चांदनी की सड़क
>> Wednesday, 7 July 2010
चाँदनी की
सड़क पर
पाँव रख
चाँद पाने की
मैंने
ख्वाहिश की
जब नींद टूटी
तो देखा
पाँव में
छाले पड़े हुए थे .
खलिश होती है तो यूँ ही बयां होती है , हर शेर जैसे सीप से निकला हुआ मोती है
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66 comments:
उफ़...........पर चिंता न कीजिये हर रात की सुबह है छाले पड़े जरुर हैं पर दर्द का फल जरुर मिलेगा चाँद जरुर मिलेगा.जैसे आपके चित्र की कन्या छाले देख जरुर रही है पर चाँद पर पहुँच ही गई .
बहुत बहुत बहुत सुन्दर पंक्तियाँ .
उफ़्………………चंद शब्दों मे ही गहरी बात कह दी।
जब चांदनी भी जलाने लगे
पाँव मे छाले पडने लगें
तब किस आग से सहलाऊँ
किस राख का मरहम लगाऊँ
बहुत संवेदनशील रचना।
Aaphi ke alfaaz..."Har lafz jaise seep se nikla hua moti ho"!
भावपूर्ण लेखन।
उफ़्फ़!!
चांदनी की सड़क पे मत चलिए ना। खुरदुरे ज़मीन पर सूरज की किरणों से तपती दोपहरी में चलिए, चांद आ जएगा चांदनी लेकर शीतलता प्रदान करने।
छोटी सी रचना में बहुत ही गहरी बात कह दी है!
छोटी सी रचना में बहुत ही गहरी बात कह दी है!
छोटी सी रचना में बहुत ही गहरी बात कह दी है!
bahut hi sundar panktiyaa.
छालों पैर मरहम लगाने अब चाँद को आना होगा ....
क्या बात है संगीता जी...बहुत गहरी बात छिपी है इन पंक्तियों में ... अक्सर चोट वहां से मिलती है जहाँ से उम्मीद ना हो ... जो दीखते हैं फूल से कोमल उनमे ही छिपे होते हैं कांटे ...
बहुत सुन्दर रचना !
चाँद को पाने की तमन्ना में छाले क्या चीज़ हैं...सुन्दर रचना
"गहरे अर्थ लिए हुई ....
जो चीज़ सबसे ज़्यादा प्रिय हो उसे पाने में मेहनत तो लगती है ... पाँव में छाले पड़ना लाज़मी है ...
छाले पडना तो ठीक है लेकिन पहुंचे कहां तक थे?
सभी पाठकों का आभार..
@@ नीरज जी ,
पहुंचे कहाँ? नींद तो टूट गयी...
chandni ki pagdandi se nahi jana tha apko..
wo kaise dekhe chand se kisi ka saniddhya...
shukra-dhruv se kaqhtin...langar laga, jhulte hue chhupke bhijwate... :)
aaj raat chand aayega, uske chhale daag ban aur ubhar aayenge is poonam ko... :)
Wiase itne sateek photu kahan milte hain? Usi chandni wali sadak par...
sundar kavita, sundar chitra :)
मैं तो कब से बैठी थी
छालों का मरहम लिए..
तुमने रुक कर देखा नहीं..
चाँद की ख्वाहिश में
मग्न थी तुम तो..
मेरी आवाज़ को भी
पहचाना नहीं.
आपकी कविता पढ़ कर कुछ यू ही ख़याल चले आये...
chaalo mein abhi bhi dard ki lehre uthi hai
मजा आ गया.. हर तरफ चाँदे चाँद छाया हुआ है... लेकिन आपका बात से त डर लगता है कि जो बाहर से सीतल मालूम देता है ऊ अंदर से एतना गुस्सा में काहे है कि गोड़ में छाला पड़ गया आपके. अबकी बार नींद में मिले त पूछिएगा जरूर. समुंदर का खारा पानी पसंद नहीं आया होगा बेचारा को, अऊर नदी का त पानिए नाला जईसा हो गया है... देखिए का कहते हैं ससि बाबू आपसे, अगिला मुलाकात में...
कुछ ख्वाहिशें छालों से भी बड़ा जख्म देकर जाती है.
आपने अच्छा लिखा है. कुछ यादें ताजा हो गई.
चांद बड़ा छलिया निकला ,छाला दे गया ।
पहले तो बस स्वप्निल ही था
लेकिन अब तो
मुझको भी बर्दाश्त आपको करना होगा
ख़ास तौर पर तब
जबकि पड़ताल हो करनी चाँद की
काले आसमान में.
बगुले के पंखों की चप्पल
डाल रखी जो आपने होती पैरों में तो
छाले कभी नहीं पड़ते उस राह में
जिसपर चल निकली थीं ख्वाब में कल.
