ख्वाब और ख्वाहिश
>> Thursday, 1 July 2010
लबों पर
मुस्कान
और
आँखों में
नमी है
ख़्वाबों के
अम्बार
पर
ख्वाहिशों की
कमी है .
खलिश होती है तो यूँ ही बयां होती है , हर शेर जैसे सीप से निकला हुआ मोती है
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55 comments:
सानदार प्रस्तुती के लिऐ आपका आभार
सुप्रसिद्ध साहित्यकार व ब्लागर गिरीश पंकज जीइंटरव्यू पढेँ >>>>
एक बार अवश्य पढेँ
ख़्वाबों के
अम्बार
पर
ख्वाहिशों की
कमी है .
अपनी इन्द्रियों पर सम्पूर्ण नियन्त्रण ही सच्ची विजय है।
माफ करें संगीता जी, बात कुछ जमी नहीं। बिना मुस्कान और आंखों की नमी तो साथ साथ हो सकती है। पर बिना ख्वाहिशों के ख्वाबों के अम्बार कैसे लग सकते हैं। हां आप अगर कहतीं कि ख्वाहिशों के अम्बार पर ख्वाबों की कमी है तो बात बनती है। खैर यह मेरा नजरिया है।
कृपया मेरी पहली टिप्पणी में दूसरी पंक्ति को इस तरह पढें -लबों पर मुस्कान और आंखों में नमी तो साथ साथ्ा हो सकती है।
मन की बात को थोड़े ही शब्दों में कह देने की आपकी कला का कोई सानि नहीं है..
बहुत सुन्दर
चंद शब्दों में ,बहुत कुछ कह दिया...
Kam alfaaz aur athaah gahrayi..yahi khasiyat hai aapki...
Mai apni malika"Bikhare Sitare" punah prakashit kar rahi hun...iltija hai ki,gar samay mile to zaroor padhen ek samajik sarokar aur maqsad rakhte hue yah jeevani safar karegi...safarname me shamil hoke rahnumayi karen!
बहुत प्यारी कविता है और क्या कहूँ???? आपके शब्द सच में मोती हैं... पर बिखरे नहीं गुंथे हुए...
राजेश जी ,
सच है की सबका नजरिया अलग अलग होता है....और हर बात अलग नज़रिए से लिखी जाती है..पर पढने वाला अपने नज़रिए से सोचता है...आपकी बात भी अपनी जगह सही है...कि ख्वाहिशें होतीं हैं तो ख्वाब देखे जाते हैं....पर वो उम्र कम से कम मेरी तो निकल चुकी है..और यथार्थ के धरातल पर आज ख्वाब तो बरकरार हैं पर सच्चाई ने ख्वाहिशों का दम तोड़ दिया है....
आपने इतने गौर से पढ़ा...अच्छा लगा..आभार
सभी पाठकों का आभार
आज उधार के अल्फाज़ लेकर अपनी बात कह रहा हूँ… अल्फाज़ उधार के हो सकते हैं बयान मेरे दिल का है, एकदम हू ब हू
पहले हिस्से पर क़ैफी साहबः
“आँखों में नमी, हँसी लबों पर
क्या हाल है, क्या दिखा रहे हो.”
और दूसरे हिस्से पर चचा ग़ालिबः
“हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले.”
संगीता जी, आपकी व्याख्या कविता की परिपूरक है.
bahut khoob... chand alfaaj mein bahut kah gayein aap.....
चंद खूबसूरत शब्दों में बेहतरीन अभिव्यक्ति.. सच में यही कविता है..
यह बताशा जैसा मुक्तक तो बहुत ही बढ़िया रहा!
Hi di..
Khwahish se hi khwab panapte..
Khwabon main khwahish dikhtin..
Kuchh unme pure ho jaate..
Kuchh bas khwahish hi rahtin..
Hothon par muskaan tumhaare..
Aankhen aakhir kyon nam hain..
Humko 'di' ye batla do..
Aakhir tumko kya gam hai..
Hothon par muskan ho tere..
Ankh kabhi bhi na hon nam..
Har khwahish ho puri teri..
Vinti Prabhu se karte hum..
Deepak..
ख्वाबों और ख्वाहिशों के लिए कहीं
कभी कोई सीमाओं का बंधन नही।
उम्दा कवित्त
आभार
दीपक,
इतनी प्यारी कविता लिखने का बहुत सारा आभार..
ख़्वाबों के
अम्बार
पर
ख्वाहिशों की
कमी है .
ye achha hai mumma...:)
ज़िन्दगी का यथार्थ दर्शाती बहुत ही सुन्दर कविता…………दिल मे उतर गयी…………………बेहद उम्दा ख्याल्।
थोड़े ही शब्दों में बेहतरीन अभिव्यक्ति..
Kam sabdh mae gehri baat.
बहुत सुंदर रचना..!!
धन्यवाद संगीताजी!.. बहुत अच्छा महसूस हुआ कि आप मेरे ब्लोग पर आई और गलतियों की तरफ इंगित किया!... आप की यह कविता मुझे भाव-विभोर कर रही है!... नपे-तुले शब्दों में आपने बहुत कुछ कह डाला है...फिर एक बार धन्यवाद!
