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शबनम .

>> Friday, 5 March 2010


समंदर छलका



जो आँखों का


तो,


बह आई एक लहर


मन के साहिल की


तपती रेत पर


पड़ गयी हो


जैसे शबनम .
 
 
 
 
 
 
 
 
 

10 comments:

मनोज कुमार Fri Mar 05, 02:14:00 pm  

बहुत अच्छी प्रस्तुति।
इसे 06.03.10 की चिट्ठा चर्चा (सुबह ०६ बजे) में शामिल किया गया है।
http://chitthacharcha.blogspot.com/

रचना दीक्षित Fri Mar 05, 02:24:00 pm  

बहुत प्रभावशाली रचना सुंदर दिल को छूते शब्द

shikha varshney Fri Mar 05, 02:50:00 pm  

बहुत सुन्दर भाव

ताऊ रामपुरिया Fri Mar 05, 03:17:00 pm  

बहुत ही खूबसूरत रचना.

रामराम.

अनामिका की सदायें ...... Fri Mar 05, 11:59:00 pm  

क्यों न इसे पूरी एक कविता का रूप दे दिया जाये..
बहुत अच्छी शुरुआत हे...आगे कोशिश करो लिखने की...अच्छी कविता बन जाएगी...इंतजार रहेगा..

Sulabh Jaiswal "सुलभ" Sat Mar 06, 01:29:00 pm  

आनामिका जी से सहमत!

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" Sat Mar 06, 08:13:00 pm  

आप इतने कम शब्दों में इतना कुछ कह गए....!

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