुछ गाऊँ
।
चिंतन हो
जब किसी बात पर
और मन में
मंथन चलता हो
उन भावों को
लिख कर मैं
शब्दों में
तिरोहित कर जाऊं ।
सोच - विचारों की शक्ति
जब कुछ
उथल -पुथल सा
करती हो
उन भावों को
गढ़ कर मैं
अपनी बात
सुना जाऊँ
जो दिखता है
आस - पास
मन उससे
उद्वेलित होता है
उन भावों को
साक्ष्य रूप दे
मैं कविता सी
कह जाऊं.
संगीता दी, मुस्कुरा रहा हूँ आपकी कल्पना पर, स्तब्ध हूँ इस अभिव्यक्ति के कैप्सुल पर और गुनगुना रहा हूँ, मन्ना दा का गीत बस ये चुप सी लगी है, नहीं उदास नहीं. ग्रेट!!! सलिल
आपके चंद शब्द औरों को निशब्द कर देने की अद्भुत क्षमता रखते हैं ! क्या कहूँ ! इस खामोशी को तो आपके लबों से हटाना ही होगा ताकि आपका मौन मुखर हो सके ! लाजवाब रचना !
मुस्कुराना चाहते है तो यहाँ आये :- (क्या आपने भी कभी ऐसा प्रेमपत्र लिखा है ..) (क्या आप के कंप्यूटर में भी ये खराबी है .... ) http://thodamuskurakardekho.blogspot.com
83 comments:
तरल संवेदनाओं से रची कविता हमारे मन को छू गई और आपकी सामर्थ्य और कलात्मक शक्ति से परिचय करा गई।
गीली मिट्टी पर पैरों के निशान!!, “मनोज” पर, ... देखिए ...ना!
Bahut sundar
खानाबदोश खामोशियाँ --बहुत खूबसूरत उत्पत्ति है शब्दों की ।
अति सुन्दर ।
कमाल का लेखन है आपका शुभकामनायें
खानाबदोशी की
ज़िंदगी शायद....
वाह क्या शब्द प्रयोग किया है...एक दम नया प्रयोग. बहुत असरदार.
बधाई.
अरे वाह..!
संगीता बहिन जी!
आपने तो बहुत ही सुन्दर क्षणिका लगाई है!
--
बहुत-बहुत बधाई!
ओह अब ये खामोशियाँ भी खानाबदोश हो गईं मेरी ..
तरह :(
बहुत अच्छा लिखा है दी !(
बहुत सुन्दर , उत्तम रचना, संगीता जी ! चंद शब्द और दिल के भीतर तक कुरेदन !
kam lafz itne gahan larajte ehsaas
वाह...लाजवाब शब्द और कमाल के भाव...
नीरज
:) :) :) khamosh main bhi hun :)
संगीता दी,
मुस्कुरा रहा हूँ आपकी कल्पना पर, स्तब्ध हूँ इस अभिव्यक्ति के कैप्सुल पर और गुनगुना रहा हूँ, मन्ना दा का गीत
बस ये चुप सी लगी है, नहीं उदास नहीं.
ग्रेट!!!
सलिल
मै स्तब्ध ना होते हुए और इस नीरवता को चीरते हुए कुछ बोल लू क्या? ऐसा लगता है जैसे क्षणिकाए आपकी गणिकाए है .कम वाणों(शब्दों ) द्वारा अचूक शर संधान.
bahut khoobsoorat chhutki nazm mumma..:):)........hehhe ye mujhe likhna chahiye thi..nai??? ;D
लगता है खामोशियाँ फ़कीर नहीं होतीं, जोगी नहीं होतीं.. :) सुन्दर क्षणिका..
संगीता जी --बहुत खूब कितना वर्णन करू अति सुन्दर.
Na jane aise kitne nayab moti aap ne ikatthe kar liye hain!
खामोशी से सुन्दर अहसास उकेरे हैं...
