कुछ विशेष नहीं है जो कुछ अपने बारे में बताऊँ...
मन के भावों को
कैसे सब तक पहुँचाऊँ
कुछ लिखूं या
फिर कुछ गाऊँ
।
चिंतन हो
जब किसी बात पर
और मन में
मंथन चलता हो
उन भावों को
लिख कर मैं
शब्दों में
तिरोहित कर जाऊं ।
सोच - विचारों की शक्ति
जब कुछ
उथल -पुथल सा
करती हो
उन भावों को
गढ़ कर मैं
अपनी बात
सुना जाऊँ
जो दिखता है
आस - पास
मन उससे
उद्वेलित होता है
उन भावों को
साक्ष्य रूप दे
मैं कविता सी
कह जाऊं.
khwabo se kaun bichadna chahta hain, dil main apne hamesha basaye rakhna chahta hain. palko par phir se inhe sajaa kar,dosti ki nayi shuruaat karna chahta hain.
khwab ke bager aankhe sachmuch suni ho jaati hain.
Achha msg hai. Khwab dekha jae tabhi pura karne ki koshish ki jati hai. Mera khwab Insaniyat ki seva hai. Kyonki mujhe lagta hai ki Insaniyat ki seva karna sabse achha kaam hai.
एक बार फिर मैं पंजाबी के प्रसिद्ध कवि अवतार सिंह पाश को कोड़ करूंगा सचमुच सबसे खतरनाक होता है हमारे सपनों का मर जाना ख्वाब को तो किसी भी सूरत में जिन्दा रखना होगा ख्वाब श्रृंखला पर लिखी गई यह रचना भी उत्कृष्ट बन पड़ी है... एक बात तो बताइए आपके ख्वाबों में किसकों दाखिल होने की इजाजत है...
संगीता दी, ख़्वाबों से कुट्टी ही क्यों की ... किसी की तमन्ना होठों पर उँगली रखकर आपके ख़्वाबों को ठिठकने पर मजबूर करती है...कभी ख्वाहिशों की कमी के कारण ख़्वाबों के अम्बार आँखें नम कर जाते हैं...कभी ये ज़िद्दी बच्चों की तरह ज़बरदस्ती चले आते हैं...कभी कोई ख़्वाबों में आकर बिना दस्तक दिए चला जाता है आपके... जब ख़्वाबों ने इतने रूप दिखाए हैं आपको तो फिर कुट्टी ही क्यों… और फिर मिट्ठी भी... मैं तो दीदी को छोड़कर ख़्वाबों की साइड में हूँ... जब आँखें पथरा जाएंगी तब कहूँगा इनसे कि चल खुसरो घर आपने रैन भई चहुँ देस!! संगीता दी बहुत ख़ूबसूरत नज़्म!!
आप की रचना 06 अगस्त, शुक्रवार के चर्चा मंच के लिए ली जा रही है, कृप्या नीचे दिए लिंक पर आ कर अपने सुझाव देकर हमें प्रोत्साहित करें. http://charchamanch.blogspot.com
भगवान से यही प्रार्थना है कि ख़्वाबों से आपकी मिट्ठी हमेशा कायम रहे और आपकी आँखों को कभी पथराने की तकलीफ से ना गुजरना पड़े ! बहुत ही खूबसूरत और भावपूर्ण रचना संगीताजी ! बहुत बहुत बधाई
संगीता जी , बहुत दिन बाद मिट्ठी शब्द का प्रयोग सुना ...आनंद आ गया रूहेलखंड क्षेत्र में यह शब्द बच्चों में बहुत प्रचलित है , प्यारी रचना के लिए शुभकामनायें
ख़्वाब ही तो जिन्दगी की सीढ़ी जिस पर चढ़ कर मंजिलों की तरफ बढ़ा जा सकता है. इनसे रूठ कर तो गति ही थम जायेगी. ख़्वाब ही दिशा है, मंजिल की ओर इशारा करते हुए दिग्दर्शक हैं. बस इसी तरह से चले चलिए आँखों में ख़्वाबबसाये.
संगीता जी , अच्छा हुआ जो लाज शर्म सब छोड़कर हमने मिट्ठी का मतलब पूछ लिया । हमरे साथ औरों को भी समझ आ गया । बचपन में कट्टी शब्द तो सुना था हालाँकि कभी किसी से की नहीं। लेकिन मिट्ठी कभी नहीं सुना था , जबकि करते सब से रहे । अब तो रचना का आनंद दुगना हो गया । आभार ।
मुझे क्षमा करना, मेरे प्रिय पाठकों! मुझे क्षमा करना, मैं अपनी और अपनी तमाम मुस्लिम बिरादरी की ओर से आप से क्षमा और माफ़ी माँगता हूँ जिसने मानव जगत के सब से बड़े शैतान (राक्षस) के बहकावे में आकर आपकी सबसे बड़ी दौलत आप तक नहीं पहुँचाई उस शैतान ने पाप की जगह पापी की घृणा दिल में बैठाकर इस पूरे संसार को युद्ध का मैदान बना दिया। इस ग़लती का विचार करके ही मैंने आज क़लम उठाया है...
