प्याले गम -ऐ -दर्द के
>> Thursday, 16 October 2008
जब तन्हाई होती है तो ख़ुद से मिला करते हैं
किसी की ज़रूरत नही होती ख़ुद से बात किया करते हैं
ज़िन्दगी बन जाए रेगिस्तान तो फिर पानी की चाह भी क्यों हो ?
छलकाते नही गम-ऐ - दर्द के प्याले बस हम उन्हें पी लिया करते हैं।
2 comments:
mujh se baat karo
mujhe hi apni tanhayi bana lo
paani b me ban jau..
registaan b mujhe akhtiyaar karo..
apne gam-e-dard ko
aao jara mujh me chhalka do..
pina he to sharaab-e-pyar piyo..
khud ko ab u na halkaan karo..!!
तन्हाई नहीं मिलती रिस्तो की भीड़ में,
आह कहा होती है किसी भरी महफ़िल में,
दर्द के पैमानों को नहीं छलकते देखा,
सुक़ून इश्क ना मिला उस सितमगर संगदिल में ।
आशुतोष
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