खामोशी को बहुत सुन्दर लफ्जों मे बयान किया है ...........
बहुत ही लाजवाब, शुभकामनाएं.
रामराम.
बहुत ही लाजवाब, शुभकामनाएं.
रामराम.
आपकी रचनाएँ निःशब्द कर देतीं हैं.....
kam shabd gehri baat.. aapki rachna hume bhi nishabd kar gayee.. bismit kar deti hai aapki kavitaayen
खामोशी वो भी खानाबदोश , वाह! कमाल कर दिया आपने। बहतरीन एक अर्थपूर्ण रचना। शुभकामनायेँ! -: VISIT MY BLOG :- जब तन्हा हो किसी सफर मेँ, ............. गजल को पढ़कर अपने अमूल्य विचार व्यक्त करने के लिए आप सादर आमंत्रित हैँ। आप इस लिँक पर क्लिक कर सकती हैँ।
रेखा श्रीवास्तव जी ने कहा
संगीता,
कमेन्ट बॉक्स नहीं खुल रहा है पता नहीं क्यों? ये गड़बड़ होने लगी है. मेरा कमेन्ट पोस्ट करने का कष्ट मैं दे रही हूँ.
"खामोशियों की भी अपनी एक भाषा होती है, उसके पढ़ लें तो फिर कुछ और पढ़ने में परेशानी नहीं होती.
एक बेहतरीन और लाजबाब अभिव्यक्ति.
दी नमस्ते |
आप की रचना के लिए ये सेर .....
उन खामोश लबों की तश्वीर आज भी उभर आती है,
बंद जब मै करता हूँ पलकें उनका नाम ले कर ||
आपके चंद शब्द औरों को निशब्द कर देने की अद्भुत क्षमता रखते हैं ! क्या कहूँ ! इस खामोशी को तो आपके लबों से हटाना ही होगा ताकि आपका मौन मुखर हो सके ! लाजवाब रचना !
bahut sundar.....sangeeta ji.. jitna khoobsoorat chitr usse kai shaandaar aapki khaamoshi ke sabd... umdaa
मौन को शब्द देती ये रचना बहुत सुंदर है।
हिन्दी का प्रचार राष्ट्रीयता का प्रचार है।
हिंदी और अर्थव्यवस्था, राजभाषा हिन्दी पर, पधारें
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ...और ऊपर वाला चित्र इसकी खूबसूरती में चार चाँद लगा रहा है.
खामोशियां, अच्छी हैं।
खामोशियाँ
ठहर गयीं हैं
आज
आ कर
मेरे लबों पर
खानाबदोशी की
ज़िंदगी शायद
उन्हें
रास नहीं आई
वाह! बेहतरीन अभिव्यक्ति!
बेहद खूबसूरत भाव भर दिये हैं चंद लफ़्ज़ों मे ही……………गज़ब्।
खामोशियों ने बहुत कुछ कह दिया...
Sangeeta di........aapke chhote chhote post lajabab karte hain.....:)
ham jaiso ko naye sabd mil jate hain!!
खामोशियों का दर दर भटकना। अद्भुत कल्पना।
खामोशियाँ
ठहर गयीं हैं
आज
आ कर
मेरे लबों पर
खानाबदोशी की
ज़िंदगी शायद
उन्हें
रास नहीं आई
बहुत ही सुन्दर शब्द, बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
Kya fan paya hai aapne..kam alfaaz aur bahut badi baat! Kaise seekhen aapse ye hunar?
लाजबाब अभिव्यक्ति खामोशियों ने कुछ कुछ कह दिया
सुन्दर क्षणिका !
बहुत-बहुत बधाई!
wow!....kyaa baat hai!
खानाबदोशी की जिंदगी कब रास आती है खामोशियों को वह तो अफवाहों का सफर है ।
संगीता जी, वाह वाह वाह
कमाल की नज़्म पेश की है आपने...
