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ख्यालों के निशाँ

>> Friday, 16 July 2010




साहिल है मेरी सोच 

मन के सागर की 

तेरी यादों की रेत पर 

मेरे ख्यालों के निशाँ हैं 

उन नक़्शे पाँव पर 

जब मैंने अपनी 

चाहत को रखा तो 

हकीक़त की लहर ने 

मिटा दिए  आ कर 

मेरी कल्पना के निशाँ ...




.

56 comments:

vandana gupta Fri Jul 16, 06:03:00 pm  

बेहद मार्मिक चित्रण्……………… बहुत दर्द भरा है।

Sunil Kumar Fri Jul 16, 06:33:00 pm  

सुंदर सारगर्भित रचना ,बधाई

माधव( Madhav) Fri Jul 16, 06:42:00 pm  

भावपूर्ण रचना . रचना में दर्द है

रश्मि प्रभा... Fri Jul 16, 06:44:00 pm  

मेरे ख्यालों के निशां इस बात के गवाह हैं, तेरे दर तक हम रोज़ आते हैं

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" Fri Jul 16, 06:45:00 pm  

हकिक़त हमेशा ख्यालों को, कल्पनों को मिटाता है ...
सुन्दर रचना !

shikha varshney Fri Jul 16, 06:47:00 pm  

जो भी हो दी ! पर इन्हीं निशान के सहारे हम आप तक पहुंचे हैं :)
एक और संवेदनशील रचना.

दीपक 'मशाल' Fri Jul 16, 07:02:00 pm  

चित्र और कविता में अच्छा सामंजस्य बिठाया.. बेजोड़ कविता और जोड़ीदार चित्र.. :)

वीरेंद्र सिंह Fri Jul 16, 07:18:00 pm  

Very touching and and painful. Really very nice.

Vinay Fri Jul 16, 07:25:00 pm  

अति सुन्दर कृति

sonal Fri Jul 16, 08:13:00 pm  

ek baar phir pyaari rachnaa

अनामिका की सदायें ...... Fri Jul 16, 08:23:00 pm  

मन के सागर को सोचों का साहिल तो मिला..
यादों की रेत पर मिले ख्यालों के निशान भी
बेशक मिटा दिए हों हकीकत की लहर ने
कल्पनाओं के निशा...मगर ये क्या कम था कि..
उस कल्पनाओं के सागर में डूबे तो सही..

बस ऐसे ही आपकी रचना को पढ़ कर कुछ शब्दों ने उथल -पुथल की...

इसमें कोई शक नहीं कि आप जो भी लिखती हैं मन का मंथन करके भावनाओं का अमृत ही होता है...और अमृत किसे नहीं अच्छा लगेगा...
बधाई सुंदर रचना के लिए.

मनोज कुमार Fri Jul 16, 08:30:00 pm  

बहुत संवेदनशील रचना।
सगर के जल से गहरे तक भींगो गई।

डॉ टी एस दराल Fri Jul 16, 09:00:00 pm  

हकीकत और कल्पना का अच्छा टकराव प्रदर्शित करती रचना ।
अति सुन्दर ।

संगीता स्वरुप ( गीत ) Fri Jul 16, 10:24:00 pm  

सम्वेदना के स्वर has left a new comment on your post "ख्यालों के निशाँ":

मरुभूमि में मरीचिका सी ये चाहत दौड़ाती है, पर हक़ीक़त में कुछ नहीं मिलता... वैसे ही साहिल पर रेत पर क़दमों के निशानों पर रखी चाहत, लहरों की भेंट चढ़ जाती हैं... एक इत्मिनान फिर भी होता है कि चलो इसी बहाने कुछ ऐसी चाहतें भी बह गईं जिनका बह जाना ही बेहतर था... ठोस चाहतें डट कर लहरों का सामना करती हैं और हक़ीक़त से टकराकर समाप्त नहीं होतीं, ख़ुद हक़ीक़त बनती हैं..
संगीता दी, प्रकृति के प्रतीकों से सजी अचिंत्य रचना!!

गलती से यह कमेन्ट डिलीट हो गया था...क्षमा प्रार्थी हूँ

rashmi ravija Fri Jul 16, 10:42:00 pm  

बहुत ही संवेदनशील रचना....
चित्र भी बहुत ख़ूबसूरत है..

