लबों की गाँठ ....
>> Thursday, 18 November 2010
मेज़ पर
बिखरी पड़ी हमारी बातो को
सहेज कर
रख दिया था
तुमने
और चाहा था कि
मैं कर दूँ
सारे लफ़्ज़ों को
फिर से बेतरतीब
गिरह खोल कर .
अपने लबों की,
पर
बांच ली हैं
बांच ली हैं
मैंने
सारी तहरीरें
तेरी आँखों में ही .
लफ़्ज़ों को
बेतरतीब
करने के लिए
लबों की गाँठ
खोलना ज़रूरी नहीं
71 comments:
"
अल्फाजों को
बेतरतीब
करने के लिए
लबों की गाँठ
खोलना ज़रूरी नहीं "... बहुत सुन्दर सारगर्भित और गंभीर कविता !
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति है॥
एक नजर इधर भी :-
एक अनाथ बच्चे और उसे मिली एक नयी माँ की कहानी जो पूरी होने के लिए आपके कमेन्ट कि प्रतीक्षा में है कृपया पोस्ट पर आकर उस कहानी को पूरा करने में मदद करने हेतु सभी मम्मियो और पापाओ से विनती है ॥
http://svatantravichar.blogspot.com/2010/11/blog-post_18.html
अल्फाजों को
बेतरतीब
करने के लिए
लबों की गाँठ
खोलना ज़रूरी नहीं
वाह .. बहुत सुन्दर
अल्फाजों को
बेतरतीब
करने के लिए
लबों की गाँठ
खोलना ज़रूरी नहीं
बहुत सुंदर बात कही और अपने में छिपाए हुए भावों को खूबसूरत ढंग से उकेरा है.
अल्फाजों को
बेतरतीब
करने के लिए
लबों की गाँठ
खोलना ज़रूरी नहीं
ये बात तो जबरदस्त लगी !!!!!
अल्फाजों को
बेतरतीब
करने के लिए
लबों की गाँठ
खोलना ज़रूरी नहीं
जो बात बिना कहे कही जाती है वही ज्यादा असरदार होती है……………बेहद उम्दा , दिल को छूती प्रस्तुति।
सुन्दर कविता
लबों की गाँठ
खोलना ज़रूरी नहीं
वाह वाह
लबों की गाँठ
खोलना ज़रूरी नहीं
--
बहुत सही लिखा है आपने!
--
आजकल इण्टरनेट और कम्प्यूटर का युग है,
सब कुछ तो लिखकर चैट में पूरा हो ही जाता है!
हम्म बात ठीक कही है दी !.काश ये समझ पाते सब .बहुत ही सटीक और सुन्दर अभिव्यक्ति हमेशा की तरह.
ये हुई ना बात! ऐसी कविताएं दिल खुश कर देती हैं। इस कविता में शब्दों का अद्भुत् चित्रण,के साथ-साथ मनोभावों का सूक्ष्म विश्लेषण है। कथ्य, बिम्ब योजना, शिल्प-शौष्ठव, चित्रात्मकता की दृष्टि से आपकी यह कविता मुझे श्रेष्ठ लगी।
जब आंखों से ही सब बयान हो जाए तो लबों का क्या काम।
अल्फाजों को
बेतरतीब
करने के लिए
लबों की गाँठ
खोलना ज़रूरी नहीं
वाकई इन पंक्तियों ने मन मोह लिया ......
सार्थक एवं प्रभावी लेखन के लिए बधाई एवं शुभकामनायें .......
अल्फाजों को
बेतरतीब
करने के लिए
लबों की गाँठ
खोलना ज़रूरी नहीं
सुंदर अतिसुन्दर
मुग्ध करती पंक्तियाँ।
bahut hi khubsusat tareke se likhi gye gambhir rachna
wow.. Great thoutht masi... Alfaazon ko kaid karne ka aur azaad karne ka ye andaaz bahut khoob raha
बांच ली हैं
मैंने
सारी तहरीरें
तेरी आँखों में ही .
अल्फाजों को
बेतरतीब
करने के लिए
लबों की गाँठ
खोलना ज़रूरी नहीं ..
-----
Excellent !
.
अल्फाजों को
बेतरतीब
करने के लिए
लबों की गाँठ
खोलना ज़रूरी नहीं
सुन्दर रचना कहूं तो शायद ये लबो पर गांठ लगाना होगा . इसलिए उत्कृष्ट बोलते हुए सारे गांठ खोलने का उपक्रम कर रहा हूँ ,
सारी तहरीरें
तेरी आँखों में ही .
सच कहा संगीता स्वरूप जी, आँखें सब कुछ ही तो बोल डालती हैं| सुंदर कविता, बेहतर प्रस्तुति| बधाई स्वीकार करें|
वाचाल लबों और बहुत बोलने वाली आँखों में यही फ़र्क है शायद. जहाँ आँखें समेट कर रखती हैं सबकुछ, लब बिखेर देते हैं... संगीता दी, इसी बात से एक और बात दिमाग़ में आई है.. लब पुरुष हैं शायद इसीलिए बिखराव उनका स्वभाव है और आँखें स्त्री, जिन्होंने समेट रखा है सबकुछ ..अल्फाज़ से घर बार तक!!