दीदी , इतनी प्यारी बात कही...पढते ही मुस्कराहट आ गयी होठों पे ....मुझे तो पता ही नहीं था कि आपने ख़्वाबों से कुट्टी भी की थी....चलो अच्छा हुआ मिट्ठी कर ली....अब आँखें चमकेंगी उन ख़्वाबों के नूर से ....:)
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ हैं...अब ख़्वाबों से कट्टी-मिट्ठी भी... :-) और उस पर प्रवीण जी की टिप्पणी भी क्या खूब है. पोस्ट देर से पढ़ने का मज़ा ही कुछ और है. प्यारी सी प्सोत पर प्यारी सी टिप्पणियाँ पढ़ने को मिलती हैं... बोनस के रूप में.
संगीता जी ख़्वाबों से मिट्ठी करके जिंदगी जीने का अंदाज क्या खूब है ...फिर एक नया सपना देखने का मन कर रहा है .... और हॉं आपका एक संदेश मिला है मुझे कि मंगलवार 10 अगस्त को मेरी रचना चर्चा मंच पर ली जा रही है कृपया मुझे विस्तार से इस बारे में बताने का कष्ट करेंगी ।.
74 comments:
ख्वाब ना हों तो
आँखें पथरा सी
जाती हैं.......
Janti hun,jab aisa hota hai to kaisa lagta hai..
बहुत खूब , मुवारक हो
सच बात है।
behad khubsurat
सच ही कहा है..
ख्वाब के बगैर आंखें कितनी सूनी हो जाती हैं...
वाह....वाह.
मिट्ठी का मतलब समझ नहीं आया जी ।
खाबों से मिट्ठी जो हो जाए जिन्दगी खूबसूरत हो जाती है.. छोटी किन्तु भावपूर्ण रचना
सभी पाठकों का आभार ...
डा० दराल ,
मिट्ठी का मतलब दोस्ती...बचपन में बच्चे .कट्टी और मिट्ठी करते रहते हैं न अपने दोस्तों के साथ ...बस वही .. :):)
ओह!
और मैं इसे मीठी पढ रहा था, अपनी तरफ़ से सुधार करके।
:):):)
bahut nanhi hi khoobsoorat baat kahi Mumma...:)
aur sateek bhi hai......ankhon ko khaali ni rakhna chahiye..hehhee..:)
बिना ख़्वाब के आंखें पथरा जाती हैं ...
कवयित्री की भाषिक संवेदना पाठक को ख़्वाब की दुनिया की हक़ीक़त का सैर कराने में सक्षम है ...
khwabo se kaun bichadna chahta hain,
dil main apne hamesha basaye rakhna chahta hain.
palko par phir se inhe sajaa kar,dosti ki nayi shuruaat karna chahta hain.
khwab ke bager aankhe sachmuch suni ho jaati hain.
हां जी,कट्टी(खट्टी)के मिट्ठी होना भी जरुरी है।
आभार
ख़्वाबों के बगैर आँखें निस्तेज
बहुत लाजवाब अभिव्यक्ति.
रामराम.
बिलकुल सही कहा संगीताजी!... आंखें और ख्वाब भला कभी अलग भी रह सकते है?...सुंदर रचना मेरे सामने है!
क्षणिका बहुत बढ़िया लिखी है आपने!
Achha msg hai. Khwab dekha jae tabhi pura karne ki koshish ki jati hai. Mera khwab Insaniyat ki seva hai. Kyonki mujhe lagta hai ki Insaniyat ki seva karna sabse achha kaam hai.
एक बार फिर मैं पंजाबी के प्रसिद्ध कवि अवतार सिंह पाश को कोड़ करूंगा
सचमुच सबसे खतरनाक होता है हमारे सपनों का मर जाना
ख्वाब को तो किसी भी सूरत में जिन्दा रखना होगा
ख्वाब श्रृंखला पर लिखी गई यह रचना भी उत्कृष्ट बन पड़ी है...
एक बात तो बताइए आपके ख्वाबों में किसकों दाखिल होने की इजाजत है...
