कुछ विशेष नहीं है जो कुछ अपने बारे में बताऊँ...
मन के भावों को
कैसे सब तक पहुँचाऊँ
कुछ लिखूं या
फिर कुछ गाऊँ
।
चिंतन हो
जब किसी बात पर
और मन में
मंथन चलता हो
उन भावों को
लिख कर मैं
शब्दों में
तिरोहित कर जाऊं ।
सोच - विचारों की शक्ति
जब कुछ
उथल -पुथल सा
करती हो
उन भावों को
गढ़ कर मैं
अपनी बात
सुना जाऊँ
जो दिखता है
आस - पास
मन उससे
उद्वेलित होता है
उन भावों को
साक्ष्य रूप दे
मैं कविता सी
कह जाऊं.
यही तो इश्क की फ़ितरत होती है कभी गुलज़ार होता है कभी आफ़ताब होता है इश्क सिर्फ़ इश्क होता है कभी बाँध तोड्ता है कभी सैलाब लाता है इश्क सिर्फ़ इश्क होता है ये कब किन्ही बंधनो मे बंधता है दरिया है बहता ही रहता है क्यूँकि इश्क सिर्फ़ इश्क होता है
बस आपकी पोस्ट पढ कर ये उदगार आये सो लिख दिये………………।सुन्दर अभिव्यक्ति।
संगीता दी... इश्क़ और अश्क..एक जैसे ही हैं, जुड़वाँ कहा लें… लिहाजा ग़म के घुंघरू बाँधने की कसक हो या निगाहों से अयाँ होने वाली ख़ुशी..अश्क़ पर किसका अख़्तियार है... कितनी सादगी से बयान कर देती हैं आप ये सब...
आप की रचना 20 अगस्त, शुक्रवार के चर्चा मंच के लिए ली जा रही है, कृप्या नीचे दिए लिंक पर आ कर अपने सुझाव देकर हमें प्रोत्साहित करें. http://charchamanch.blogspot.com
आपकी हर रचना लाजवाब होती है साथ ही हमें भी लाजवाब कर जाती है ! इतनी गहरी और गंभीर बात आप थोड़े से शब्दों में कितनी आसानी से कह देती हैं ! क्या कहूँ ! बहुत बहुत बहुत खूब !
ओह...इतने संक्षेप में कितनी बड़ी बात कह दी आपने... प्रेम में पगा ह्रदय हर्ष हो या विषाद किसी भी अवस्था में अपनी संगिनी "आंसू" का साथ नहीं छोडती.. रचना का माधुर्य और चमत्कार बस निःशब्द कर देने वाला है..
sangeeta didi ishk ke kismat me gum ke ghunghru aur ashko ke moti hain fir bhi ये har dil me bazta hua saaj hai ,jise koi sari uamr baza leta hai aur koi iske tut jane se khud bikhar jata hai .......kafi diono baad aapki rachnayen padi maine ........ hamesha se maine kaha hai aapki rachnayen marm ko chhuti hain kabhi mere blog par bhi aaiye ....
नरेश कुमार शाद साब ने लिखा है तू मेरे गम में ना हँसती हुवी आँखों को रुला में तो मर मर के भी जी सकता हूँ मेरा क्या है दर्दे दिल की खलीष मेरे ही सीने में रहने दे तू तो आँखों से भी रो सकता है तेरा क्या है एक बड़े शायर का कलाम आपकी नज़्म को समर्पित
56 comments:
so true...but love without hurts are like snacks without salt...
यही तो इश्क की फ़ितरत होती है
कभी गुलज़ार होता है
कभी आफ़ताब होता है
इश्क सिर्फ़ इश्क होता है
कभी बाँध तोड्ता है
कभी सैलाब लाता है
इश्क सिर्फ़ इश्क होता है
ये कब किन्ही बंधनो
मे बंधता है
दरिया है बहता ही
रहता है क्यूँकि
इश्क सिर्फ़ इश्क होता है
बस आपकी पोस्ट पढ कर ये उदगार आये सो लिख दिये………………।सुन्दर अभिव्यक्ति।
ओ ओ ओ ..क्या यही प्यार है :( ..
हां... यहीं प्यार है
और प्यार कभी झुकता नहीं है
और इसी नही झुकने के कारण
आंसू टपक जाते हैं
संगीता जी की इस रचना को पढ़कर 80 के दशक के कई भावुक फिल्में याद आ रही है
क्योकि ये इश्क है, जो बन्दे को खुदा करता है
और बंदा, इश्क में नाकाम हो आहे भरता है.
सुंदर भावो से भरी रचना...अपना काम कर गयी.
संगीता दी... इश्क़ और अश्क..एक जैसे ही हैं, जुड़वाँ कहा लें… लिहाजा ग़म के घुंघरू बाँधने की कसक हो या निगाहों से अयाँ होने वाली ख़ुशी..अश्क़ पर किसका अख़्तियार है... कितनी सादगी से बयान कर देती हैं आप ये सब...
:) :) :)
BAS YAHI PYAAR HAI ...
bahut sundar.
प्यार के साथ गम का रिश्ता कितनी सादगी के साथ जोड़ा है दी आपने
बहुत खूब ....
बहुत अच्छी रचना है ...बधाई ..!
सच कहा....इश्क की किस्मत में गम के घुंघरू और अश्कों के मोती ही
होते हैं...
एक अलग भाव दिया है आपने……………सुन्दर रचना।
गहरी रचना।
बहुत बढ़िया!
--
क्षणिका सच्चे मोती सी है!
