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ख़्वाबों की कश्ती

>> Sunday, 7 March 2010



ख़्वाबों को कश्ती में


डाल कर

उतार दिया है

इस जहाँ के

दरिया में

मंझधार से बचे

तो बेड़ा पार लगे.

12 comments:

ताऊ रामपुरिया Sun Mar 07, 04:20:00 pm  

मंझदार से बचे
तो बेडा पार लगे.

बहुत लाजवाब.

रामराम.

Apanatva Sun Mar 07, 05:13:00 pm  

chitr aur panktiya thouno hee ati sunder .

shikha varshney Sun Mar 07, 05:58:00 pm  

अरे ये क्या उतार दिया दी मझदार में?....एसा मत करो हमारा क्या होगा :)

अनामिका की सदायें ...... Sun Mar 07, 08:49:00 pm  

खवाबो की कश्ती को हौसलों की पतवार दे दो
तो मझधार से बच बेडा पार कर ही जाएगी.

कडुवासच Mon Mar 08, 06:53:00 am  

...बेहद खूबसूरत रचना!!!!

Akanksha Yadav Mon Mar 08, 10:58:00 am  

सुन्दर अभिव्यक्तियाँ..लाजवाब रचना..बधाई !!
____________________

'शब्द-शिखर' पर पढ़ें 'अंतरराष्ट्रीय नारी दिवस' पर आधारित पोस्ट. अंतरराष्ट्रीय नारी दिवस के 100 साल पर बधाई.

Urmi Mon Mar 08, 04:34:00 pm  

वाह बहुत बढ़िया! लाजवाब पंक्तियाँ!

सम्वेदना के स्वर Mon Mar 08, 11:10:00 pm  

कम शब्दों में गहरी बात कही है आपने..महिला दिवस पर हमारा नमन ..
http://samvedanakeswar.blogspot.com

अजय कुमार Tue Mar 09, 07:41:00 am  

महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनायें

निर्मला कपिला Tue Mar 09, 08:37:00 am  

कम शब्दों मे बडी बात कहने की महारत हासिल है आपको। शुभकामनायें

सदा Thu Mar 11, 12:11:00 pm  

बहुत ही सुन्‍दर अभिव्‍यक्ति ।

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