आज के दौर में अगर आँखें पथरा जाये तो कोई मुश्किल नहीं है मगर ऐसा न हो तो बेहतर है ।
ख्वाब ही जीवन की राह दिखाते हैं।
संगीता दी,
ख़्वाबों से कुट्टी ही क्यों की ...
किसी की तमन्ना होठों पर उँगली रखकर आपके ख़्वाबों को ठिठकने पर मजबूर करती है...कभी ख्वाहिशों की कमी के कारण ख़्वाबों के अम्बार आँखें नम कर जाते हैं...कभी ये ज़िद्दी बच्चों की तरह ज़बरदस्ती चले आते हैं...कभी कोई ख़्वाबों में आकर बिना दस्तक दिए चला जाता है आपके...
जब ख़्वाबों ने इतने रूप दिखाए हैं आपको तो फिर कुट्टी ही क्यों… और फिर मिट्ठी भी... मैं तो दीदी को छोड़कर ख़्वाबों की साइड में हूँ... जब आँखें पथरा जाएंगी तब कहूँगा इनसे कि चल खुसरो घर आपने रैन भई चहुँ देस!!
संगीता दी बहुत ख़ूबसूरत नज़्म!!
आप की रचना 06 अगस्त, शुक्रवार के चर्चा मंच के लिए ली जा रही है, कृप्या नीचे दिए लिंक पर आ कर अपने सुझाव देकर हमें प्रोत्साहित करें.
http://charchamanch.blogspot.com
आभार
अनामिका
maasoom si nazm...
सुन्दर अभिव्यक्ति...सपने के बिना तो निस्तेज हैं आँखें
ख्वाब न हों तो हमें नींद भी नहीं आती है
और तो और ख्वाब में ही उस हंसी परी से मुलाकात हो पाती है....
बहुत उम्दा रचना..........
bahut khub...lajawab...
भगवान से यही प्रार्थना है कि ख़्वाबों से आपकी मिट्ठी हमेशा कायम रहे और आपकी आँखों को कभी पथराने की तकलीफ से ना गुजरना पड़े ! बहुत ही खूबसूरत और भावपूर्ण रचना संगीताजी ! बहुत बहुत बधाई
एक नया सोच लिये रचना |
बधाई |
आशा
बहुत खूब!
संगीता जी ,
बहुत दिन बाद मिट्ठी शब्द का प्रयोग सुना ...आनंद आ गया रूहेलखंड क्षेत्र में यह शब्द बच्चों में बहुत प्रचलित है , प्यारी रचना के लिए शुभकामनायें
सुन्दर अभिव्यक्ति......... सुंदर रचना....
ख्वाब ना हो तो आँखें पथरा जाती हैं ...
सच कहा ...!
ख्वाब ना हों तो
आँखें पथरा सी
जाती हैं.......|
एकदम सच बात है...सुंदर अभिव्यक्ति ...!!
बहुत उम्दा!
भावपूर्ण उम्दा रचना ...
बहुत सुन्दर रचना है।बधाई।
बहुत सुन्दर रचना है।बधाई।
सपना होगा तो उड़ान होगी ...
लहर होगी तो शान होगी
ab to bas kehna padega..'waah'!
ख़्वाबों से कट्टी करके तो आँखें सूनी ही रहेंगी..मिट्ठी करने में ही भलाई है :)
ख़्वाब ही तो जिन्दगी की सीढ़ी जिस पर चढ़ कर मंजिलों की तरफ बढ़ा जा सकता है. इनसे रूठ कर तो गति ही थम जायेगी. ख़्वाब ही दिशा है, मंजिल की ओर इशारा करते हुए दिग्दर्शक हैं. बस इसी तरह से चले चलिए आँखों में ख़्वाबबसाये.
संगीता जी , अच्छा हुआ जो लाज शर्म सब छोड़कर हमने मिट्ठी का मतलब पूछ लिया । हमरे साथ औरों को भी समझ आ गया ।
बचपन में कट्टी शब्द तो सुना था हालाँकि कभी किसी से की नहीं। लेकिन मिट्ठी कभी नहीं सुना था , जबकि करते सब से रहे ।
अब तो रचना का आनंद दुगना हो गया । आभार ।
ख्वाब बिना तो ज़िन्दगी भी अधूरी है इनका पलकों पर सजे रहना बहुत जरूरी है……………बेहद सुन्दर भाव्।
मुझे क्षमा करना, मेरे प्रिय पाठकों! मुझे क्षमा करना, मैं अपनी और अपनी तमाम मुस्लिम बिरादरी की ओर से आप से क्षमा और माफ़ी माँगता हूँ जिसने मानव जगत के सब से बड़े शैतान (राक्षस) के बहकावे में आकर आपकी सबसे बड़ी दौलत आप तक नहीं पहुँचाई उस शैतान ने पाप की जगह पापी की घृणा दिल में बैठाकर इस पूरे संसार को युद्ध का मैदान बना दिया। इस ग़लती का विचार करके ही मैंने आज क़लम उठाया है...
