तू मेरा , बाकी तेरा
>> Wednesday, 28 April 2010
खुदा मेरे ,
तूने इस कायनात को
बड़े करीने से
बनाया है ,
ज़मीन पर
खींच दी हैं लकीरें
इंसान ने ,
और फ़लक
तेरे हिस्से आया है ,
चल आ बाँट लें
इस कायनात को आज ,
ये मेरे
मन में आया है ,
बस तू रहे मेरा
बाकी हो सब तेरा ,
वर्ना तो
मोह जाल में
हर इंसान
44 comments:
आ चल बाँट ले कायनात .....वाह...बहुत ही सुन्दर भाव हैं कविता के
बहुत ही सुंदर रचना है और अद्भुत कल्पना है ,
वाह क्या सही कहा है खुदा को, खुदा भी मुस्कुराया है
काश इंसान इतने में ही सब्र कर ले. कितनी अजीब बात है न की सब कुछ जमा पूंजी इंसान ने यही छोड़ जानी है यही परम सत्य है फिर भी धरती का हर प्राणी मात्र इसी जोड़-तोड़ में और लकीरे खीचने में लगा है. बहुत सुंदर भावो से सुसज्जित ये रचना. बधाई.
एक गीत के शब्द याद से आ गए ---सब कुछ है तेरा कुछ नहीं है मेरा -मगर यहाँ तो सब कुछ और मैं सिर्फ तेरी ...उची बात है ! .
कमाल है !!!!!!!!!!!!!!सिर्फ चंद पंक्तियाँ और अनंत विस्तार
अच्छे हैं मन के ये उदगार
वाह ! बहुत सुन्दर ख्याल आया है मन में आपके सचमुच....
बस तू रहे मेरा बाकी सब कुछ हो तेरा....सुन्दर ...:)
मनुष्य का सिमित सोच से अनंत असीम तक ... आपकी यह कविता मुझे बहुत अच्छी लगी ... बधाई !
waah re insaan ki fitrat sab use dekar fir use hi maang liya kahin sab chhin na jaye :D
फलक तेरे हिस्से में आया है
वाह बेहतरीन रचना
दिलीप जी ,
यहाँ कुछ छीनने की फितरत नहीं है....बस ईश्वर को अपना मान लो तो और किसी चीज़ की ख्वाहिश ही नहीं रहती ...
सभी सुधि पाठकों को रचना तक आने का शुक्रिया
अंतिम चार लाइने बहुत अच्छी लगीं
वाह क्या कहा है ...
चल आ
बाँट लें
इस कायनात को आज ,ये मेरे
मन में आया है ,
बस तू रहे
मेरा
बाकी सब रहे तेरा
bhaktibhav sub kuch samarpit karata acchaa laga.............
Aapne gazab dha diya...khamosh kar diya..."qudratne to bakshi thi hame ekhi dharati,Hamne hain Bharat kahin Eeran banaya!"
सुन्दर रचना!
बहुत ही सुंदर रचना !!
wowwwwwwww ! yeh wala bhaav to aajkal mujhe bhi jakde hue hai..sab kuch bhagwan ka rahe ya kisi aur ka bas wo mere rahein............:):)
thanks a lot Mumma is rachna ke liye..is waqt padhna aur achha laga..:):)
बहुत सुंदर रचना......
itne sundar wichaar..
padhkar achha laga...
hum bhagyashaali hain jo aapki rachnayein padhne ko milti hain..
yun hi likhte rahein....
aur haan..
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mere blog par is baar
तुम कहाँ हो ? ? ?
jaroor aayein...
tippani ka intzaar rahega...
http://i555.blogspot.com/
इसे कविता कहते हैं ।
अद्भुत संयोजन शब्दों का!अर्थ की तो बात ही कुछ और है!बहुत गहरे में उतरना पड़ेगा उनको आत्मसात करने के लिए तो!
कुंवर जी,
waaaaaaaaaaaaaaaaahhhhhhhhhhhhhhhh...kya batwara kiya hai mumma...lazawaab ...mast nazm ek dum
बहुत ही नायाब रचना. शुभकामनाएं.
रामराम.
अंतिम चार पंक्तियों तो मन मोह लिया....
बहुत सुंदर कविता...
वाह्………………बहुत सुन्दर भाव संयोजन्………………इतना कर लें तो फिर हर चाह मिट जाये।
bahtrin bahut khub
badhia aap ko is ke liye
shkehar kumawat
सुंदर रचना !
अरे वाह!! कितनी आसानी से अपना सब सौंप दिया ईश्वर को...सुन्दर.
"बस तू रहे मेरा और
बाकी हो सब तेरा"
सहज और सरल लेकिन बेमिशाल
बहुत सुन्दर भाव।
इस मोह जाल से इंसान जाने कब निकलेगा।
aap ne is baar bhi kuch naye andaaj main likha hai..
wah...achhi rachna..
बहुत समय बाद ऐसा कुछ पढने को मिला ...मान गए भई ....एक सच्ची कविता इसे ही कहते है .....
http://athaah.blogspot.com/
बहुत ही सुन्दर कल्पना के साथ लाजवाब रचना लिखा है आपने! बधाई!
bahut sundar kruti hai
jab 39th comment diya jaaye to bas samarthan me hath hi uthta hai...bahut khubsurat nazm
beautiful thoughtful poem
prabhavi Abhivyakti !
उत्तम दार्शनिक अंदाज़ है.
बस तू रहे मेरा बाकी सब कुछ हो तेरा.
बहुत खूब .....!!
apke moti bikhare kahan hai,sare moti piro lo dhage main to mala taiyaar ho jati hai.dil ko choo jane wali her nazm ke liye badhai...........
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