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) Fri Jul 16, 10:50:00 pm  

मैं अब फ्री हो गया हूँ.... थोडा सा... अब से रेगुलरली आऊंगा... बहुत सुंदर और सारगर्भित रचना.... .

Arvind Mishra Fri Jul 16, 10:56:00 pm  

सुन्दर रचना ,गुलाम अली की की गाई एक गजल जैसे याद हो आयी हो
तेरा नाम लिखा था रेत पर...... कोई लहर आके मिटा न दे

VIVEK VK JAIN Fri Jul 16, 11:26:00 pm  

vaqt ka dariya hame baha gya par pairo k nisha bane rhe...........
bahut sundar rachna.

aradhana Sat Jul 17, 12:12:00 am  

आपकी रचनाएं मरुभूमि में मरुद्यान जैसी होती हैं... प्रकृति के प्रतीकों का बिम्बों के रूप में प्रयोग चमत्कृत करता है... हर बार यहाँ आकार तारोताजा हो जाती हूँ.

चला बिहारी ब्लॉगर बनने Sat Jul 17, 12:36:00 am  

हम त दंग रह जाते हैं आपका छोटा छोटा प्रतीक देखकर... समुंदर, साहिल, लहर, रेत, पैरों का निशान, चाहत... हर सब्द अपने आप में कविता है अऊर जब आप इसको गूँथ देती हैं तब जाकर ई माला बन जाता है...आज समझ में आया है कि आपका ब्लॉग का नाम बिखरे मोती काहे है... आदमी के चाहत का बहुत सुंदर दर्सन प्रस्तुत की हैं आप, हमेसा चाहत बालू पर बना हुआ निसान के पीछे भागता है, लेकिन सचाई का लहर के साथ सब बह जाता है. बहुत सुंदर!!

S.M.Masoom Sat Jul 17, 02:18:00 am  

अच्छा लगा पढ़ के.

Udan Tashtari Sat Jul 17, 05:48:00 am  

ओह! बेहद भावपूर्ण..कुछ थम सा गया हो जैसे.

राजकुमार सोनी Sat Jul 17, 07:22:00 am  

तेरी यादों की रेत पर

मेरे ख्यालों के निशाँ हैं

वाह..
संगीता जी
रेत पर ख्यालों की निशानदेही.
मुझसे लगता है पानी निशानदेही से गले मिलने आता है.गले मिलने वाला इतना खूबसूरत होता है कि उसे साथ ले जाता है.
आपकी कविता मेरे लिए कुछ न कुछ काम छोड़ जाती है.
फिर से कुछ सोचने लगा हूं
कभी-कभी यह भी सोचता हूं कि मैं इतना अच्छा कब लिख पाऊंगा

आपका अख्तर खान अकेला Sat Jul 17, 09:08:00 am  

bhut khub alfaaz or chitr ka sngm yeh to nyaa kmaa he bdhaayi ho . akhtar khan akela kota rajsthan

अजय कुमार Sat Jul 17, 10:22:00 am  

बेहद भावपूर्ण .निशान छोड़ गई

अजित गुप्ता का कोना Sat Jul 17, 10:30:00 am  

अच्‍छी रचना के लिए बधाई।

स्वप्निल तिवारी Sat Jul 17, 12:36:00 pm  

ab samjh me hi nahi aata mumma ki comment kya kiya jaye ..heheh...aap humesha achha likhti hain ..bade makhmali prateekon ka istemal kiya hai aapne iisme

सदा Sat Jul 17, 12:58:00 pm  

बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।

सहसपुरिया Sat Jul 17, 02:15:00 pm  

बेहद भावपूर्ण...

Shri"helping nature" Sat Jul 17, 02:40:00 pm  

madhur rachna.........................

sanu shukla Sat Jul 17, 03:46:00 pm  

भावपूर्ण प्रस्‍तुति...!!

प्रवीण पाण्डेय Sat Jul 17, 04:04:00 pm  

सरल शब्दों में गहरा भाव व्यक्त करती कविता।

Aruna Kapoor Sat Jul 17, 05:48:00 pm  

कितनी बेदर्दी बयां हुई है, दास्तां में...अति सुंदर!

