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सूखे फूल

>> Sunday 1 August 2010






ख्वाब यूँ ही 

दफ़न हो जाते हैं 

ज़िम्मेदारी की 

किताबों में 


परत दर परत..

पन्ने पलटो 

तो झर जाते हैं 

सूखे फूल की तरह...





54 comments:

मनोज कुमार Sun Aug 01, 08:27:00 pm  

सच है इस तरह से कितने ही सपने बिखर जाते हैं।

kshama Sun Aug 01, 08:27:00 pm  

Aah! Na jaane kya,kya yaad aa gaya!!

Sunil Kumar Sun Aug 01, 08:41:00 pm  

सुंदर भावाव्यक्ति बधाई

#vpsinghrajput Sun Aug 01, 08:59:00 pm  

बहुत सुंदर जी

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' Sun Aug 01, 09:11:00 pm  

बहुत ही सुन्दर भाव के साथ आपने यह क्षणिका प्रस्तुत की है!
--
मित्र दिवस पर शुभकामनाएँ स्वीकार करें!

डॉ टी एस दराल Sun Aug 01, 09:11:00 pm  

उदासी में भी सुन्दरता झलक रही है ।

रचना दीक्षित Sun Aug 01, 09:30:00 pm  

एकदम सही कहा है ...पर इसीलिए तो कहते हैं की किताबें सहेज कर रखनी चाहिए

sanu shukla Sun Aug 01, 09:33:00 pm  

ha log jimmedariyo k bojh se aise dabe rahte hai ki unhe apne khwabo ko sakar karane ka samay hi nahi milta aur jab dhyan aata hai tab tak to badi der ho chuki hoti hai......bahut sundar abhivyakti didi..!!

aradhana Sun Aug 01, 09:34:00 pm  

बहुत सुन्दर भाव और सुन्दर प्रतीकों के माध्यम से ... कहे गए.

अनामिका की सदायें ...... Sun Aug 01, 10:18:00 pm  

और वो सूखे फूल ना जाने कितनी यादों की मञ्जूषा से महक फैला जाते है..चिरकाल तक.
सुंदर रचना.

अरुण चन्द्र रॉय Sun Aug 01, 10:29:00 pm  

कम शब्दों में जिंदगी की हकीकत बाया कर देती हैं आप... बिम्ब सदैव नए होते हैं... इस कविता में भी है... सूखे फूल' अच्छा बिम्ब है...

Sadhana Vaid Sun Aug 01, 10:40:00 pm  

कितने कम शब्दों में कितनी गहरी बात कह जाती हैं आप और वह भी कितने प्रभावशाली ढंग से ! आपको नमन है !

सम्वेदना के स्वर Sun Aug 01, 11:42:00 pm  

संगीता दी,
समाज में आए दिन कितने ही ऐसे लोग हैं जो अपनी ज़िम्मेदारियों के कारण, अपने ख़्वाब दबा देते हैं कुछ ऐसे कि उन ख़्वाबों से ख़्वाबों में भी मुलाक़ात नहीं हो पाती. एक परम्परा, एक वेदना, एक टीस, और एक सुख भी… सारे भाव इस कविता में सिमटआए हैं...
सलिल

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) Sun Aug 01, 11:45:00 pm  

सुंदर भावाव्यक्ति .........

nilesh mathur Mon Aug 02, 12:38:00 am  

बहुत ही कम और सुन्दर शब्दों में बेहतरीन अभिव्यक्ति!

लोकेन्द्र सिंह Mon Aug 02, 12:53:00 am  

बहुत खूब लिखा है ....

M VERMA Mon Aug 02, 05:30:00 am  

जिम्मेदारियाँ ही तो हैं जो निभाते निभाते हम अपने अस्तित्व को भी बिसरा देते है
सुन्दर भाव

Udan Tashtari Mon Aug 02, 07:49:00 am  

कितना जबरदस्त सच है.

Satish Saxena Mon Aug 02, 07:54:00 am  

दो लाइनों में आपने लगता है अपना मन की टीस तो व्यक्त कर ही दी लगता है हमारी भी बता दी ...
सादर

विनोद कुमार पांडेय Mon Aug 02, 08:27:00 am  

गागर में सागर...धन्यवाद संगीता जी

प्रवीण पाण्डेय Mon Aug 02, 08:41:00 am  

आने वाले कल की चिन्ता स्वप्नों को पनपने से रोकती है।

Aruna Kapoor Mon Aug 02, 12:34:00 pm  

काश कि जिम्मेदारी की किताबे होती ही नही!...फिर तो हमारे ख्वाब मुक्त विचरण कर रहे होते!... सुंदर रचना!