आपकी अमानत
"ख्वाब ना हों तो
आँखें पथरा सी
जाती हैं......."
बहुत सुन्दर संगीता जी ! ख्वाबो के बगैर शायद इन्सान ठीक से जी भी न पाए !
ख्वाब ना हों तो
आँखें पथरा सी
जाती हैं.......
sachchi di! ham to isliye jagte aankho se bhi khabab dekhte hain.........:)
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
खूबसूरत
बहुत सुन्दर!
वाह संगीता जी क्या कहूँ इतने कम शब्दों में इतनी बड़ी बात .बस वाह वाह वाह वाह
वाह संगीता जी क्या कहूँ इतने कम शब्दों में इतनी बड़ी बात .बस वाह वाह वाह वाह
sngitaa bhn bhut khub aankh,mitti or khvaab kaa chn alfaazon men yeh vistrit vrnn qaabile taaif he, bdhayi ho . akhtar khan akela kota rajsthan
aapki har post khoobsurat hoti h........mere paas comment karne layak tazurba to nhi h, phir bhi 'sukhe phool' aur' shhhhh' bahut pasand ayi.
बहुत सुन्दर भाव् अभिव्यक्ति है।बधाई।
Very Nice Poem
--------
चांद बादल और शाम
वाह बहुत खूब लिखा है आपने! आखिर ख़्वाब ही हमें जीवन की राह दिखाती है और बिना ख़्वाब देखे कुछ भी नहीं कर सकते हम !
aap ki prastuti hakikat byan karti hai
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.....................
दीदी ,
इतनी प्यारी बात कही...पढते ही मुस्कराहट आ गयी होठों पे ....मुझे तो पता ही नहीं था कि आपने ख़्वाबों से कुट्टी भी की थी....चलो अच्छा हुआ मिट्ठी कर ली....अब आँखें चमकेंगी उन ख़्वाबों के नूर से ....:)
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ हैं...अब ख़्वाबों से कट्टी-मिट्ठी भी... :-)
और उस पर प्रवीण जी की टिप्पणी भी क्या खूब है. पोस्ट देर से पढ़ने का मज़ा ही कुछ और है. प्यारी सी प्सोत पर प्यारी सी टिप्पणियाँ पढ़ने को मिलती हैं... बोनस के रूप में.
badhiya
आपकी शुभकामनाएं मेरे लिए अमूल्य निधि है!....धन्यवाद!
is choti si rachna ne to jaan hi le li bahut khub
बहुत ही खूबसूरत शब्दों का उपयोग किया है आपने, भावपूर्ण प्रस्तुति ।
आपने तो बहुत सुन्दर लिखा...
संगीता जी ख़्वाबों से मिट्ठी करके जिंदगी जीने का अंदाज क्या खूब है ...फिर एक नया सपना देखने का मन कर रहा है ....
और हॉं आपका एक संदेश मिला है मुझे कि मंगलवार 10 अगस्त को मेरी रचना चर्चा मंच पर ली जा रही है कृपया मुझे विस्तार से इस बारे में बताने का कष्ट करेंगी ।.
ख्वाब ना हों तो
आँखें पथरा सी
जाती हैं.......
...बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
...धन्यवाद!
संगीता जी,
शायद यही जीवन संदेश भी है ख्वाबों को फिरसे सजा लेना आँखों पर।
बहुत सुन्दर!
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
चर्चामंच मे "कवितायन" को शामिल किये जाने के लिये आभार, धन्यवाद।
बात कही है ... सच में ख्वाब न हों तो जीवन नही ...
Very impressive .....
ख़्वाबों से
मिट्ठी करके..........
..आपकी छोटी-छोटी कविताएँ बड़ी-बड़ी बातें करती हैं।
एक-एक पर लम्बी चर्चा हो सकती है।
dreams keep us alive!
lovely expression!
regards,
bahut khoob...har nzm ki tarah behadd umda.
सपना सपना ही रहने दो,
सपने मैं ही सही तुम्हे अपना कहने दो,
तुम्हें मुबारक हो घर अपना
दीवारों से मुझको लिपटा रहने दो,
मील के पत्थर बताते हैं मंजिल का पता.
पत्थर ही सही उसे मेरा हम सफ़र रहने दो,
इंतज़ार की हद्द बाकी है अभी,
आँखों को मरने के बाद भी खुला रहने दो,
सपना सपना ही रहने दो,
सपने मैं ही सही तुम्हे अपना कहने दो.
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