कल्पना का इन्द्रधनुष
>> Wednesday, 24 March 2010
कल्पना के
इन्द्रधनुष को
किसी क्षितिज की
दरकार नहीं
ये तो
उग आते हैं
मन के
आँगन के
किसी कोने में ....
http://blog4varta.blogspot.com/2010/03/4_25.html
खलिश होती है तो यूँ ही बयां होती है , हर शेर जैसे सीप से निकला हुआ मोती है
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19 comments:
सच दी ! कल्पना को कोई जगह नहीं चाहिए होती पनपने के लिए ...बेहद सुन्दर अभिव्यक्ति है.और कल्पना कि तुलना इन्द्रधनुष से तो कमाल है
बिल्कुल सही!! बहुत बढ़िया शब्द दिये.
bahut sunderaur solah aane sahee baat....
Sundar :) ..bilkul indradhanush ki tarah
वाह संगीता जी वाह !!!!!!!!क्या बात कही है बिलकुल सच और दिल के क़रीब
सच...कल्पना के इन्द्रधनुष को किसी चीज़ की दरकार नहीं कहीं भी किसी के मन में कभी भी उग आ सकते हैं
बहुत गहरे और सुंदर भाव.
रामराम.
कल्पना जो ठहरी ...अच्छी प्रस्तुति
और ख़ास बात ये भी है की इसमें गिने-चुने सात नहीं बल्कि अनगिनत होते हैं रंग..
ये तो उग आते हैं मन के आँगन के किसी कोने में
लाजबाब भाव , बहुत सुन्दर !
बहुत ही गहराई के साथ आपने बिल्कुल सही फ़रमाया है! बहुत सुन्दर रचना!
नमस्कार, आज आपकी कई कविताएँ पढ़ी, वैसे भी छोटी कविताएँ मुझे पसंद हैं, बहुत ही कम और सरल शब्दों में आप अपनी बात कह देती हैं, आपको पढ़ कर अच्छा लगा!
संक्षिप्त किन्तु सशक्त अभिव्यक्ति -विस्तृत नभ के कोने मन के वितान की वामन परिधि में नही तो समो गये हैं !
आप बेहतर लिख रहे/रहीं हैं .आपकी हर पोस्ट यह निशानदेही करती है कि आप एक जागरूक और प्रतिबद्ध रचनाकार हैं जिसे रोज़ रोज़ क्षरित होती इंसानियत उद्वेलित कर देती है.वरना ब्लॉग-जगत में आज हर कहीं फ़ासीवाद परवरिश पाता दिखाई देता है.
हम साथी दिनों से ऐसे अग्रीग्रटर की तलाश में थे.जहां सिर्फ हमख्याल और हमज़बाँ लोग शामिल हों.तो आज यह मंच बन गया.इसका पता है http://hamzabaan.feedcluster.com/
Wow.After hearing from Shipra about your blogs i thought i will have look and after going through this i can simply say you are really good.Even though I was your student still my hindi is not great still i will try to say "बहुत ही सुन्दर भाव थे आपकी कविता मे , कल्पना कि तुलना ईन्द्रधनुश से लाजावाब थी"
-Hitesh
कल्पना की दुनियां के रंग अमिट होते है बिल्कुल आपकी इस कविता की तरह
Maze ki baat to yeh hai Sangeete ji, kalpana ke indrdhanush ko baarish aur phir dhoop ki bhi darkaar nahin!
Aur rangon mein bhi ye ginti ka mohtaaj nahin!
Saadhuwaad!
sahi hai.........bahut sunder kavita.
Very beautiful!
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