तबाहियां
>> Thursday, 16 October 2008
मेरी ज़िन्दगी की तबाहियां मत देख मेरे दोस्त,
कि चिराग गुल कर दो कुछ ऐसी मेरी ज़िन्दगी है,
कितना करोगे रोशन मेरे अंधेरे सायों को
,कि हर लौ मेरी अब बुझ चली है...........
खलिश होती है तो यूँ ही बयां होती है , हर शेर जैसे सीप से निकला हुआ मोती है
मेरी ज़िन्दगी की तबाहियां मत देख मेरे दोस्त,
कि चिराग गुल कर दो कुछ ऐसी मेरी ज़िन्दगी है,
कितना करोगे रोशन मेरे अंधेरे सायों को
,कि हर लौ मेरी अब बुझ चली है...........
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1 comments:
मेरी ज़िन्दगी की तबाहियां मत देख मेरे दोस्त,
कि चिराग गुल कर दो कुछ ऐसी मेरी ज़िन्दगी है,
कितना करोगे रोशन मेरे अंधेरे सायों को
,कि हर लौ मेरी अब बुझ चली है...........
lau bujhne se pehle bas ek kaam karna..
apne dil per kisi ek ka naam likhna..
jitni bhi tabahiya mili tujhe zindgi me..
us ham-dam k sath baant lena..
baantne se kuch bhi na milega tujhe, ye wazib hai..
aankho k aansu ponchh dega kya ye bhi kuchh kam hai..
sukoon mil jayega tujhe is duniya se rukhsat hone se pehle..
roshni bikher dega tujhme tera ye sakoon, ye kya kisi inayet se kam hai..!!
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