ख्वाब
>> Saturday, 13 February 2010
ख्वाब बुन दिया है मैंने
रेत पर उँगलियों से
कि रात भर तेरी
खुशबू से महकती रही
सहर होते ही देखा मैंने
कि मेरी झोली तूने
पारिजात से भर दी थी ...
Read more...
नया ख्वाब
>> Sunday, 7 February 2010
मन की अल्हड़ता से
फूट पड़ते हैं सोते भी
रेगिस्तान में,
साहिल पर बैठ
रेत में उंगली फिरा
एक ख्वाब नया बुन
Read more...
मोती
>> Friday, 5 February 2010
इश्क के पैरों में
ना जाने क्यों
गम के घुंघरू
बंध जाते हैं
आँखों में
हंसी भी हो
तो भी रुखसार पर
अश्क के मोती
टपक जाते हैं
Read more...
उम्मीद
>> Tuesday, 2 February 2010
उम्मीद के रोशनदान पर
लगा दिए हैं पहरे
बंद कर पलकों को
कान खोल लिए हैं
हर आहट पर
लगता है कि
उम्मीद पूरी हो गयी
Read more...
Labels:
chhoti kavita
Subscribe to:
Posts (Atom)