कुछ विशेष नहीं है जो कुछ अपने बारे में बताऊँ...
मन के भावों को
कैसे सब तक पहुँचाऊँ
कुछ लिखूं या
फिर कुछ गाऊँ
।
चिंतन हो
जब किसी बात पर
और मन में
मंथन चलता हो
उन भावों को
लिख कर मैं
शब्दों में
तिरोहित कर जाऊं ।
सोच - विचारों की शक्ति
जब कुछ
उथल -पुथल सा
करती हो
उन भावों को
गढ़ कर मैं
अपनी बात
सुना जाऊँ
जो दिखता है
आस - पास
मन उससे
उद्वेलित होता है
उन भावों को
साक्ष्य रूप दे
मैं कविता सी
कह जाऊं.
बहुत ही बढ़िया, यथार्थ के धरातल पर, एक बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति. इंसान को हमेशा ही तल्ख़ ज़ुबानी से बचना चाहिए और मधुर वाणी का प्रयोग करना चाहिए.
किसी ने सही कहा है कि अहम् को छोड़ कर मधुरता से सुवचन बोलें जाएँ तो जीवन का सच्चा सुख मिलता है। कभी अंहकार में, तो कभी क्रोध और आवेश में कटु वाणी बोल कर हम अपनी वाणी को तो दूषित करते ही हैं, सामने वाले को कष्ट पहुंचाकर अपने लिए पाप भी बटोरते हैं, जो कि हमें शक्तिहीन ही बनाते हैं।
इस विषय से मिलता-जुलता मेरा लेख: "मधुर वाणी का महत्त्व": http://premras.blogspot.com/2010/03/blog-post_25.html
और ये किरचें ही यहाँ खून कि नदियाँ बहाने में सक्षम होती हैं. इसी से तो महाभारत की लड़ाई उत्प्रेरित थी. अगर इस जुबान से सिर्फ शहद ही टपके तो ये धरती स्वर्ग , जन्नत और हेवेन सब कुछ हो जाए. काश ऐसा हो जाए.
तल्ख़ जुबां की किरचें कानों में नहीं सीधा दिल में उतरती हैं और चीरती चली जाती है अंतर्मन को.. तभी तो ज़रूरी है कि सत्यम ब्रूयात, प्रोयम ब्रूयात न ब्रूयात सत्यमप्रियम. बहुत अछि बात ..कम शब्दों में..
bilkul hi satya kaha hai aapne.... achhe shabdon se rachna bahut hi achhi ban padi hai... bahut bahut badhai... ----------------------------------- mere blog par meri nayi kavita, हाँ मुसलमान हूँ मैं..... jaroor aayein... aapki pratikriya ka intzaar rahega... regards.. http://i555.blogspot.com/
47 comments:
सच कहा ..छुरी की चोट इतनी नहीं लगती जितनी तल्ख़ जुबान की ...बेहद संवेदनशील रचना
तल्ख़ जुबानी से हर किसी को बचना चाहिए /
mast nazm hai mumma..waise bhi kaha gaya hai ..
aisi bani boliye mann ka aapa khoy
auran ko sheetal kare aaphun sheetal hoy
सही है!
ज़ुबां की चोट सबसे पीड़ादायी होती है, ठीक वैसे ही जैसे इस कविता की तरह छोटी कविता का असर देर तक रहता है।
आपने एकदम सच लिखा है ... जुबान कड़वी हो तो चोट गहरी लगती है ...
वाह! क्या बात है, हर बार की तरह बेहतरीन!
नज़्म छोटी ज़रूर है लेकिन वज़नदार है.
सुंदर.
सही है!
ज़ुबां की चोट सबसे पीड़ादायी होती है
http://madhavrai.blogspot.com/
शब्द मरहम की बजाय चोट देने वाले बन गए!
वाह!
सुन्दर अभिव्यक्ति!
कुंवर जी,
चंद लफ्जों में ऊँची बात !
बहुत गहरी बात होती है आपकी रचना में
bahut sahi kaha hai aapne, churi se jyada chot talakh jubaan kar jaati hai, behadd achchi rachna, mubarak ho...
जब चोट गहती लाकती है तो शब्द कम नही आते .... बहुत दूर की बात सहज लिखी है ........
छोटी मगर सशक्त
क्या कहूँ .......मौन ही बहतर है...
sahi kaha kadva bolne se pehle sau baar sochna chahiye...
Aapki rachna pe tippanee dene ke liye mere paas kabhi alfaaz nahi hote!
"तल्ख़ जुबां की किरचें"
बहुत खूब
...लाजवाब !!
देखन में छोटे लगें घाव करें गम्भीर!
किरचें!
zubaan kee talkhi taumra ke liye dansh ban jati hai
aandaje bayan khub hai.
nice
बहुत ही बढ़िया, यथार्थ के धरातल पर, एक बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति. इंसान को हमेशा ही तल्ख़ ज़ुबानी से बचना चाहिए और मधुर वाणी का प्रयोग करना चाहिए.
