एक चुप
>> Monday, 3 May 2010
शोखियाँ
जो बोलीं
वो भी
बेबसी ही थी ,
उदासी भी थी
कुछ ज़मीं के
फासलों से ,
यूँ तो था नहीं
कोई दरम्याँ
हमारे,
बस एक चुप थी
जो मन को
बहुत सालती थी....
खलिश होती है तो यूँ ही बयां होती है , हर शेर जैसे सीप से निकला हुआ मोती है
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33 comments:
mumma...mummaaaaa..... ek song yad aa gayaa..
bas ek....chup si lagi hai ..naheen udaas naheen...
badi pyaari si chup hai ..jo saal rahi hai .,..
बिन बोले जो बात कही जायेगी
उसकी धमक फिर कैसे सही जायेगी
bahut khub
ye man hi to he jo kuch kuch chahta he
यु तो था नहीं कोई दरमियाँ हमारे..
वाह बहुत खूब. सुंदर भावो से सजाया है. बधाई.
मुझे तो वो गाना याद आ गया...मेरा फेवरेट.."दिल की गिरह खोल दो....चुप ना बैठो.."
सुन्दर रचना
यूँ तो था नहीं कोई दरमियाँ हमारे
बस एक चुप थी जो मन को बहुत सालती थी
सच है कभी-कभी चुप शब्दों के बाण से भी ज्यादा सालती है
बहुत खूब , चंद लफ्जों में लम्बी-चौड़ी बात !
सक्षिप्त किन्तु सारभूत !
एक चुप .. मन को सालनेवाली .. बहुत खूब !!
हमेशा की तरह सुन्दर रचना है ... मौन का निनाद बहुत शोर करता है ...
Silence has its own words.... बहुत अच्छी लगी यह कविता....
आपकी रचनाओं में अब तक की सबसे अनूठी रचना... कोमल भावनाओं को छूती हुई... शायद ही कोई होगा जिसने यह पल न जिया हो!! एक मेरा बड़ा ही पसंदीदा गीत याद आ गया… निदा फ़ाज़ली साहब का कलाम
चुप तुम रहो, चुप हम रहें
खामुशी को, खामुशी से
ज़िंदगी को, ज़िंदगी से
बात करने दो!
इस सिलसिले को बनाए रखिए... अच्छा लगता है.
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
आज इससे ज़्यादा कुछ नहीं बोलूंगा। कैसे मन मुस्काए जो पढ़ लिया है। कमाल की अभिव्यक्ति है।
एक चुप्पी १०० सवालो का जवाब होती है .मौन मनन क मौका है .दो लौगो के बीच मौन हो तो बाते दिल मे मन से होती है.
Oh! Wah!
excellent
waah bahut khoob...
बात है एक बूंद सी दिल के प्याले में
आते आते होठों तक तूफ़ान न बन जाये
इस कविता को पढ़कर बहुत सारे लोगों को बहुत से गाने याद आये ..मुझे भी एक याद आया बहुत ही खुबसूरत....चुप तुम रहो चुप हम रहें ख़ामोशी को ख़ामोशी से बात करने दो.
चुप यानी जो संवादो मे दुर्लभ ।
एक अच्छी रचना ।
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति!
चित्र भी रचना के अनुरूप ही हैं!
यु तो था नहीं कोई दरमियाँ हमारे..
वाह!बहुत बढ़िया जी...
कुंवर जी,
बस एक चुप थी हमारे दरम्याँ...
और क्या !
उस चुप मे ही तो सब कुछ छुपा है………………।कभी कभी चुप बोलने से ज्यादा कचोटती है……………गज़ब के भाव भरे हैं।
बस एक चुप थी
जो मन को
बहुत सालती थी....
sunder
वेदना की अभिव्यक्ति को बोलने की क्या आवश्यकता ?
waah...bahut sundar.
बिल्कुल नया अंदाज़ है!
--
प्यार से ... ... .
मेरा मन मुस्काया!
--
संपादक : सरस पायस
बहुत ही सुन्दर और शानदार रचना! उम्दा प्रस्तुती!
धड़कन बनी जुबां...
बाहों के दरमियाँ....
बस एक चुप थी
जो मन को
बहुत सालती थी
मौन में भी बहुत कुछ कहा जाता है बस इसकी भाषा आनी चाहिए
जन्मदिन की बधाई :)
यूँ तो था नहीं
कोई दरम्याँ
हमारे,
बस एक चुप थी
जो मन को
बहुत सालती थी..
too good.. waah..
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