कुछ विशेष नहीं है जो कुछ अपने बारे में बताऊँ...
मन के भावों को
कैसे सब तक पहुँचाऊँ
कुछ लिखूं या
फिर कुछ गाऊँ
।
चिंतन हो
जब किसी बात पर
और मन में
मंथन चलता हो
उन भावों को
लिख कर मैं
शब्दों में
तिरोहित कर जाऊं ।
सोच - विचारों की शक्ति
जब कुछ
उथल -पुथल सा
करती हो
उन भावों को
गढ़ कर मैं
अपनी बात
सुना जाऊँ
जो दिखता है
आस - पास
मन उससे
उद्वेलित होता है
उन भावों को
साक्ष्य रूप दे
मैं कविता सी
कह जाऊं.
7 comments:
yahi hota hai ..isliye kehte hain kholni hi nahi chahiye yaadon ki potli...
...ye to hona hee tha.............:)
वैचारिक ताजगी लिए हुए रचना विलक्षण है।
और नींद आँखों से
कोसों दूर हो गयी.
ऐसा होता रहता है.
क्षणिका खूब कही आपने.
बहुत खूब ये यादों की पोतली सोने कब देती है। सुन्दर रचना बधाई
arey mujhe ye pic dekh kar to do bate dimag me aa rahi hai..ek to ye potli ya to sudama ki hai.. jisme chawal the krishn k liye
dusra ya ye potli paiso se bhari aapki he jise me utha k bhaag jau aisa dil kar raha hai.
ab apke motiyo par...
yado ki potli
sirhane na rakho
dil se laga lo
pyar ka pani do
aur rishto ko
khushiyo se bhar do.
varnaaaaaaaaaaaaaaa neend to aa hi nahi payegi...ha.ha.ha.
आपको और आपके परिवार को वसंत पंचमी और सरस्वती पूजन की हार्दिक शुभकामनायें!
बहुत ही सुन्दर रचना लिखा है आपने!
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