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तल्ख़ जुबां की किरचें

>> Wednesday, 19 May 2010





खुद को 

समेटते समेटते

चुभ गयीं हैं किरचें

कुछ तल्ख़ 

जुबां की ,

सहलाते हुए 

शब्दों का 

मरहम भी 

अब बेअसर हो

मन को लहुलुहान

किये  जाता है.. 




47 comments:

shikha varshney Wed May 19, 06:02:00 pm  

सच कहा ..छुरी की चोट इतनी नहीं लगती जितनी तल्ख़ जुबान की ...बेहद संवेदनशील रचना

honesty project democracy Wed May 19, 06:06:00 pm  

तल्ख़ जुबानी से हर किसी को बचना चाहिए /

स्वप्निल तिवारी Wed May 19, 06:08:00 pm  

mast nazm hai mumma..waise bhi kaha gaya hai ..

aisi bani boliye mann ka aapa khoy
auran ko sheetal kare aaphun sheetal hoy

मनोज कुमार Wed May 19, 06:12:00 pm  

सही है!
ज़ुबां की चोट सबसे पीड़ादायी होती है, ठीक वैसे ही जैसे इस कविता की तरह छोटी कविता का असर देर तक रहता है।

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" Wed May 19, 06:13:00 pm  

आपने एकदम सच लिखा है ... जुबान कड़वी हो तो चोट गहरी लगती है ...

nilesh mathur Wed May 19, 06:13:00 pm  

वाह! क्या बात है, हर बार की तरह बेहतरीन!

चैन सिंह शेखावत Wed May 19, 06:17:00 pm  

नज़्म छोटी ज़रूर है लेकिन वज़नदार है.
सुंदर.

माधव( Madhav) Wed May 19, 06:21:00 pm  

सही है!
ज़ुबां की चोट सबसे पीड़ादायी होती है

http://madhavrai.blogspot.com/

kunwarji's Wed May 19, 06:26:00 pm  

शब्द मरहम की बजाय चोट देने वाले बन गए!

वाह!

सुन्दर अभिव्यक्ति!

कुंवर जी,

पी.सी.गोदियाल "परचेत" Wed May 19, 06:29:00 pm  

चंद लफ्जों में ऊँची बात !

M VERMA Wed May 19, 06:33:00 pm  

बहुत गहरी बात होती है आपकी रचना में

adhuri baaten¤¤~~ Wed May 19, 06:54:00 pm  
This comment has been removed by the author.
adhuri baaten¤¤~~ Wed May 19, 06:54:00 pm  

bahut sahi kaha hai aapne, churi se jyada chot talakh jubaan kar jaati hai, behadd achchi rachna, mubarak ho...

दिगम्बर नासवा Wed May 19, 07:00:00 pm  

जब चोट गहती लाकती है तो शब्द कम नही आते .... बहुत दूर की बात सहज लिखी है ........

Arvind Mishra Wed May 19, 07:05:00 pm  

छोटी मगर सशक्त

अनामिका की सदायें ...... Wed May 19, 07:41:00 pm  

क्या कहूँ .......मौन ही बहतर है...

दिलीप Wed May 19, 07:44:00 pm  

sahi kaha kadva bolne se pehle sau baar sochna chahiye...

kshama Wed May 19, 07:57:00 pm  

Aapki rachna pe tippanee dene ke liye mere paas kabhi alfaaz nahi hote!

Anonymous Wed May 19, 08:29:00 pm  

"तल्ख़ जुबां की किरचें"
बहुत खूब

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' Wed May 19, 08:57:00 pm  

देखन में छोटे लगें घाव करें गम्भीर!

किरचें!

रश्मि प्रभा... Wed May 19, 09:48:00 pm  

zubaan kee talkhi taumra ke liye dansh ban jati hai

Tej Thu May 20, 02:50:00 am  

aandaje bayan khub hai.

Shah Nawaz Thu May 20, 09:01:00 am  

बहुत ही बढ़िया, यथार्थ के धरातल पर, एक बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति. इंसान को हमेशा ही तल्ख़ ज़ुबानी से बचना चाहिए और मधुर वाणी का प्रयोग करना चाहिए.

किसी ने सही कहा है कि अहम् को छोड़ कर मधुरता से सुवचन बोलें जाएँ तो जीवन का सच्चा सुख मिलता है। कभी अंहकार में, तो कभी क्रोध और आवेश में कटु वाणी बोल कर हम अपनी वाणी को तो दूषित करते ही हैं, सामने वाले को कष्ट पहुंचाकर अपने लिए पाप भी बटोरते हैं, जो कि हमें शक्तिहीन ही बनाते हैं।



इस विषय से मिलता-जुलता मेरा लेख: "मधुर वाणी का महत्त्व":
http://premras.blogspot.com/2010/03/blog-post_25.html

Deepak Shukla Thu May 20, 10:31:00 am  

नमस्कार दी ...
तल्ख़ जुबान से होते हैं जो,
जख्म कहाँ वो दीखते हैं...
दिल के वो नासूर हैं बनते...
जब तब अक्सर रिसते हैं...

दिल के घावों का मरहम न,
बना आज तक कोई भी ...
बस मीठी जुबान से भरते...
अगर बोलता कोई भी...