अब क्या बोलूँ
कल फिर जो आप निकल जाएँ उस सफर पे तो
एक बार ज़रा रुककर
उस चाँदनी से इतना तो कहना ही
कि जलने से पहले उसने क्या
आप की उम्र नहीं देखी
और बिला वज़ह ही ज़ख्म आपको
दे बैठी.
सभी पाठकों का आभार...
सलिल ,
ख़्वाबों में
उम्र का हिसाब
कहाँ होता है
पांव में
छाले देख
आज तो
चाँद भी
रोता है.....
संगीता
सड़क पर
पाँव रख
चाँद पाने की
मैंने
ख्वाहिश की
....ख्वाहिश भी अगर हो...ऐसी ही अनुपम हो!....बधाई संगीताजी!
अबकि बार तो बस इतना ही – cho chweet!!
rachna dil ko choo gayi...
पांव में छाले न हों तो सफर का मजा नहीं आता है
चांद भी कमबख्त वह चीज है कि हमें
ख्याबों में भी सताता है।
पांव में छाले न हों तो सफर का मजा नहीं आता है,
चांद भी कमबख्त चीज है क्या कि हमें
ख्वाबों में भी सताता है।
ghar ke aangan me thalee me paanee bhar rakh deejiyega such maniye chand angana utar aaega........
aur ise tarah aap chalo se buch jaiyega.
कम शब्दों में सुंदर अभिव्यक्ति.
..बधाई.
गहरी बात, बहुत खूब!
बहुत खूबसूरत अल्फाज़ों से संजोई हुई ....भावपूर्ण कविता...
Ek dum mast...gulzarish touch liye hue nazm hai mumma..
chand yun hi naseeb kahan hota hai ...chhale to hone hi the ...
sundar abhivyakti...
chhote chhote shabdo ke mala koi aapse peerona seekhe..........:)
hai na Sangeeta di!!
anupam rachna!
उफ़ फ फ फ.... पढ़ते पढ़ते कहीं दिल में छाले न पड़ जाएँ बहुत अनूठी
चाँदनी भी गर्म हो गयी, अब शीतलता कौन देगा ।
bahut achhi rachna....gaurtalab
aapki rachna ne kaio ke man me naye khyal jaga diye ,yah bhi ek tarif ki ada hai ,jo prerit karti ho likhne ko .sundar सड़क पर
पाँव रख
चाँद पाने की
मैंने
ख्वाहिश की
apantav ji ki salah bhi achchhi hai .
अक्सर नींद खुलते ही सपनो का सपना होना जान पड़ता हैं ,पर चांदनी की सड़क वाकई कितनी खुबसूरत होगी इसकी मैं अब भी कल्पना ही कर रही हूँ,सुंदर लेखन
सड़क पर
पाँव रख
चाँद पाने की
मैंने
ख्वाहिश की
वाह इन्सान भी कितनी बडी बडी ख्वाहिशें सजा लेता है
लाजवाब। बधाई
bahut hi gehri rachna.....
yun hi likhte rahein...
Khoobsurat jazbon ki shaandar prastuti.
गहराई लिए हुए सुन्दर रचना...!!
you are really amazing,
vivj2000.blogspot.com
you are really amazing,
vivj2000.blogspot.com
इतने थोड़े लफ़्ज़ों में बड़ी ही जान लिए नज़्म पढने को मिली.
शाहिद "अजनबी"
har bar ki tarah phir se ek lazbab nazm...
क्या कह दिया आपने - कमाल है
sangeeta ji ..Pahli baar aapke blog par aaya. Padha to lagaa ki aana safal ho gaya. Aapki bhavpoorn rachnaaye dil ko chhu lene vaali hain.
चाँद शब्दों में हीआपने बहुत ही गहरी बात कही है .......
Bahut gehri baat keh di aapne.
गागर में सागर....
वाह क्या बात है.....
bahut sunder...badhai..
चाँद को चकोर यूँ ही प्यार करता है , चुपके चुपके । सुन्दर रचना शिखा जी ।
सुन्दर भावाभिव्यक्ति है।
अरे वाह!! कमाल है!!
लाजवाब अभिव्यक्ति ......बहुत खूब
मैं तो यह सोच-सोचकर हैरान हूँ -
"चाँदनी से निर्मित पथ पर चलने के बाद भी
जिसके पैरों में छाले पड़ गए,
उसके पैर कितने नाज़ुक होंगे!"
kabhi kabhi chadani bhi tej dhoop see jhulsane vali hoti hai. ye anubhuti to manodasha par nirbhar karati hai. bahut sundar likha hai.
संगीता स्वरुप जी...
भावपूर्ण ...
- vijay tiwari kislay
संगीता स्वरुप जी...
भावपूर्ण ...
- vijay tiwari kislay
इतनी सुन्दर छोटी रचनायें मैंने पहले कभी नहीं पढी। बधाई
adbhut rachna.
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