बार बार बधाई...शुभकामनाएं.
sangeeta ji aapki rachna dil chho gayee bahut behatreen shabdon ki mala me piroya hai aapne dhanyawad
sunder...
sankshipt kalevar me simti arthpoorn rachna..
behtreen sambad khud se
सार्थक लेखन के लिए बधाई
साधुवाद
लोहे की भैंस-नया अविष्कार
आपकी पोस्ट ब्लॉग4वार्ता पर
वाह ! सच गागर में सागर .....आपकी हर प्रस्तुति दिल को छू लेती है .
बहुत गहरी भावनाओं का समागम है ....आभार !
Small Words..but Ram Vaan
सुन्दर रचना
क्या ख्याल है .... बहुत खूब ... इन खामोशियों को भी तो टूटे दिल का साथ ही अच्छा लगता है ...
Kam shabd lekin bahut sarthak aur gahre bhav---.
Poonam
संगीता जी, एक सुंदर और सशक्त अभिव्यक्ति....धन्यवाद
सार्थक अभिव्यक्ति.....
सच में बहुत ही गहरी बात कही गई.
खानबदोशी तो शब्द ही किसी को रास नहीं आता
... behatreen !!!
बहुत खूब!
घुघूती बासूती
bahoot hi gahre bhav...........
बहुत ख़ूबसूरत और लाजवाब रचना लिखा है आपने! बधाई!
सुन्दर रचना।
यहाँ भी पधारें :-
No Right Click
कमाल का लेखन है आपका शुभकामनायें
bahut hi sunder h y rachna
dhanyvad
सुन्दर
आपको एवं आपके परिवार को गणेश चतुर्थी की शुभकामनायें ! भगवान श्री गणेश आपको एवं आपके परिवार को सुख-स्मृद्धि प्रदान करें !
Bahut sundar
खानाबदोश खामोशियाँ...........
बहुत खूबसूरत
sangeeta ji...kam mein jyada kehne ka hunar kisi kisi mein hota hai aur aap us par kayam hai :)
in khamoshiyo ko aawaz ki drkar hai .
लाजवाब
खामोशियों का लाजवाब अभिव्यक्ति...
मन को छू गई और आपकी रचना.........
खानाबदोश खामोशियाँ...........
bahut sundar blog...shubhkaamnayein..
अच्छी पंक्तिया लिखी है आपने ....
मुस्कुराना चाहते है तो यहाँ आये :-
(क्या आपने भी कभी ऐसा प्रेमपत्र लिखा है ..)
(क्या आप के कंप्यूटर में भी ये खराबी है .... )
http://thodamuskurakardekho.blogspot.com
बहुत गहरे भाव सँजोये हुये रचना हैँ। आभार! -: VISIT MY BLOG :- जिसको तुम अपना कहते हो .............. कविता को पढ़कर तथा ब्लोग Mind and body researches को पढ़कर अपने अमूल्य विचार व्यक्त करने के लिए आप सादर आमँत्रित हैँ।
WWWWWWWWAAAAHHHHH !!!!
खानाबदोश जिंदगी ....वाह क्या सुंदर अभिव्यक्ति की है आपने , और खामोशियों का ठहर जाना तो अंदर तक सिहरन पैदा कर जाता है .....
नमस्कार . बहुत - बहुत धन्यवाद .
मैंने अपने ब्लॉग से शब्द वेरिफिकासन हटा दिया है .
सादर
नित्यानंद
संगीता जी, वाह वाह वाह
कमाल की नज़्म पेश की है आपने...
बधाई...शुभकामनाएं
bahut khoobsoorat nazm hai Mumma..shayad main pehle padh ke ispe comment kar chukin hoon....fir se sahi..:):)
बहुत खुब ... दो लाइनों में क्या बात कही है आपने..
क्या बात है ...खाना बदोश ख़ामोशी ...
Nice
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