Alfaaz seedhe dilke paar utar jaate hain!
ati sundar ..........bahut achchha laga
ऊपर वाला कहीं न कहीं हिसाब बराबर कर देता है ।
तमाम उम्र हथेलियों में सनसनाता है
जब हाथ किसी का हाथ में आकर छूट जाता है।
बहुत खूब ....बहुत अच्छी रचना
वाह वाह-बहुत सुंदर अभिव्यक्ति संगीता जी
गागर में सागर
आभार
इश्क का आलम यही होता हैँ जी। बधाई! -: VISIT MY BLOG :- सुहाग ने माँगा अबला से, जब उसके सुहाग को...........कविता को पढ़ने के लिए आप सादर आमंन्त्रित हैँ। आप इस पते पर क्लिक कर सकते हैँ।
आप की रचना 20 अगस्त, शुक्रवार के चर्चा मंच के लिए ली जा रही है, कृप्या नीचे दिए लिंक पर आ कर अपने सुझाव देकर हमें प्रोत्साहित करें.
http://charchamanch.blogspot.com
आभार
अनामिका
आपकी इस क्शह्णिका पर एक और शे’र अर्ज़ है
जिसको चाहा वही मिला होता
तो मुहब्बत मज़ाक़ हो जाती
टिप्पणी बाद में
अभी आंसू थमे तो .....
बहुत खूब संगीता जी.
किसी शायर ने सच ही कहा है-
कोई हद ही नहीं शायद मुहब्बत के फ़साने की
सुनाता जा रहा है जिसको जितना याद आता है.
छोटा सा तीर घाव गंभीर. सुंदर.
क्या बात है-बहुत खूब!!
बाप रे दो मिनट तो सोचने में ही लग गए.. नए नए प्रतीक ला रही हैं आप.. बधाई दी..
आपकी हर रचना लाजवाब होती है साथ ही हमें भी लाजवाब कर जाती है ! इतनी गहरी और गंभीर बात आप थोड़े से शब्दों में कितनी आसानी से कह देती हैं ! क्या कहूँ ! बहुत बहुत बहुत खूब !
इश्क की किस्मत में गम के घुंघरू और अश्कों के मोती .. क्या कल्पना है !!
sangeeta ji....ye dagar hi kambakht aisi hai....
अहसास के मोती ...
wah wah sangeeta ji... mere dil ki baat likh di
सुंदर प्रस्तुति!
राष्ट्रीय व्यवहार में हिन्दी को काम में लाना देश की शीघ्र उन्नति के लिए आवश्यक है।
बहुत सुंदर
bahut badi baat, message
ek laghu kavita ke madhyam se
badhai sangeeta Di
सुंदर अभिव्यक्ति संगीता जी !
इश्क और अश्क में इतना गहरा रिश्ता है कि इनमें चाहे रोड़े आये या न आये, बिना अश्कों के इश्क मुनासिब ही नहीं है. बहुत गहरी बात कही है. वैसे सच यहीहै.
ओह...इतने संक्षेप में कितनी बड़ी बात कह दी आपने...
प्रेम में पगा ह्रदय हर्ष हो या विषाद किसी भी अवस्था में अपनी संगिनी "आंसू" का साथ नहीं छोडती..
रचना का माधुर्य और चमत्कार बस निःशब्द कर देने वाला है..
कम लफ़्ज़ों में बहुत गहरी बात कह दी आपने बहुत सुन्दर
बहुत भाव पूर्ण रचना |बधाई
आशा
बहुत संवेदनशील रचना !
वाह दीदी,
इसे कहूंगा, समस्या की पहचान।
कुछ ही शब्दो में
बहुत सुंदर कम से कम शब्दों में एक बेहतरीन भाव..भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए आभार
कम्बखत इश्क है ही ऐसी चीज।
कम लफ़्ज़ और गहरी बात
वाह! वाह !
इश्क़ दर्द ही देता है अधिकतर ...
सच कहा है इश्क़ और आँसुओं का साथ जीवन भर का है ...
वाह वाह क्या बात है! गहरे भाव के साथ उम्दा रचना!
प्रेम कहता है-
जहाँ हम हैँ ।
वहाँ गम हैं ।
प्रशंसनीय रचना ।
प्रेम का सहज वर्णन..
गम इसलिए कि दर्द के बिना प्रेम की मिठास का पता नहीं
इश्क के पैर और गम के घूँघरू
क्या बात है .. बड़ी गहरी कल्पना है संगीता जी
sangeeta didi ishk ke kismat me gum ke ghunghru aur ashko ke moti hain fir bhi ये har dil me bazta hua saaj hai ,jise koi sari uamr baza leta hai aur koi iske tut jane se khud bikhar jata hai .......kafi diono baad aapki rachnayen padi maine ........ hamesha se maine kaha hai aapki rachnayen marm ko chhuti hain kabhi mere blog par bhi aaiye ....
इश्क के पैरों में
ना जाने क्यों
गम के घुंघरू
बंध जाते हैं
sach hi to hai ,ati sundar kaha aapne .
bahut sunder!!!
नरेश कुमार शाद साब ने लिखा है
तू मेरे गम में ना हँसती हुवी आँखों को रुला
में तो मर मर के भी जी सकता हूँ मेरा क्या है
दर्दे दिल की खलीष मेरे ही सीने में रहने दे
तू तो आँखों से भी रो सकता है तेरा क्या है
एक बड़े शायर का कलाम आपकी नज़्म को समर्पित
Ishq aisa hi hota hai..Sahi likha hai aapne....
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