अरुण चन्द्र रॉय Sun Jul 18, 01:07:00 am  

behad samvedna bhari kavita! arthpoorn, bhavpurn A

Deepak Shukla Sun Jul 18, 08:27:00 am  

Hi di..

Kab tak 'Sundar Bhav' kahun main..
Kaise main taareef karun..
Har kavita pahle se sundar..
Sochun main kya naya likhun..

Paso-pesh main pada hua hun..
Uha-poh main khada hua hun..
Sabne etni taareefen ki..
Alag main sabse kaise dikhun..

Bahut khoobsurat kavita hai.. Yatharth aur kalpana ka khubsurat mel.. Aur wo bhi kam shabdon main bade bhav..hamesha ki tarah..

Deepak..

राजभाषा हिंदी Sun Jul 18, 02:48:00 pm  

बहुत अच्छी प्रस्तुति।
राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।

Science Bloggers Association Mon Jul 19, 04:00:00 pm  

ख्यालों के निशां, क्या बात है। सचमुच लाजवाब कर दिया आपने।
................
नाग बाबा का कारनामा।
महिला खिलाड़ियों का ही क्यों होता है लिंग परीक्षण?

शोभना चौरे Mon Jul 19, 04:50:00 pm  

कोई तो बता दे
ये लहरे आती है कहाँ से ?जाती है कहाँ ?

कडुवासच Mon Jul 19, 04:51:00 pm  

...बहुत सुन्दर!!!

Parul kanani Mon Jul 19, 10:17:00 pm  

kuch lafzon ka tana-bana..aur umra bhar ka fasana....amazing...amazing !

रचना दीक्षित Mon Jul 19, 11:11:00 pm  

"हकीक़त की लहर ने
मिटा दिए आ कर
मेरी कल्पना के निशाँ "

बहुत गहरे अहसास. लाजवाब !!!!!!

निर्झर'नीर Tue Jul 20, 04:51:00 pm  

वाह क्या बात कही है ....
हकीक़त की लहर ने
मिटा दिए आ कर
मेरी कल्पना के निशाँ ...
कितना सरल लेखन है आपका और कितनी कशिश जवाब नहीं लाजवाब

कविता रावत Tue Jul 20, 05:02:00 pm  

हकीक़त की लहर ने
मिटा दिए आ कर
मेरी कल्पना के निशाँ "
..Gahre arthpurn bhav...

girish pankaj Tue Jul 20, 06:53:00 pm  

gaagar mey sagar bharati kavitaa ke liye badhai. kam shabdon mey jivan-darshan .

ज्योति सिंह Tue Jul 20, 10:39:00 pm  

हकीक़त की लहर ने
मिटा दिए आ कर
मेरी कल्पना के निशाँ
bahut gahrai hai baton me ,main bahar rahi is karan der ho gayi aane me magar dhyan me aapki rachna sada rahi .isi bhram me kayam sab hai .

सुधीर राघव Wed Jul 21, 01:29:00 am  

तेरी यादों की रेत पर
मेरे ख्यालों के निशाँ हैं
vahut khoob

Hardeep Sandhu Wed Jul 21, 09:44:00 am  

गहरे अहसास...
हकीक़त की लहर ने
मिटा दिए आ कर
मेरी कल्पना के निशाँ .........
बहुत सुन्दर.......

राजभाषा हिंदी Sun Jul 25, 07:08:00 am  

बहुत अच्छी प्रस्तुति।
राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।

समय चक्र Sun Jul 25, 01:27:00 pm  

सुंदर और सारगर्भित रचना..
गुरु पर्व पर अनेकों शुभकामनाये....

प्रज्ञा पांडेय Tue Jul 27, 12:10:00 am  

bahut sundar lagi aapki har klavita .. charcha manch meri kavita le jaane ke liye har baar ke liye aabhaar vyakt karati hun

mridula pradhan Tue Aug 03, 02:00:00 pm  

bahut achcha likhtin hain aap.

Unknown Mon Aug 30, 12:16:00 pm  

बहुत अच्छा लिखा है मोहतरमा .एक विचार जी में आ रहा है -मुमकिन है वक्त हर ज़ख्म को भर देता हो मगर /ज़ख्म भर भी जायें तो निशान कहाँ जाते हैं

रफ़्तार

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