सुन्दर कविता...
दीपक शुक्ल...

रेखा श्रीवास्तव Thu May 20, 11:08:00 am  

तल्ख़ जुबान बन जाती किरचें

और ये किरचें ही यहाँ खून कि नदियाँ बहाने में सक्षम होती हैं.
इसी से तो महाभारत की लड़ाई उत्प्रेरित थी.
अगर इस जुबान से सिर्फ शहद ही टपके तो ये धरती स्वर्ग , जन्नत और हेवेन सब कुछ हो जाए.
काश ऐसा हो जाए.

सम्वेदना के स्वर Thu May 20, 11:16:00 am  

तल्ख़ जुबां की किरचें कानों में नहीं सीधा दिल में उतरती हैं और चीरती चली जाती है अंतर्मन को..
तभी तो ज़रूरी है कि
सत्यम ब्रूयात, प्रोयम ब्रूयात
न ब्रूयात सत्यमप्रियम.
बहुत अछि बात ..कम शब्दों में..

कविता रावत Thu May 20, 01:08:00 pm  

तल्ख़ जुबां की किरचें"
...सुन्दर अभिव्यक्ति!

rashmi ravija Thu May 20, 02:39:00 pm  

चुभ गयीं हैं किरचें

कुछ तल्ख़

जुबां की ,
गहरी अभिव्यक्ति

Dr. Zakir Ali Rajnish Thu May 20, 04:03:00 pm  

अनुभूति की इन्तेहा ही कहना इसे शायद ज्यादा सही रहेगा या फिर गागर में सागर।
--------
क्या हमें ब्लॉग संरक्षक की ज़रूरत है?
नारीवाद के विरोध में खाप पंचायतों का वैज्ञानिक अस्त्र।

अरुण चन्द्र रॉय Thu May 20, 04:42:00 pm  

शब्दों का


मरहम भी


अब बेअसर हो


मन को लहुलुहान


किये जाता है.. "
बहुत सारगर्भित क्षणिका ! इतनी छोटी कविता में शब्दों का नया प्रयोग कविता को जीवंत बना दिया

pallavi trivedi Thu May 20, 05:03:00 pm  

सही है...शब्दों की चुभन जिंदगी भर टीस देती है!

रंजना Thu May 20, 06:18:00 pm  

सही है....चाकू के घाव तो समय बीते भर भी जाते हैं,पर शब्दों के घाव जिंदगी भर दुःख देते रहते हैं...

संक्षिप्त कलेवर में बड़ी बात कह दी आपने....
बहुत ही सुन्दर रचना...

Anonymous Thu May 20, 09:46:00 pm  

bilkul hi satya kaha hai aapne....
achhe shabdon se rachna bahut hi achhi ban padi hai...
bahut bahut badhai...
-----------------------------------
mere blog par meri nayi kavita,
हाँ मुसलमान हूँ मैं.....
jaroor aayein...
aapki pratikriya ka intzaar rahega...
regards..
http://i555.blogspot.com/

mukti Thu May 20, 10:58:00 pm  

बहुत अच्छी लगी आपकी ये छोटी सी नज़्म !!! मेरा उत्साहवर्धन करने के लिए धन्यवाद !

KK Yadav Fri May 21, 09:24:00 am  

शब्दों का
मरहम भी
अब बेअसर हो
मन को लहुलुहान
किये जाता है..

...सुन्दर लिखा, पर अब कहाँ जाया जाय....सोचने पर मजबूर करती हैं ये पंक्तियाँ.
___________
'शब्द सृजन की ओर' पर आपका स्वागत है !!

Akanksha Yadav Fri May 21, 11:47:00 am  

बहुत बढ़िया लिखा आपने...सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई.
____________________________
'शब्द-शिखर' पर- ब्लागिंग का 'जलजला'..जरा सोचिये !!

सदा Fri May 21, 03:32:00 pm  

बहुत ही सुन्‍दर शब्‍द रचना, बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

Udan Tashtari Fri May 21, 04:13:00 pm  

प्यारी रचना!

Urmi Fri May 21, 09:56:00 pm  

बहुत ही सुन्दर और गहरे भाव के साथ लिखी हुई आपकी रचना प्रशंग्सनीय है!

Avinash Chandra Sat May 22, 08:21:00 pm  

waah.....waah... aur kya shabd kahun iske liye :)

sheetal Sun May 23, 11:16:00 am  

jubaa se nikle teer,
aatma ko kardete hai
lahuluhaan.
phir chahe koi lakh koshish
kare,
ghaav riste rehte hain.

योगेन्द्र मौदगिल Sun May 23, 05:09:00 pm  

अच्छी रचना... साधुवाद...

रचना दीक्षित Mon May 24, 01:31:00 pm  

शब्दों का
मरहम भी
अब बेअसर हो
मन को लहुलुहान
किये जाता है
बहुत गहरी बात कह दी आपने पर क्या करें अब तो dard jivan के saath ही jayegen

ज्योति सिंह Mon May 24, 01:52:00 pm  

sach hai kuchh ghav bhar bhi jaaye bhale magar daag nahi mitne dete apne .sundar

HBMedia Tue May 25, 08:16:00 pm  

वाह!साधुवाद...

रफ़्तार

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