कुछ विशेष नहीं है जो कुछ अपने बारे में बताऊँ...
मन के भावों को
कैसे सब तक पहुँचाऊँ
कुछ लिखूं या
फिर कुछ गाऊँ
।
चिंतन हो
जब किसी बात पर
और मन में
मंथन चलता हो
उन भावों को
लिख कर मैं
शब्दों में
तिरोहित कर जाऊं ।
सोच - विचारों की शक्ति
जब कुछ
उथल -पुथल सा
करती हो
उन भावों को
गढ़ कर मैं
अपनी बात
सुना जाऊँ
जो दिखता है
आस - पास
मन उससे
उद्वेलित होता है
उन भावों को
साक्ष्य रूप दे
मैं कविता सी
कह जाऊं.
7 comments:
kya baat hai vahi to karte hain ham..jane kab se tabhi to jinda hain ..wah wah.
क्या बात है..सागर में गागर भर दिया आपने तो....बहुत ही अच्छी अभिव्यक्ति
kya baat hai ?
एक दम सही बात. सच में कागज़ पर उतारे शब्द कई बार लोरी का ही काम करते है.
Gagar me sagar bhar layi hain aap.Shubkamnayen.
बहुत ही सुन्दर शब्द ।
वाह...वाह...बहुत खूब...अच्छी रचना...
नीरज
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