किसी ने सही कहा है कि अहम् को छोड़ कर मधुरता से सुवचन बोलें जाएँ तो जीवन का सच्चा सुख मिलता है। कभी अंहकार में, तो कभी क्रोध और आवेश में कटु वाणी बोल कर हम अपनी वाणी को तो दूषित करते ही हैं, सामने वाले को कष्ट पहुंचाकर अपने लिए पाप भी बटोरते हैं, जो कि हमें शक्तिहीन ही बनाते हैं।
इस विषय से मिलता-जुलता मेरा लेख: "मधुर वाणी का महत्त्व":
http://premras.blogspot.com/2010/03/blog-post_25.html
नमस्कार दी ...
तल्ख़ जुबान से होते हैं जो,
जख्म कहाँ वो दीखते हैं...
दिल के वो नासूर हैं बनते...
जब तब अक्सर रिसते हैं...
दिल के घावों का मरहम न,
बना आज तक कोई भी ...
बस मीठी जुबान से भरते...
अगर बोलता कोई भी...
सुन्दर कविता...
दीपक शुक्ल...
तल्ख़ जुबान बन जाती किरचें
और ये किरचें ही यहाँ खून कि नदियाँ बहाने में सक्षम होती हैं.
इसी से तो महाभारत की लड़ाई उत्प्रेरित थी.
अगर इस जुबान से सिर्फ शहद ही टपके तो ये धरती स्वर्ग , जन्नत और हेवेन सब कुछ हो जाए.
काश ऐसा हो जाए.
तल्ख़ जुबां की किरचें कानों में नहीं सीधा दिल में उतरती हैं और चीरती चली जाती है अंतर्मन को..
तभी तो ज़रूरी है कि
सत्यम ब्रूयात, प्रोयम ब्रूयात
न ब्रूयात सत्यमप्रियम.
बहुत अछि बात ..कम शब्दों में..
तल्ख़ जुबां की किरचें"
...सुन्दर अभिव्यक्ति!
चुभ गयीं हैं किरचें
कुछ तल्ख़
जुबां की ,
गहरी अभिव्यक्ति
अनुभूति की इन्तेहा ही कहना इसे शायद ज्यादा सही रहेगा या फिर गागर में सागर।
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क्या हमें ब्लॉग संरक्षक की ज़रूरत है?
नारीवाद के विरोध में खाप पंचायतों का वैज्ञानिक अस्त्र।
शब्दों का
मरहम भी
अब बेअसर हो
मन को लहुलुहान
किये जाता है.. "
बहुत सारगर्भित क्षणिका ! इतनी छोटी कविता में शब्दों का नया प्रयोग कविता को जीवंत बना दिया
सही है...शब्दों की चुभन जिंदगी भर टीस देती है!
सही है....चाकू के घाव तो समय बीते भर भी जाते हैं,पर शब्दों के घाव जिंदगी भर दुःख देते रहते हैं...
संक्षिप्त कलेवर में बड़ी बात कह दी आपने....
बहुत ही सुन्दर रचना...
bilkul hi satya kaha hai aapne....
achhe shabdon se rachna bahut hi achhi ban padi hai...
bahut bahut badhai...
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mere blog par meri nayi kavita,
हाँ मुसलमान हूँ मैं.....
jaroor aayein...
aapki pratikriya ka intzaar rahega...
regards..
http://i555.blogspot.com/
बहुत अच्छी लगी आपकी ये छोटी सी नज़्म !!! मेरा उत्साहवर्धन करने के लिए धन्यवाद !
शब्दों का
मरहम भी
अब बेअसर हो
मन को लहुलुहान
किये जाता है..
...सुन्दर लिखा, पर अब कहाँ जाया जाय....सोचने पर मजबूर करती हैं ये पंक्तियाँ.
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'शब्द सृजन की ओर' पर आपका स्वागत है !!
बहुत बढ़िया लिखा आपने...सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई.
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'शब्द-शिखर' पर- ब्लागिंग का 'जलजला'..जरा सोचिये !!
बहुत ही सुन्दर शब्द रचना, बेहतरीन प्रस्तुति ।
प्यारी रचना!
बहुत ही सुन्दर और गहरे भाव के साथ लिखी हुई आपकी रचना प्रशंग्सनीय है!
waah.....waah... aur kya shabd kahun iske liye :)
jubaa se nikle teer,
aatma ko kardete hai
lahuluhaan.
phir chahe koi lakh koshish
kare,
ghaav riste rehte hain.
अच्छी रचना... साधुवाद...
शब्दों का
मरहम भी
अब बेअसर हो
मन को लहुलुहान
किये जाता है
बहुत गहरी बात कह दी आपने पर क्या करें अब तो dard jivan के saath ही jayegen
sach hai kuchh ghav bhar bhi jaaye bhale magar daag nahi mitne dete apne .sundar
वाह!साधुवाद...
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