बहुत सुंदर!!
बेहतरीन रचना संगीताजी ! आपकी हर रचना दिल को छूती है लेकिन यह बहुत गहराई तक मन में उतर गयी है ! बहुत सुन्दर ! अनेकानेक बधाइयाँ एवं शुभकामनाएं !
... bahut sundar ... behatreen bhaavpoorn rachanaa !!!
अल्फाजों को
बेतरतीब
करने के लिए
लबों की गाँठ
खोलना ज़रूरी नहीं ...
वाह !! बहुत खूबसूरत नज़्म संगीता जी ... उम्दा प्रस्तुति ...
खूबसूरत .... उत्कृष्ट और गंभीर कविता
बहुत अच्छा लगा पढकर...
बांच ली हैं
मैंने
सारी तहरीरें
तेरी आँखों में ही .
अल्फाजों को
बेतरतीब
करने के लिए
लबों की गाँठ
खोलना ज़रूरी नहीं
वाह ! बहुत उम्दा ...
hamesha ki tarah ek gehri baat badi khoobsurati se kahi! saadar
वाह,सुन्दर अभिव्यक्ति .
"बांच ली हैं
मैंने
सारी तहरीरें
तेरी आँखों में ही .
अल्फाजों को
बेतरतीब
करने के लिए
लबों की गाँठ
खोलना ज़रूरी नहीं"
कविता में भाव भी है,प्रभाव भी है.
सुन्दर और सार्थक
bahut zordaar nazm hai mumma....pahli hi line se .. man jud jata hai is nazm se...han "alfaaz" "lafz" ka bahuvachan hai....
बहुत ही बेहतर संगीता जी !!
उफ। दर्द भरी दास्तानों के लिए अब वो नाजुक सा दिल नहीं रहा। अब तो बेशर्म कठोर हो चला है। हा हा हाहा। लेकिन आप लिखती रहें।
awwwesome.....maza aa gaya dadi....aap textbook chodkar hamari duniya mein tehelne aa gayi...ye nazm apni si lagi....too good
सही है... गांठ कोई भी हो जितनी जल्दी खुल जाए उतना अच्छा...
kitna sundre likhi hain aap.wah.
aankhe hi to mn ka aaina hoti hai jo bina bole sare bhed ,sari ganthe khol deti hai .shj prvah me bhti hui bhut bhut umda rchna .thanks
लाजवाब ......!!
आपकी नज्मों में पहले से बहुत निखार आ गया है संगीता जी ....
बधाई ....!!
लफ़्ज़ों को
बेतरतीब
करने के लिए
लबों की गाँठ
खोलना ज़रूरी नहीं
bahoot sahi kaha aapne.. sunder ehasas.
बांच ली हैं
मैंने
सारी तहरीरें
तेरी आँखों में ही .
बहुत ही सुन्दर पंक्तियां ।
labon ki gaanth bina khole bahut kuch kahti hui sundar rachna!
वाह...क्या बात कही...लाजवाब बेहतरीन !!!
बहुत ही सुन्दर रचना..
मेज़ पर
बिखरी पड़ी
हमारी बातो को
सहेज कर
रख दिया था
तुमने
बेहतरीन लिखा है.....
प्रेमरस.कॉम
संगीता जी, बहुत प्यारी है यह गांठ। क्यों न इसे गांठ ही रहने दिया जाए, हो सकता है कि इसी बहाने एक और सुंदर कविता पढने को मिल जाए।
---------
वह खूबसूरत चुड़ैल।
क्या आप सच्चे देशभक्त हैं?
बेहतरीन ! प्रशंसा के लिए शब्द नहीं है ...
आँखों की भाषा समझ आ जाये तो फिर क्या जरुरत है लबों को खोलने की.
सुंदर अभिव्यक्ति.
बहुत सुन्दर......गहरी अभिव्यक्ति..........
लफ़्ज़ों को
बेतरतीब
करने के लिए
लबों की गाँठ
खोलना ज़रूरी नहीं
वाह..बहुत खूब कही आपने..सुंदर कविता..बधाई
तेरी आँखों में ही .
लफ़्ज़ों को
बेतरतीब
करने के लिए
लबों की गाँठ
खोलना ज़रूरी नहीं
बहुत सही ...लबों कि गांठ ..अभिव्यक्ति कि स्वतंत्रता ..उन्मुक्त भावों कि उड़ान ..शुभकामनायें
लफ़्ज़ों को
बेतरतीब
करने के लिए
लबों की गाँठ
खोलना ज़रूरी नहीं
waah .....
हैं!!!!!!
जादू है ये... वाह!
कितना प्यारा...कितना अच्छा सा!
