अश्क
>> Thursday, 16 October 2008
पलकों पे जो ये अश्क चले आते हैं,
ये कितने बेदर्द हो कर चले आते हैं,
जब छोड़ देता है साथ ज़माना मेरा
तो ये भी मेरा साथ छोड़ कर चले आते हैं।
खलिश होती है तो यूँ ही बयां होती है , हर शेर जैसे सीप से निकला हुआ मोती है
पलकों पे जो ये अश्क चले आते हैं,
ये कितने बेदर्द हो कर चले आते हैं,
जब छोड़ देता है साथ ज़माना मेरा
तो ये भी मेरा साथ छोड़ कर चले आते हैं।
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1 comments:
पलकों पे जो ये अश्क चले आते हैं,
ये कितने बेदर्द हो कर चले आते हैं,
जब छोड़ देता है साथ ज़माना मेरा
तो ये भी मेरा साथ छोड़ कर चले आते हैं।
in ashko ko palko per aane na dena..
kasam hai tumhe u vyakul na hona.
kahin koi tumhe jb saath na mile..
to mere paas aa ker mehfooz sona..
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