सूखे फूल
>> Sunday, 1 August 2010
ख्वाब यूँ ही
दफ़न हो जाते हैं
ज़िम्मेदारी की
किताबों में
परत दर परत..
पन्ने पलटो
तो झर जाते हैं
सूखे फूल की तरह...
पन्ने पलटो
तो झर जाते हैं
सूखे फूल की तरह...
खलिश होती है तो यूँ ही बयां होती है , हर शेर जैसे सीप से निकला हुआ मोती है
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54 comments:
सच है इस तरह से कितने ही सपने बिखर जाते हैं।
Aah! Na jaane kya,kya yaad aa gaya!!
सुंदर भावाव्यक्ति बधाई
बहुत सुंदर जी
बहुत ही सुन्दर भाव के साथ आपने यह क्षणिका प्रस्तुत की है!
--
मित्र दिवस पर शुभकामनाएँ स्वीकार करें!
उदासी में भी सुन्दरता झलक रही है ।
bahut khubsurat
एकदम सही कहा है ...पर इसीलिए तो कहते हैं की किताबें सहेज कर रखनी चाहिए
ha log jimmedariyo k bojh se aise dabe rahte hai ki unhe apne khwabo ko sakar karane ka samay hi nahi milta aur jab dhyan aata hai tab tak to badi der ho chuki hoti hai......bahut sundar abhivyakti didi..!!
बहुत सुन्दर भाव और सुन्दर प्रतीकों के माध्यम से ... कहे गए.
kam lafz gahree baat
और वो सूखे फूल ना जाने कितनी यादों की मञ्जूषा से महक फैला जाते है..चिरकाल तक.
सुंदर रचना.
bahut gehraa yatharth
कम शब्दों में जिंदगी की हकीकत बाया कर देती हैं आप... बिम्ब सदैव नए होते हैं... इस कविता में भी है... सूखे फूल' अच्छा बिम्ब है...
कितने कम शब्दों में कितनी गहरी बात कह जाती हैं आप और वह भी कितने प्रभावशाली ढंग से ! आपको नमन है !
बहुत बढिया!!
ye to sach hai ,sundar .
संगीता दी,
समाज में आए दिन कितने ही ऐसे लोग हैं जो अपनी ज़िम्मेदारियों के कारण, अपने ख़्वाब दबा देते हैं कुछ ऐसे कि उन ख़्वाबों से ख़्वाबों में भी मुलाक़ात नहीं हो पाती. एक परम्परा, एक वेदना, एक टीस, और एक सुख भी… सारे भाव इस कविता में सिमटआए हैं...
सलिल
सुंदर भावाव्यक्ति .........
बहुत ही कम और सुन्दर शब्दों में बेहतरीन अभिव्यक्ति!
बहुत खूब लिखा है ....
जिम्मेदारियाँ ही तो हैं जो निभाते निभाते हम अपने अस्तित्व को भी बिसरा देते है
सुन्दर भाव
कितना जबरदस्त सच है.
दो लाइनों में आपने लगता है अपना मन की टीस तो व्यक्त कर ही दी लगता है हमारी भी बता दी ...
सादर
गागर में सागर...धन्यवाद संगीता जी
आने वाले कल की चिन्ता स्वप्नों को पनपने से रोकती है।
bhaut khoob
काश कि जिम्मेदारी की किताबे होती ही नही!...फिर तो हमारे ख्वाब मुक्त विचरण कर रहे होते!... सुंदर रचना!
बहुत सुन्दर लिखा है आपने ! उम्दा प्रस्तुती!
मित्रता दिवस की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनाएँ!
ख्वाब यूँ ही दफ़न हो जाते हैं..
ज़िम्मेदारी की किताबों में ...
परत दर परत..पन्ने पलटो
तो झर जाते हैं.. सूखे फूल की तरह.
वाह...वाह
कमाल के भाव पेश किए हैं आपने.
अब क्या कहूँ ----------आपने तो ज़िन्दगी की हकीकत बयाँ कर दी और हर दिल का हाल्……………बहुत ही गहरी वेदना भरी है इन चंद लफ़्ज़ों में।
kam shabdon men bahut bada sach likh dia aapne ..bahut sundar.
बहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति हैँ।जिम्मेदारियोँ के बोझ से अनगिनत सपने साकार नहीँ हो पाते हैँ, कितना ठीक कहा हैँ आपने। आप इस ब्लोग पते परक्लिक कर सकते हैँ।
Chand alfaaz aur gahree baat kahna koyi aapse seekhe!
Sangeeta di!! lajabab!!....:)
संगीता जी, आपका जवाब नहीं।
मुझे चेल्सी की शादी में गिरिजेश भाई के न पहुँच पाने का दु:ख है।
बहुत ही सुंदर.
रामराम
बहुत ही सुंदर.
रामराम
वाह !! बहुत खूब ||
शब्द कम, भाव गहरे ||
इसे कहते हैं , उस्तादी ||
wah. kya baat likhi hai.
ati sundar.
आदरणीय संगीता जी..
बहुत थोड़े शब्दों में आपने ज़िन्दगी के एक कटु सत्य का बखान कर दिया...
'देखन में छोटे लगे , घाव करे गंभीर '
यह उक्ति सटीक है आपकी इस कविता के लिये ...बधाई..
Bahut Sundar
बहुत खूबसूरती से लिखा..बधाई.
बेहतरीन शब्द प्रस्तुति ।
Meaningful efforts with truth in it.
जिम्मेदारी निभाते हुए ख्वाब पूरे करना ही जीने की कला है.
sangeeta ji...aapki har rachna apne aap mein anoothi hoti hai kyonki aap hamesha gagar mein sagar ko sarthak kar deti hai!shubhkamnayen!
यह तो बहुत अच्छी कविता है...
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'पाखी की दुनिया' में 'लाल-लाल तुम बन जाओगे...'
khaab naa hon to aankhen pthraa jaayen .aai wash ki maanind hoten hain khaab .
bhaav -saundary dekhte hi bntaa hai ,naye shbd prayog bhi .badhaai .
veerubhai
यथा नाम तथा गुण ।
पन्ने पलटो
तो झर जाते हैं
सूखे फूल की तरह...
जिंदगी कि हकीकत बयान करती हुयी पंक्तियाँ.... आप इतना अच्छा लिखती हैं कि उसकी तारीफ़ में कुछ कहना सूरज को दिया दिखाने जैसा ही है
बहुत सुंदर .अह्मद्फराज़ साब का यह सदाबहार शेर आपको नज़र
अबके हम बिछड़े तो शायद कभी खाबों में मिले
जिस तरह सूखे फूल किताबों में मिले
Vah kya..baat kahi hai aapne...
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