copyright. Powered by Blogger.

एक चुप

>> Monday, 3 May 2010





शोखियाँ  

जो बोलीं

वो भी 

बेबसी ही थी ,

उदासी भी थी

कुछ ज़मीं के 

फासलों  से ,

यूँ तो था नहीं 

कोई  दरम्याँ   

हमारे,

बस एक चुप थी 

जो मन को 

बहुत सालती थी....


33 comments:

स्वप्निल तिवारी Mon May 03, 06:40:00 pm  

mumma...mummaaaaa..... ek song yad aa gayaa..

bas ek....chup si lagi hai ..naheen udaas naheen...

badi pyaari si chup hai ..jo saal rahi hai .,..

M VERMA Mon May 03, 06:47:00 pm  

बिन बोले जो बात कही जायेगी
उसकी धमक फिर कैसे सही जायेगी

Shekhar Kumawat Mon May 03, 06:52:00 pm  

bahut khub

ye man hi to he jo kuch kuch chahta he

अनामिका की सदायें ...... Mon May 03, 07:11:00 pm  

यु तो था नहीं कोई दरमियाँ हमारे..
वाह बहुत खूब. सुंदर भावो से सजाया है. बधाई.

rashmi ravija Mon May 03, 07:11:00 pm  

मुझे तो वो गाना याद आ गया...मेरा फेवरेट.."दिल की गिरह खोल दो....चुप ना बैठो.."
सुन्दर रचना

Anonymous Mon May 03, 07:14:00 pm  

यूँ तो था नहीं कोई दरमियाँ हमारे
बस एक चुप थी जो मन को बहुत सालती थी
सच है कभी-कभी चुप शब्दों के बाण से भी ज्यादा सालती है

पी.सी.गोदियाल "परचेत" Mon May 03, 07:16:00 pm  

बहुत खूब , चंद लफ्जों में लम्बी-चौड़ी बात !

Arvind Mishra Mon May 03, 07:27:00 pm  

सक्षिप्त किन्तु सारभूत !

संगीता पुरी Mon May 03, 07:37:00 pm  

एक चुप .. मन को सालनेवाली .. बहुत खूब !!

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" Mon May 03, 07:47:00 pm  

हमेशा की तरह सुन्दर रचना है ... मौन का निनाद बहुत शोर करता है ...

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) Mon May 03, 08:12:00 pm  

Silence has its own words.... बहुत अच्छी लगी यह कविता....

सम्वेदना के स्वर Mon May 03, 08:39:00 pm  

आपकी रचनाओं में अब तक की सबसे अनूठी रचना... कोमल भावनाओं को छूती हुई... शायद ही कोई होगा जिसने यह पल न जिया हो!! एक मेरा बड़ा ही पसंदीदा गीत याद आ गया… निदा फ़ाज़ली साहब का कलाम
चुप तुम रहो, चुप हम रहें
खामुशी को, खामुशी से
ज़िंदगी को, ज़िंदगी से
बात करने दो!
इस सिलसिले को बनाए रखिए... अच्छा लगता है.

मनोज कुमार Mon May 03, 08:39:00 pm  

बहुत अच्छी प्रस्तुति।
आज इससे ज़्यादा कुछ नहीं बोलूंगा। कैसे मन मुस्काए जो पढ़ लिया है। कमाल की अभिव्यक्ति है।

ओम पुरोहित'कागद' Mon May 03, 08:51:00 pm  

एक चुप्पी १०० सवालो का जवाब होती है .मौन मनन क मौका है .दो लौगो के बीच मौन हो तो बाते दिल मे मन से होती है.

रश्मि प्रभा... Mon May 03, 10:58:00 pm  

बात है एक बूंद सी दिल के प्याले में
आते आते होठों तक तूफ़ान न बन जाये

shikha varshney Mon May 03, 11:11:00 pm  

इस कविता को पढ़कर बहुत सारे लोगों को बहुत से गाने याद आये ..मुझे भी एक याद आया बहुत ही खुबसूरत....चुप तुम रहो चुप हम रहें ख़ामोशी को ख़ामोशी से बात करने दो.

अरुणेश मिश्र Mon May 03, 11:59:00 pm  

चुप यानी जो संवादो मे दुर्लभ ।
एक अच्छी रचना ।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' Tue May 04, 07:45:00 am  

बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति!
चित्र भी रचना के अनुरूप ही हैं!

kunwarji's Tue May 04, 09:31:00 am  

यु तो था नहीं कोई दरमियाँ हमारे..

वाह!बहुत बढ़िया जी...

कुंवर जी,

Sulabh Jaiswal "सुलभ" Tue May 04, 09:53:00 am  

बस एक चुप थी हमारे दरम्याँ...
और क्या !

vandana gupta Tue May 04, 05:27:00 pm  

उस चुप मे ही तो सब कुछ छुपा है………………।कभी कभी चुप बोलने से ज्यादा कचोटती है……………गज़ब के भाव भरे हैं।

Dr.R.Ramkumar Tue May 04, 10:08:00 pm  

बस एक चुप थी


जो मन को


बहुत सालती थी....


sunder

Satish Saxena Wed May 05, 08:27:00 am  

वेदना की अभिव्यक्ति को बोलने की क्या आवश्यकता ?

Urmi Thu May 06, 12:48:00 am  

बहुत ही सुन्दर और शानदार रचना! उम्दा प्रस्तुती!

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ Thu May 06, 07:48:00 pm  

धड़कन बनी जुबां...
बाहों के दरमियाँ....

रचना दीक्षित Fri May 07, 12:04:00 pm  

बस एक चुप थी
जो मन को
बहुत सालती थी
मौन में भी बहुत कुछ कहा जाता है बस इसकी भाषा आनी चाहिए

दिपाली "आब" Wed May 12, 03:43:00 pm  

यूँ तो था नहीं

कोई दरम्याँ

हमारे,

बस एक चुप थी

जो मन को

बहुत सालती थी..

too good.. waah..

रफ़्तार

About This Blog

Labels

Lorem Ipsum

ब्लॉग प्रहरी

ब्लॉग परिवार

Blog parivaar

हमारी वाणी

www.hamarivani.com

लालित्य

  © Free Blogger Templates Wild Birds by Ourblogtemplates.com 2008

Back to TOP