Urmi Mon Aug 02, 01:24:00 pm  

बहुत सुन्दर लिखा है आपने ! उम्दा प्रस्तुती!
मित्रता दिवस की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनाएँ!

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' Mon Aug 02, 01:37:00 pm  

ख्वाब यूँ ही दफ़न हो जाते हैं..
ज़िम्मेदारी की किताबों में ...
परत दर परत..पन्ने पलटो
तो झर जाते हैं.. सूखे फूल की तरह.

वाह...वाह
कमाल के भाव पेश किए हैं आपने.

vandana gupta Mon Aug 02, 01:43:00 pm  

अब क्या कहूँ ----------आपने तो ज़िन्दगी की हकीकत बयाँ कर दी और हर दिल का हाल्……………बहुत ही गहरी वेदना भरी है इन चंद लफ़्ज़ों में।

shikha varshney Mon Aug 02, 03:22:00 pm  

kam shabdon men bahut bada sach likh dia aapne ..bahut sundar.

DR.ASHOK KUMAR Mon Aug 02, 04:21:00 pm  

बहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति हैँ।जिम्मेदारियोँ के बोझ से अनगिनत सपने साकार नहीँ हो पाते हैँ, कितना ठीक कहा हैँ आपने। आप इस ब्लोग पते परक्लिक कर सकते हैँ।

shama Mon Aug 02, 04:57:00 pm  

Chand alfaaz aur gahree baat kahna koyi aapse seekhe!

ताऊ रामपुरिया Mon Aug 02, 11:04:00 pm  

बहुत ही सुंदर.

रामराम

ताऊ रामपुरिया Mon Aug 02, 11:04:00 pm  

बहुत ही सुंदर.

रामराम

Shayar Ashok : Assistant manager (Central Bank) Tue Aug 03, 10:30:00 am  

वाह !! बहुत खूब ||
शब्द कम, भाव गहरे ||
इसे कहते हैं , उस्तादी ||

चैन सिंह शेखावत Tue Aug 03, 05:52:00 pm  

आदरणीय संगीता जी..
बहुत थोड़े शब्दों में आपने ज़िन्दगी के एक कटु सत्य का बखान कर दिया...
'देखन में छोटे लगे , घाव करे गंभीर '
यह उक्ति सटीक है आपकी इस कविता के लिये ...बधाई..

www.dakbabu.blogspot.com Wed Aug 04, 01:01:00 pm  

बहुत खूबसूरती से लिखा..बधाई.

सदा Wed Aug 04, 04:39:00 pm  

बेहतरीन शब्‍द प्रस्‍तुति ।

hem pandey Wed Aug 04, 07:59:00 pm  

जिम्मेदारी निभाते हुए ख्वाब पूरे करना ही जीने की कला है.

Parul kanani Thu Aug 05, 12:24:00 pm  

sangeeta ji...aapki har rachna apne aap mein anoothi hoti hai kyonki aap hamesha gagar mein sagar ko sarthak kar deti hai!shubhkamnayen!

Akshitaa (Pakhi) Thu Aug 05, 01:18:00 pm  

यह तो बहुत अच्छी कविता है...
________________________
'पाखी की दुनिया' में 'लाल-लाल तुम बन जाओगे...'

virendra sharma Fri Aug 06, 02:57:00 pm  

khaab naa hon to aankhen pthraa jaayen .aai wash ki maanind hoten hain khaab .
bhaav -saundary dekhte hi bntaa hai ,naye shbd prayog bhi .badhaai .
veerubhai

Anonymous Sun Aug 22, 11:59:00 am  

पन्ने पलटो

तो झर जाते हैं

सूखे फूल की तरह...

जिंदगी कि हकीकत बयान करती हुयी पंक्तियाँ.... आप इतना अच्छा लिखती हैं कि उसकी तारीफ़ में कुछ कहना सूरज को दिया दिखाने जैसा ही है

Unknown Mon Aug 30, 12:09:00 pm  

बहुत सुंदर .अह्मद्फराज़ साब का यह सदाबहार शेर आपको नज़र
अबके हम बिछड़े तो शायद कभी खाबों में मिले
जिस तरह सूखे फूल किताबों में मिले

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