छूट कैसे गई ये मुझसे? :(
लफ़्ज़ों को
बेतरतीब
करने के लिए
लबों की गाँठ
खोलना ज़रूरी नहीं ..
बहुत खूब ... गज़ब की अभिव्यक्ति है ... कुछ कहने के लिए शब्दों की जरोरत वैसे भी नहीं होती ...
nice....
Shri Guru Nanak Dev ji de guru purab di lakh lakh vadhaian hoven ji
आप की कविता पढ़ कर आनंद मिला
दखलंदाजी ब्लाग पर विजिट करके अपना कीमती समय देने के लिए मै आप का आभारी हूँ
धन्यवाद
बहुत ही प्यारी रचना
आपको बधाई
आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ........
लफ़्ज़ों को
बेतरतीब
करने के लिए
लबों की गाँठ
खोलना ज़रूरी नहीं
..बहुत खूब. अच्छी लगीं ये पंक्तियाँ।
..चर्चा मंच नहीं खुल रहा है।
लफ़्ज़ों को
बेतरतीब
करने के लिए
लबों की गाँठ
खोलना ज़रूरी नहीं
..बहुत खूब. अच्छी लगीं ये पंक्तियाँ।
..चर्चा मंच नहीं खुल रहा है।
लफ़्ज़ों को
बेतरतीब
करने के लिए
लबों की गाँठ
खोलना ज़रूरी नहीं
..बहुत खूब. अच्छी लगीं ये पंक्तियाँ।
..चर्चा मंच नहीं खुल रहा है।
me najar se pi raha hun, ye sama badal na jaye
mera jam chhune wale tere hoth jal na jaye,
jo bat najar seki jati he, wo juban se nhi ki ja sakti
sundar abhivyakti
ठीक ही कहा है `ये आँखें बोलती हैं `! हृदय की भावनाओं की अभिव्यक्ति सच कहें तो आँखों से ही होती है !
बहुत ही भावपूर्ण कविता !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
लफ़्ज़ों को
बेतरतीब
करने के लिए
लबों की गाँठ
खोलना ज़रूरी नहीं
गहन संवेदनाओं की बेहद मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति. आभार.
सादर
डोरोथी.
भाव प्रधान कविता के लिए आभार।
मेज़ पर
बिखरी पड़ी
हमारी बातो को
सहेज कर
रख दिया था
तुमने
बहुत प्यारी रचना! एकदम अलग तरह का प्रयोग, बेहद सादे ढंग से कही गयी बात को इतना ख़ूबसूरत बना दिया कहने के अंदाज ने . इसको पढ़ कर गुलजार जी का एक गीत "मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा है" याद आ गया. बहुत प्यारी रचना! एकदम अलग तरह का प्रयोग, बेहद सादे ढंग से कही गयी बात को इतना ख़ूबसूरत बना दिया कहने के अंदाज ने . इसको पढ़ कर गुलजार जी का एक गीत "मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा है" याद आ गया. यह गुलजार जी का विशिष्ट अंदाज ही था जिसने इस गीत को खास बना दिया
मंजु
7/10
उत्कृष्ट रचना / पठनीय
अच्छी कविता मन को तृप्त कर जाती है.
मनोभावों की गहन अभिव्यक्ति जादुई प्रभाव छोडती है. प्रशंसा करने को बाध्य हूँ कि एक बहुत सुन्दर कविता सामने आई है
वाह! शानदार रचना! आपकी लेखनी को सलाम!
bahuit hi sundar ...sach may.....
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति है॥
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चची जी, अगर हमसे कोई गलती हुई हो तो माफ़ करना लेकिन अपना असिर्वाद बनाये रखिये आप के असिर्वाद की मुझे बहोत जरुरत हैं. थोडा परीछा के कारण ब्लोग्स पे समय नहीं दे पा रहाँ हूँ . मैं भी अपने ब्लोग्स को आप की तरह सजाना चाहता हु आप हेल्प करे मुझे सरे कोड सेंड करे
आप का विजय प्रताप सिंह राजपूत
बेहतरीन रचना ......सच कहा .. गांठ खोलना जरुरी तो नहीं है . पर इस कदर आपका गांठ खोलना बहुत पसंद आया .
sangeeta di
bahut hi sargarbhit avam behatreen prastuti--
रानीविशाल said...
बांच ली हैं
मैंने
सारी तहरीरें
तेरी आँखों में ही .
अल्फाजों को
बेतरतीब
करने के लिए
लबों की गाँठ
खोलना ज़रूरी नहीं
वाह ! बहुत उम्दा
poonam .
vakai main betarteeb lafzo per hi gaanth lagai jati hai fir hum unhen khol her bikhrayen kyon? bhalai isi main hai ki ganth hi lagi rahne di jaye...shukriya !!
संगीता जी बहुत सुन्दर आपने लिखा है. मन के भावों को कितनी खूबसूरती से पिरोया है.
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