कुछ विशेष नहीं है जो कुछ अपने बारे में बताऊँ...
मन के भावों को
कैसे सब तक पहुँचाऊँ
कुछ लिखूं या
फिर कुछ गाऊँ
।
चिंतन हो
जब किसी बात पर
और मन में
मंथन चलता हो
उन भावों को
लिख कर मैं
शब्दों में
तिरोहित कर जाऊं ।
सोच - विचारों की शक्ति
जब कुछ
उथल -पुथल सा
करती हो
उन भावों को
गढ़ कर मैं
अपनी बात
सुना जाऊँ
जो दिखता है
आस - पास
मन उससे
उद्वेलित होता है
उन भावों को
साक्ष्य रूप दे
मैं कविता सी
कह जाऊं.
ऊपर के चांद और उससे पड़ती हुई परछाइयां भी नीचे की बंद पलक की कोरों के नीचे चिपके आंसू के साथ एक दूसरे की प्रतिकृति अनुकृति लग रहे हैं। और अभिव्यक्ति जैसे सिर्फ एक केप्सन
यह मिलामिलाकर चित्राराना भी एक सशक्त अभिव्यक्ति की शैली ही है।
bahut hi behtareen rachna... mann ko chhu dene waali... achi rachna ke liye badhai..... mere blog par is baar.. वो लम्हें जो शायद हमें याद न हों...... jaroor aayein...
37 comments:
Bahut Khoob waah....samvedna ka kya roop dikhaya
http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/
बहुत ही गहरी अभिव्यक्ति....जिस्म के खरोंच तो भर जाते हैं...पर रूह की खरोंच किसे दिखती है...ना दिखती है,ना भरती है..और ज़िन्दगी भर सालती है...
जो ज़ख्म दीखता है वो भर जाता है ! पर जो ज़ख्म दीखता ही नहीं वो भरेगा कैसे ? बहुत सुन्दर रचना है !
ऊपर के चांद और उससे पड़ती हुई परछाइयां भी नीचे की बंद पलक की कोरों के नीचे चिपके आंसू के साथ एक दूसरे की प्रतिकृति अनुकृति लग रहे हैं।
और अभिव्यक्ति जैसे सिर्फ एक केप्सन
यह मिलामिलाकर चित्राराना भी एक सशक्त अभिव्यक्ति की शैली ही है।
जिस्म की खरोंचो को चाँद ने सहलाया , पर रूह !
कोई रूह ही इसे जब्त कर सकती है....बहुत गहरे भाव
gahre bhav liye gahra arth liye bahut acchee lagee ye rachana.
बहुत भावपूर्ण रचना!!बहुत सुन्दर!
aanch ko diya gaya yah zawaab mujhe mila tha mumma.... :) love uuuuuuuuu ....bahut achha zawaab laga....
वाआआआआआआआअह बहुत अच्छा लिखा है...लेकिन ये आंच के जवाब का ये चक्कर क्या है???????
Hi..
Chand khud sahla ke jiske jakhm par marham lagaye..
Rooh ka bhi ghav bharne.. Wo jami pe khud hi aaye..
DEEPAK..
कविता समय चक्र के तेज़ घूमते पहिए का चित्रण है। कविता की पंक्तियां बेहद सारगर्भित हैं।
अनामिका....ये आंच की नज़्म का जवाब था....
दीपक जी ,
आपकी बात बहुत पसंद आई...शुक्रिया
आप सभी पाठकों का आभार
Chaand kee sheetal taa rooh tak zaroor pahunchegi...
इस रचना ने
रुह के जख्मों को छू लिया ...
आँसू टपकते रहे बंद आँखों से ....
मैं रिसता रहा जख्मों से
किसी ने आह तक न भरी
मेरे जख्मों पर
बहुत खूब !!!
bahut khoob lagi baate .sundar rachna .
वाह!! बहुत शानदार!! बेहतरीन!
वाकई रूह के जख्म सहलाना बडा मुश्किल है. शुभकामनाएं.
रामराम.
TAU JI BHI THIK KEH RAHE HAI JI...
BAHUT BADHIYA,
KUNWAR JI,
किसी ने आह तक न भरी
मेरे जख्मों पर
बहुत खूब !!!
कुछ सपने बन-ढल जायेंगे कुछ दर्द चिता तक जायेंगे ..
क्या मर्म है रचना में ..सुन्दर अति सुन्दर
bahut hi umda..
अच्छी लगी ये पोस्ट थोड़े में बहुत कुछ समेटे.बहुत सारगर्भित सी बात
अद्भुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने जो प्रशंग्सनीय है! बहुत खूब! बधाई!
रूह का जख्म तो बस --
bahut hi behtareen rachna...
mann ko chhu dene waali...
achi rachna ke liye badhai.....
mere blog par is baar..
वो लम्हें जो शायद हमें याद न हों......
jaroor aayein...
वाह!
कम शब्दों में अच्छी अभिव्यक्ति.
-बधाई।
बहुत सुन्दर ।
शुक्रिया।
Chance ki baat hai, aapki rachna mere maujooda haal ko shat-pratishat byan karti hai!
Waqt marham banega!
prashansneeya.....
kya baat kya baat kya baat..bhai waah!
सुंदर मार्मिक रचना.....
mere blog par is baar..
नयी दुनिया
jaroor aayein....
aapki tippani ka intzaar rahega...
bahut gahri abhivayakti
kam shabdon mein sab kah jaana
waah....kitni gahri baat kahi aapne
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