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जिस्म और रूह

>> Monday, 12 April 2010





जिस्म की
खरोंचों को तो 
सहला लिया 
चाँद की
मीठी सी 
परछाईं  ने..


पर रूह का क्या 
जो जख्म पा 
रोती रही 
बंद आँखों से 
शब् भर ...



.

37 comments:

दिलीप Mon Apr 12, 08:20:00 pm  

Bahut Khoob waah....samvedna ka kya roop dikhaya
http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/

rashmi ravija Mon Apr 12, 08:21:00 pm  

बहुत ही गहरी अभिव्यक्ति....जिस्म के खरोंच तो भर जाते हैं...पर रूह की खरोंच किसे दिखती है...ना दिखती है,ना भरती है..और ज़िन्दगी भर सालती है...

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" Mon Apr 12, 08:22:00 pm  

जो ज़ख्म दीखता है वो भर जाता है ! पर जो ज़ख्म दीखता ही नहीं वो भरेगा कैसे ? बहुत सुन्दर रचना है !

Dr.R.Ramkumar Mon Apr 12, 08:43:00 pm  

ऊपर के चांद और उससे पड़ती हुई परछाइयां भी नीचे की बंद पलक की कोरों के नीचे चिपके आंसू के साथ एक दूसरे की प्रतिकृति अनुकृति लग रहे हैं।
और अभिव्यक्ति जैसे सिर्फ एक केप्सन

यह मिलामिलाकर चित्राराना भी एक सशक्त अभिव्यक्ति की शैली ही है।

रश्मि प्रभा... Mon Apr 12, 08:49:00 pm  

जिस्म की खरोंचो को चाँद ने सहलाया , पर रूह !
कोई रूह ही इसे जब्त कर सकती है....बहुत गहरे भाव

Apanatva Mon Apr 12, 08:59:00 pm  

gahre bhav liye gahra arth liye bahut acchee lagee ye rachana.

परमजीत सिहँ बाली Mon Apr 12, 09:43:00 pm  

बहुत भावपूर्ण रचना!!बहुत सुन्दर!

स्वप्निल तिवारी Mon Apr 12, 10:05:00 pm  

aanch ko diya gaya yah zawaab mujhe mila tha mumma.... :) love uuuuuuuuu ....bahut achha zawaab laga....

अनामिका की सदायें ...... Mon Apr 12, 10:24:00 pm  

वाआआआआआआआअह बहुत अच्छा लिखा है...लेकिन ये आंच के जवाब का ये चक्कर क्या है???????

Deepak Shukla Mon Apr 12, 10:30:00 pm  
This comment has been removed by the author.
Deepak Shukla Mon Apr 12, 10:31:00 pm  
This comment has been removed by the author.
Deepak Shukla Mon Apr 12, 10:52:00 pm  

Hi..
Chand khud sahla ke jiske jakhm par marham lagaye..
Rooh ka bhi ghav bharne.. Wo jami pe khud hi aaye..

DEEPAK..

मनोज कुमार Mon Apr 12, 10:53:00 pm  

कविता समय चक्र के तेज़ घूमते पहिए का चित्रण है। कविता की पंक्तियां बेहद सारगर्भित हैं।

संगीता स्वरुप ( गीत ) Mon Apr 12, 10:56:00 pm  

अनामिका....ये आंच की नज़्म का जवाब था....

दीपक जी ,
आपकी बात बहुत पसंद आई...शुक्रिया

आप सभी पाठकों का आभार

kshama Mon Apr 12, 11:17:00 pm  

Chaand kee sheetal taa rooh tak zaroor pahunchegi...

मनोज भारती Tue Apr 13, 12:02:00 am  

इस रचना ने
रुह के जख्मों को छू लिया ...
आँसू टपकते रहे बंद आँखों से ....
मैं रिसता रहा जख्मों से
किसी ने आह तक न भरी
मेरे जख्मों पर

बहुत खूब !!!

ज्योति सिंह Tue Apr 13, 02:37:00 am  

bahut khoob lagi baate .sundar rachna .

Udan Tashtari Tue Apr 13, 02:44:00 am  

वाह!! बहुत शानदार!! बेहतरीन!

ताऊ रामपुरिया Tue Apr 13, 09:00:00 am  

वाकई रूह के जख्म सहलाना बडा मुश्किल है. शुभकामनाएं.

रामराम.

kunwarji's Tue Apr 13, 10:01:00 am  

TAU JI BHI THIK KEH RAHE HAI JI...

BAHUT BADHIYA,

KUNWAR JI,

संजय भास्‍कर Tue Apr 13, 02:06:00 pm  

किसी ने आह तक न भरी
मेरे जख्मों पर

बहुत खूब !!!

निर्झर'नीर Tue Apr 13, 03:24:00 pm  

कुछ सपने बन-ढल जायेंगे कुछ दर्द चिता तक जायेंगे ..
क्या मर्म है रचना में ..सुन्दर अति सुन्दर

रचना दीक्षित Tue Apr 13, 05:27:00 pm  

अच्छी लगी ये पोस्ट थोड़े में बहुत कुछ समेटे.बहुत सारगर्भित सी बात

Urmi Tue Apr 13, 05:51:00 pm  

अद्भुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने जो प्रशंग्सनीय है! बहुत खूब! बधाई!

M VERMA Tue Apr 13, 07:54:00 pm  

रूह का जख्म तो बस --

Anonymous Tue Apr 13, 08:11:00 pm  

bahut hi behtareen rachna...
mann ko chhu dene waali...
achi rachna ke liye badhai.....
mere blog par is baar..
वो लम्हें जो शायद हमें याद न हों......
jaroor aayein...

देवेन्द्र पाण्डेय Wed Apr 14, 12:23:00 am  

वाह!
कम शब्दों में अच्छी अभिव्यक्ति.
-बधाई।

डॉ टी एस दराल Wed Apr 14, 09:15:00 am  

बहुत सुन्दर ।
शुक्रिया।

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ Wed Apr 14, 01:19:00 pm  

Chance ki baat hai, aapki rachna mere maujooda haal ko shat-pratishat byan karti hai!
Waqt marham banega!

प्रिया Thu Apr 15, 10:34:00 pm  

kya baat kya baat kya baat..bhai waah!

अंजना Fri Apr 16, 11:06:00 pm  

सुंदर मार्मिक रचना.....

Anonymous Sat Apr 17, 12:59:00 am  

mere blog par is baar..
नयी दुनिया
jaroor aayein....
aapki tippani ka intzaar rahega...

श्रद्धा जैन Sat Apr 17, 01:21:00 pm  

bahut gahri abhivayakti
kam shabdon mein sab kah jaana

Avinash Chandra Sun Apr 18, 01:48:00 pm  

waah....kitni gahri baat kahi aapne

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