copyright. Powered by Blogger.

गमकता जिस्म

>> Saturday, 17 April 2010




जिस्म  ,

खामोश था

पथराया हुआ

रूह ने

कुछ फूल

चढ़ा दिए

अश्कों के

उस शिला पर

जिस्म भीग कर

गमकने लगा था  








39 comments:

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" Sat Apr 17, 07:31:00 pm  

बहुत सुन्दर ! रूह के बिना जिस्म कुछ भी नहीं ! और एक सुन्दर रूह हो तो सुन्दर रचनायें निकलती है !

Shekhar Kumawat Sat Apr 17, 07:33:00 pm  

bahuUT KHUB

SHEKHAR KUMAWAT

http://kavyawani.blogspot.com/

kshama Sat Apr 17, 07:35:00 pm  

Oh my god! Itne kam alfaaz aur itni badi baat..!Stabdh kar diya aapne!

Udan Tashtari Sat Apr 17, 07:54:00 pm  

वाह!! सुन्दर!

Amitraghat Sat Apr 17, 07:55:00 pm  

बहुत अच्छा लिखा..."

Anonymous Sat Apr 17, 07:55:00 pm  

waah...
bahut khub...

दिलीप Sat Apr 17, 07:57:00 pm  

waah prem ka kya prateekatmak vivechan...

http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/

Deepak Shukla Sat Apr 17, 08:01:00 pm  

Hi..
Jism se to rooh ka rishta sada anant hai..
Ye shuru hota hai sang aur..
Chhutta jab ant hai..
Sang jo chhuta purana..
Rooh ke aansu bahe..
Deh jo nishpran thi..
Us par the aansu ja gire..

DEEPAK

स्वप्निल तिवारी Sat Apr 17, 08:17:00 pm  

Oh..ye to wahi nazm hai na mumma jo padhi thi...ab tak gamak rahi hai jehan me.. :-) khub bhalo nazm aache..hehe..

M VERMA Sat Apr 17, 08:57:00 pm  

रूह की रूहानियत और गमकती हुई रचना

रचना दीक्षित Sat Apr 17, 09:52:00 pm  

अरे वाह,यहाँ तो जिस्म के साथ पोस्ट भी गमक उठी है. जबरदस्त अभिव्यक्ति है रूह और जिस्म की

अनामिका की सदायें ...... Sat Apr 17, 10:42:00 pm  

हमेशा की तरह बेहतरीन रचना.

विनोद कुमार पांडेय Sat Apr 17, 10:46:00 pm  

एक खूबसूरत भाव..बढ़िया अभिव्यक्ति...

रश्मि प्रभा... Sat Apr 17, 10:52:00 pm  

निःशब्द कर दिया अश्कों ने

Arvind Mishra Sun Apr 18, 05:32:00 am  

अहिल्योद्धार प्रसंग की याद आ गयी सहसा -कुछ्छ गलत तो नहीं ?

Anonymous Sun Apr 18, 10:42:00 am  

नायाब प्रस्तुति - बधाई

हरकीरत ' हीर' Sun Apr 18, 11:02:00 am  

संगीता जी बस आप यूँ ही गमकते रहिये ......!!

nilesh mathur Sun Apr 18, 07:39:00 pm  

वाह ! क्या बात है

kunwarji's Mon Apr 19, 09:14:00 am  

ji bahut badhiya...

kunwar ji,

पी.सी.गोदियाल "परचेत" Mon Apr 19, 09:57:00 am  

"रूह ने
कुछ फूल
चढ़ा दिए
अश्कों के
उस शिला पर
जिस्म भीग कर
गमकने लगा था "

बेहतरीन , बहुत सुन्दर भाव !

मुकेश कुमार सिन्हा Mon Apr 19, 09:58:00 am  

kutchh pyar ke phool kisi ko bhi mahka ya gamka deti hai..........bahut khub!!

rashmi ravija Mon Apr 19, 11:16:00 am  

"रूह ने
कुछ फूल
चढ़ा दिए
अश्कों के
उस शिला पर
जिस्म भीग कर
गमकने लगा था "
बस वाह निकलता है मुख से....बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति

Urmi Mon Apr 19, 11:32:00 am  

बहुत सुन्दर रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!

Shri"helping nature" Mon Apr 19, 02:17:00 pm  

sundar nihayt khubsurat .
aapke shabd prabhavshali hain.

अंजना Mon Apr 19, 03:34:00 pm  

अच्छी रचना....

ज्योति सिंह Tue Apr 20, 12:14:00 am  

bina rooh ke to insaan but ke siva kuchh nahi ,sunder rachna .

Akshitaa (Pakhi) Tue Apr 20, 10:00:00 pm  

बहुत सुन्दर लिखा आपने आंटी जी !

________________
'पाखी की दुनिया' में इस बार माउन्ट हैरियट की सैर करना न भूलें !!

सहज समाधि आश्रम Wed Apr 21, 07:00:00 am  

संगीता जी शब्दों के मन्थन के साथ साथ आत्म
मंथन भी करें जिसे सुरति शब्द साधना कहा
जाता है वैसे आपको शायद जानकारी नहीं
है रूह को न तो कोई चोट पहुँचती है न कोई
घाव आदि होता है रूह के प्रति यदि कोई
सच्ची सहानभूति या संवेदना भाव है तो वो
एकमात्र यही हो सकता है खुद को या आत्मा
को जानना जो दोनों एक ही बात है

pawan kumar singh Wed Apr 21, 01:25:00 pm  

बहुत बढ़िया...

सम्वेदना के स्वर Wed Apr 21, 08:53:00 pm  

जब उपरवाले ने हमारे सथ बाज़ी खेली और मौत का पासा फेंका.. तब इंसान के बचने की बस एक ही तदबीर है... जिस्म का खोल उतार कर , रूह का मोहरा बचा लो... गुलज़ार साहब की इस अभिव्यक्ति के बाद आपकी समकक्ष रचना...

देवेन्द्र पाण्डेय Thu Apr 22, 12:20:00 am  

वाह!
कम शब्दों में आपने मन भी महका दिया।
..आँसू की दो बूंदें मन हल्का कर देती हैं।

रंजू भाटिया Thu Apr 22, 11:33:00 am  

bahut sahi aur sundar likha hai shukriya

संगीता स्वरुप ( गीत ) Thu Apr 22, 01:33:00 pm  

राजीव जी,
आपने सही कहा है कि रूह को चोट नहीं पहुंचती...फिर भी जब कोई इंसान अत्यंत दुखी होता है तो कह दिया जाता है कि आत्मा कलाप रही है......मेरे शब्द एक कल्पना को लेकर चले हैं...और कवि या कवयित्री को इतनी छूट तो मिली होती है...खैर आपने इस ओर ध्यान दिलाया शुक्रिया ..



सभी पाठकों का दिल से शुक्रिया ...हर टिप्पणी मेरे लिए अनमोल है

रफ़्तार

About This Blog

Labels

Lorem Ipsum

ब्लॉग प्रहरी

ब्लॉग परिवार

Blog parivaar

हमारी वाणी

www.hamarivani.com

लालित्य

  © Free Blogger Templates Wild Birds by Ourblogtemplates.com 2008

Back to TOP