कुछ विशेष नहीं है जो कुछ अपने बारे में बताऊँ...
मन के भावों को
कैसे सब तक पहुँचाऊँ
कुछ लिखूं या
फिर कुछ गाऊँ
।
चिंतन हो
जब किसी बात पर
और मन में
मंथन चलता हो
उन भावों को
लिख कर मैं
शब्दों में
तिरोहित कर जाऊं ।
सोच - विचारों की शक्ति
जब कुछ
उथल -पुथल सा
करती हो
उन भावों को
गढ़ कर मैं
अपनी बात
सुना जाऊँ
जो दिखता है
आस - पास
मन उससे
उद्वेलित होता है
उन भावों को
साक्ष्य रूप दे
मैं कविता सी
कह जाऊं.
10 comments:
ati sunder .
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
इसे 06.03.10 की चिट्ठा चर्चा (सुबह ०६ बजे) में शामिल किया गया है।
http://chitthacharcha.blogspot.com/
बहुत प्रभावशाली रचना सुंदर दिल को छूते शब्द
बहुत सुन्दर भाव
बहुत ही खूबसूरत रचना.
रामराम.
क्यों न इसे पूरी एक कविता का रूप दे दिया जाये..
बहुत अच्छी शुरुआत हे...आगे कोशिश करो लिखने की...अच्छी कविता बन जाएगी...इंतजार रहेगा..
आनामिका जी से सहमत!
आप इतने कम शब्दों में इतना कुछ कह गए....!
umda rachna hai...
Kamal hai!
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