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हकीकत की आंधी

>> Thursday, 22 April 2010





उदासी की गलियां तो

जानी पहचानी थीं

फिर भी इमामबाड़े की

भूलभुलैयाँ की तरह

भटक गया है मन

थक हार कर आखिर

जा बैठा है

ख्वाहिशों के दरख्त के नीचे

जहाँ चाहतों के पत्ते

झड़ झड़ कर

गिर रहे हैं.

और

उड़ते जा रहे हैं

निरंतर दिशाहीन से

हकीक़त की आंधी के साथ  






33 comments:

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ Thu Apr 22, 09:24:00 pm  

Imambaade kee bhoolbhulaiyya!
Khwahishon ke darakht!
Chahton ke patte!
Haqeeqat kee aandhi!

Kya kahoon?
Saadar charan sparsh!

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" Thu Apr 22, 09:27:00 pm  

हमेशा की तरह एक सुन्दर सी कविता पढ़ने को मिली ! आपकी हर रचना की तरह यह रचना भी मन को छूं गयी !

दिलीप Thu Apr 22, 09:31:00 pm  

har baar ki tarah shandar...imaambade se ghar ki yaad a gayi

संगीता पुरी Thu Apr 22, 09:44:00 pm  

बढिया लिखा आपने .. सुदर भावाभिव्‍यक्ति !!

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) Thu Apr 22, 09:48:00 pm  

हर बार की तरह ....बहुत सुंदर कविता...

M VERMA Thu Apr 22, 09:54:00 pm  

कभी कभार दिशाहीन उड़ने का भी तो जी चाहता है, पर स्वेच्छा से.
सुन्दर रचना

Anonymous Thu Apr 22, 10:25:00 pm  

bahut hi behtareen rachna..
hamesha ki tarah padhkar achha laga...yun hi likhte rahein......
----------------------------------------
mere blog par is baar
इंतज़ार...
jaroor aayein...
http://i555.blogspot.com/

ताऊ रामपुरिया Thu Apr 22, 10:30:00 pm  

बहुत ही खूबसूरत नज्म. शुभकामनाएं.

रामराम.

vandana gupta Thu Apr 22, 10:52:00 pm  

सुन्दर भावपूर्ण कविता।

nilesh mathur Thu Apr 22, 11:03:00 pm  

बहुत ही गहन अभिव्यक्ति, आपका लेखन तो हमेशा ही काबिले तारीफ़ होता है, आपकी अगली पोस्ट के इंतज़ार में......

rashmi ravija Thu Apr 22, 11:05:00 pm  

हकीकत की आंधी, ऐसी ही होती है..सारे ख़्वाब कहाँ उड़ा ले जाती है...पता भी नहीं चलता.......सुन्दर नज़्म

shama Thu Apr 22, 11:21:00 pm  

Yah haqeeqat kee aandhiyan, sach, na jane apne saath kya,kya uda le gayin...

स्वप्निल तिवारी Thu Apr 22, 11:23:00 pm  

solid hai mumma...dher sare metaphors hain ...mastam mastam nazmam ... :)

सम्वेदना के स्वर Fri Apr 23, 12:53:00 am  

बहुत ख़ूब...अपने अंदाज़ में कहूँ तो -
.
कुछ नहीं छोड़ा है देखो आपने!
ग़म कि गलियाँ और भटकता ख़ाली मन.
ख़्वाहिशों के पेड़ और चाहत के झड़ते सब्ज़ों के संग
आपने क्या ख़ूब देखो है बिखेरा आँधियों मे
जो हक़ीक़त है हरेक इंसान की
लेकिन जो चाहत है बिखरती चारों सू
संगीता जी!!
ये सोचकर तो देखिये
वो पार कर ईमामबाड़े के सभी छोटे बड़े से पेंचोख़म
बिखरी है ख़ुश्बू की तरह रंग़ीं फ़िज़ाँ में.