लबों पर मुस्कान और आँखों में नमी है
ख़्वाबों के अम्बार पर ख्वाहिशों की कमी है .
तन्हाई का आलम अब इस तरह है
तेरे इंतजार में अब साँसे थमी है !
आपका ब्लॉग आच्छा है ऐसे ही लिखते रहिये
एक चर्चित शेर हैं-
हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पर दम निकले
बहुत निकले अरमान मेरे फिर भी बहुत कम निकले
ख्वाहिशों का मामला ही कुछ ऐसा है।
शानदार रचना। कम शब्दों का कमाल।
वाह दी वाह ... क्या दृश्य उभारा है ..
ख़्वाबों के अम्बार पर ख्वाहिशों की कमी है
वाह बहुत सुन्दर.
Bilkul sahi..sateek rachna...
kitne kam shabd kharchtee hain aap :) :)
khwaab to aate rahenge, doctor kahte hain aankhe badi nahi hoti bachpan se hi...
Din dekh dekh khwahishein sookh jaatin hain magar...
Kabhi pitaji ke liye likhi thi...
khet ki medein jodte,
khwaahishein nahi paalta,
kabhi khuda mera.
yon meri bulandiyon ke khawab,
jhaankte hain uske koron se.
waise hi ehsaas hue :)
Pranam
बहुत सुन्दर भाव |संक्षेप मैं बहुत कुछ कह दिया आपने
बधाई
आशा
बेहतरीन ख्वाब और ख्वाहिशें! :-)
माफ़ कीजियेगा गलती से कहीं का कमेंट्स आपकी पोस्ट पर चिपका दिया था. कार्यालय में समय ही इतना कम होता है, जल्दी-जल्दी में गलती हो गई. :-)
अति सुन्दर ! गागर में सागर को आप ही परिभाषित कर लेती हैं ! बहुत खूब !
ख़्वाबों के
अम्बार
पर
ख्वाहिशों की
कमी है .
Kya baat hai !
Beautiful expression !
संगीताजी, आपने मेरी इतनी प्रशंसा की...धन्यवाद!..लेकिन मै इसके काबिल नहीं हूं! मै एक साधारण लेखिका ही हूं!... हिन्दी साहित्य में मेरा योगदान तो गंगा में एक कटोरी पानी डालने के बराबर भी नहीं है!... मगर मै आप की फैन बन गई हूं!.. आप की सभी कविताएं मैने पढी...एक से बढ कर एक है!
gagar mein sagar bharti hai aap :)
ख़्वाबों के
अम्बार
पर
ख्वाहिशों की
कमी है
sach kya kahoon samjh nahi aa raha ,sach hi to kaha hai ,sach ke siva kuchh nahi .
chhote lekin suljhe shabdo me apni baat rakhna koi aapse seekhe......sangeeta di, aapka koi shaani nahi......:)
शानदार
हँसिये ! उदासी अपने आप भाग जायेगी !
ख़्वाबों के
अम्बार
पर
ख्वाहिशों की
कमी है .
वाह क्या बात है !!!!!!!!!!!!
kamaal ka lkha hai aapne............
सुन्दर रचना ...
हसरतें मेरे अंतर में ख्वाब बनके के सोती हैं
आशाओं के समुन्दर में ख्वाहिशें बिखरे मोती हैं
sunder kavita.
Diipak jii kii kavita men tippani achchii lagi.
सूत्र में वस्तुस्थिति को स्वर दिया गया ।
प्रशंसनीय ।
आपने तो बहुत अच्छे भाव प्रकट किये...
ख़्वाबों के
अम्बार
पर
ख्वाहिशों की
कमी है ।
गहरी बात सुन्दर शब्द रचना ।
निसंदेह अच्छी कविता बहुत ही asar है in panktiyon में
sunder rachna....
khwab aur khwahishen...... sunder bhav.....
ख़्वाबों के
अम्बार
पर
ख्वाहिशों की
कमी है .
बहुत खूब चंद शब्दों मे जिन्दगी का सच सब से अच्छी बात आपका स्पश्टीकरण। बहुत बहुत धन्यवाद।
बहुत खूब ।
ख्वाबों के अम्बारों पर ख्वाहिशों की कमी है ।
ख्वाहिशें हैं तभी तो ख्वाब हैं ।
very nice!...ek tees jhalakti hai
ख़्वाब देखने का हक होता लेकिन ख्वाहिशे सिर्फ की जाती हैं उनके पूरा होने या न होने का मलाल होता है.
बहुत सुन्दर लिखा देर से पहुँची इसके लिए .......
लाजवाब।
संगीता जी ,
आज आपके दोनों ब्लाग्ज़ पर गई .
काश कि पहले गई होती !
देर तक पढ़ती रही .बहुत अच्छा लिखती हैं आप !लिखे जाइये,
हमलोग पढ़ते रहेंगे .
bahut khoob...
ख्वाब और ख्वाहिश में बारीक अंतर को स्पष्ट करें..
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