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चमक

>> Friday, 15 January 2010



हथेलियों ने



सहला दिया था


आँखों को


और समेट लिए थे


सारे मोती


वापस आ गयी है


आँखों में


फिर से वो चमक


जिसकी रोशनी में


तुम नहाया करते थे

5 comments:

shikha varshney Fri Jan 15, 03:37:00 pm  

ओये तेरी................ क्या वाकई.? कितने गहरे भाव समेटे हैं ये चाँद पंक्तियाँ...बहुत सुंदर.

मनोज कुमार Fri Jan 15, 11:39:00 pm  

वाह. बहूत खूबसूरत .

अनामिका की सदायें ...... Sun Jan 17, 08:14:00 pm  

hatheliyo se sehla kar ankho k sare moti samaitne ka shabdo ka prayog bahut acchha aur naya laga.

रचना दीक्षित Mon Jan 18, 03:48:00 pm  

हथेलियों ने
सहला दिया था
आँखों को
और समेट लिए थे
सारे मोती
हथेलियों ने
वाह !!!!! क्या क्या कह दिया.

रफ़्तार

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