Apanatva Fri Apr 23, 01:16:00 am  

bahut sunder abhivyakti........
sadaiv kee bhati.....

रश्मि प्रभा... Fri Apr 23, 08:14:00 am  

इमामबाड़े की तरह भटका मन....बहुत कुछ कह गया है

विनोद कुमार पांडेय Fri Apr 23, 08:33:00 am  

एक सुंदर भाव समेटे उम्दा रचना...प्रस्तुति के लिए आभार

अजित गुप्ता का कोना Fri Apr 23, 10:19:00 am  

बेहद सटीक अभिव्यिक्ति।

लोकेन्द्र विक्रम सिंह Fri Apr 23, 01:23:00 pm  

हकीकत की आंधी हमेशा ऐसे ही गुल खिलाती है......
सुन्दर रचना......

Deepak Shukla Fri Apr 23, 07:31:00 pm  

Hi..

Hamesha ki tarah bhavpurn kavita..

Aur shabdon ka chunav aur tulna.. Kya kahne..

DEEPAK..

रचना दीक्षित Fri Apr 23, 08:42:00 pm  

वाह !!!!!!!!! क्या बात है अच्छी है ये अभिव्यक्ति.

अनामिका की सदायें ...... Fri Apr 23, 10:56:00 pm  

मुझे हैरानी हुई जान कर की भटका हुआ मन ख़वाहिशो के दरख़्त के नीचे ही जाकर क्यों बैठा???? :):)
और अगर चाहतो के पत्ते उड़ रहे थे तो भगवान् ने एक अदद झोली दी है न (नरम नरम गोद) उसमे संजो लेते और कुछ खूबसूरत हकीकतो से ही मिलवा देते.
हा.हा.हा.
किन्तु, परन्तु आपकी ये रचना मेरी झोली में घुसी चली जा रही है और पता है दिल कर रहा है कि मै इस रचना को कोई और दिशा दे दू.....बहुत अच्छी रचना. बधाई.

Urmi Sun Apr 25, 09:33:00 am  

वाह क्या बात है! सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार नज़्म! बधाई!

Akanksha Yadav Mon Apr 26, 12:54:00 pm  

बहुत सुन्दर शब्दों में पिरोया..खूबसूरत भावाभिव्यक्ति...बेहतरीन प्रस्तुति !

Parul kanani Mon Apr 26, 06:18:00 pm  

u have written so beautifully..

Dimple Maheshwari Mon Apr 26, 11:15:00 pm  

जय श्री कृष्ण...अति सुन्दर...इंतजार ...बहुत खूब....बड़े खुबसूरत तरीके से भावों को पिरोया हैं...| हमारी और से बधाई स्वीकार करें..

देवेन्द्र पाण्डेय Wed Apr 28, 12:59:00 am  

जब हकीकत की आंधी चलती है तो चाहतों के पत्ते झरने लगते हैं।
--वाह! क्या बात है।

मुकेश कुमार सिन्हा Wed Apr 28, 03:36:00 pm  

aapki chhoti chhoti rachnayen!! gahri chhap chhodti hai........hamare mann par!! aap jaiso se hi ham seekhne ki koshish karte hain...........ab kya bolen!! umda rachna to hai hi!!

aapne mere naye post pe click nahi kiya........plz come there
www.jindagikeerahen.blogspot.com

Sanjay Sharma Sat May 01, 03:07:00 pm  

अच्छी रचना .... खूब लिखा है !!!

Avinash Chandra Sat May 01, 09:30:00 pm  

ye udaas galiyaan........fir se padhi
utni hi achchhi :)

bahut bahut khubsurat

निर्झर'नीर Fri May 14, 04:25:00 pm  

उड़ते जा रहे हैं
निरंतर दिशाहीन से
हकीक़त की आंधी के साथ

किस गहराई से लिखती है आप ..सागर मंथन के बाद निकले हुए रत्नों की तरह

रफ़्तार

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