कुछ विशेष नहीं है जो कुछ अपने बारे में बताऊँ...
मन के भावों को
कैसे सब तक पहुँचाऊँ
कुछ लिखूं या
फिर कुछ गाऊँ
।
चिंतन हो
जब किसी बात पर
और मन में
मंथन चलता हो
उन भावों को
लिख कर मैं
शब्दों में
तिरोहित कर जाऊं ।
सोच - विचारों की शक्ति
जब कुछ
उथल -पुथल सा
करती हो
उन भावों को
गढ़ कर मैं
अपनी बात
सुना जाऊँ
जो दिखता है
आस - पास
मन उससे
उद्वेलित होता है
उन भावों को
साक्ष्य रूप दे
मैं कविता सी
कह जाऊं.
संगीता जी, आदाब मन की अल्हड़ता से फूट पड़ते हैं सोते भी...रेगिस्तान में साहिल पर बैठ..रेत में उंगली फिरा..एक ख्वाब नया बुन आशावादी भाव लिये है आपकी यह रचना.. महाशिवरात्रि के पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं
17 comments:
अति उत्तम ,
एक ख्वाब नया बुन
kavita bahut hi achchi lagi...........
बहुत खूब, शुभकामनाएं.
रामराम.
ufffffffffffff aaz to gagar main sagar hi bhar dia.....
na na registan main sote bana diye..
toooooooooo goooooooooood
Chand panktiyan bahut kuchh kah gayin!
अच्छी अभिव्यक्ति.
बहुत ही सुन्दरता से और गहरे भाव के साथ आपने उम्दा रचना लिखा है ! बहुत बढ़िया लगा!
bahut kam shbdon mein gehra bhav ..:)
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति
कुछ ही शब्दो में एक अच्छी पिरोई हुई कविता । अच्छा लगा ।
महाशिवरात्रि की हार्दिक बधाइयाँ!
कुछ अधूरा सा लगा..!
महाशिवरात्री की शुभकामनाये़\ दो शब्दों मे सुन्दर अभिव्यक्ति ।
संगीता जी, आदाब
मन की अल्हड़ता से फूट पड़ते हैं सोते भी...रेगिस्तान में
साहिल पर बैठ..रेत में उंगली फिरा..एक ख्वाब नया बुन
आशावादी भाव लिये है आपकी यह रचना..
महाशिवरात्रि के पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं
अगली पोस्ट में उस ख्वाब के ज़िक्र का इन्तिज़ार रहेगा
sach me gagar me sagar hi bhar ahi aapne di
achchi lagi .
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