copyright. Powered by Blogger.

नया ख्वाब

>> Sunday, 7 February 2010



मन की अल्हड़ता से



फूट पड़ते हैं सोते भी


रेगिस्तान में,


साहिल पर बैठ


रेत में उंगली फिरा


एक  ख्वाब नया बुन



17 comments:

alka mishra Sun Feb 07, 06:43:00 pm  

अति उत्तम ,
एक ख्वाब नया बुन

Harshvardhan Sun Feb 07, 08:58:00 pm  

kavita bahut hi achchi lagi...........

ताऊ रामपुरिया Sun Feb 07, 10:40:00 pm  

बहुत खूब, शुभकामनाएं.

रामराम.

shikha varshney Mon Feb 08, 04:08:00 pm  

ufffffffffffff aaz to gagar main sagar hi bhar dia.....
na na registan main sote bana diye..
toooooooooo goooooooooood

shama Mon Feb 08, 07:56:00 pm  

Chand panktiyan bahut kuchh kah gayin!

Urmi Wed Feb 10, 10:21:00 am  

बहुत ही सुन्दरता से और गहरे भाव के साथ आपने उम्दा रचना लिखा है ! बहुत बढ़िया लगा!

Parul kanani Wed Feb 10, 02:40:00 pm  

bahut kam shbdon mein gehra bhav ..:)

सदा Thu Feb 11, 05:30:00 pm  

बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति

dipayan Fri Feb 12, 12:45:00 am  

कुछ ही शब्दो में एक अच्छी पिरोई हुई कविता । अच्छा लगा ।

Urmi Fri Feb 12, 03:59:00 pm  

महाशिवरात्रि की हार्दिक बधाइयाँ!

निर्मला कपिला Fri Feb 12, 07:21:00 pm  

महाशिवरात्री की शुभकामनाये़\ दो शब्दों मे सुन्दर अभिव्यक्ति ।

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' Fri Feb 12, 11:27:00 pm  

संगीता जी, आदाब
मन की अल्हड़ता से फूट पड़ते हैं सोते भी...रेगिस्तान में
साहिल पर बैठ..रेत में उंगली फिरा..एक ख्वाब नया बुन
आशावादी भाव लिये है आपकी यह रचना..
महाशिवरात्रि के पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं

रचना दीक्षित Sat Feb 13, 12:13:00 pm  

अगली पोस्ट में उस ख्वाब के ज़िक्र का इन्तिज़ार रहेगा

Khare A Sat Feb 20, 03:29:00 pm  

sach me gagar me sagar hi bhar ahi aapne di

रफ़्तार

About This Blog

Labels

Lorem Ipsum

ब्लॉग प्रहरी

ब्लॉग परिवार

Blog parivaar

हमारी वाणी

www.hamarivani.com

लालित्य

  © Free Blogger Templates Wild Birds by Ourblogtemplates.com 2008

Back to TOP