कुछ विशेष नहीं है जो कुछ अपने बारे में बताऊँ...
मन के भावों को
कैसे सब तक पहुँचाऊँ
कुछ लिखूं या
फिर कुछ गाऊँ
।
चिंतन हो
जब किसी बात पर
और मन में
मंथन चलता हो
उन भावों को
लिख कर मैं
शब्दों में
तिरोहित कर जाऊं ।
सोच - विचारों की शक्ति
जब कुछ
उथल -पुथल सा
करती हो
उन भावों को
गढ़ कर मैं
अपनी बात
सुना जाऊँ
जो दिखता है
आस - पास
मन उससे
उद्वेलित होता है
उन भावों को
साक्ष्य रूप दे
मैं कविता सी
कह जाऊं.
12 comments:
मंझदार से बचे
तो बेडा पार लगे.
बहुत लाजवाब.
रामराम.
chitr aur panktiya thouno hee ati sunder .
अरे ये क्या उतार दिया दी मझदार में?....एसा मत करो हमारा क्या होगा :)
खवाबो की कश्ती को हौसलों की पतवार दे दो
तो मझधार से बच बेडा पार कर ही जाएगी.
...बेहद खूबसूरत रचना!!!!
सुन्दर अभिव्यक्तियाँ..लाजवाब रचना..बधाई !!
____________________
'शब्द-शिखर' पर पढ़ें 'अंतरराष्ट्रीय नारी दिवस' पर आधारित पोस्ट. अंतरराष्ट्रीय नारी दिवस के 100 साल पर बधाई.
sundar laghukavya !
वाह बहुत बढ़िया! लाजवाब पंक्तियाँ!
कम शब्दों में गहरी बात कही है आपने..महिला दिवस पर हमारा नमन ..
http://samvedanakeswar.blogspot.com
महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनायें
कम शब्दों मे बडी बात कहने की महारत हासिल है आपको। शुभकामनायें
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति ।
Post a Comment