ज़रूरत
>> Friday, 17 October 2008
जब मैंने कहा था कि मुझे तेरी ज़रूरत नही,
न ही तेरी आरजू है और तेरी चाहत भी नही ,
तेरे अश्कों की कतारों ने मुझे यूँ भिगो डाला ,
आज तू मेरी ज़रूरत है पर तू मेरे साथ नही।
खलिश होती है तो यूँ ही बयां होती है , हर शेर जैसे सीप से निकला हुआ मोती है
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6 comments:
जब मैंने कहा था कि मुझे तेरी ज़रूरत नही,
न ही तेरी आरजू है और तेरी चाहत भी नही ,
तेरे अश्कों की कतारों ने मुझे यूँ भिगो डाला ,
आज तू मेरी ज़रूरत है पर तू मेरे साथ नही।
jarurat kabhi batayi nahi jati..
aarzoo ya chaahat bhi chhupayi nahi jati..
mana mere ashko ne tujhe bhigoya hai..
mana mere duri ne tujhe toda hai...
magar har lamha maine tujhi ko pyar kiya hai..
har lamha maine tere hi bas tera hi sath manga hai...!!
sangeeta ji in shero ko anyetha na le pls. bas jawaab maatr hai..
कल 14/11/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
सब समय का ही तो खेल है!
सुंदर पंक्तियाँ!
वाह! सुन्दर...
सादर...
bahut sahee kahaa aapane .. aksar esa hota hai , magar samay gujar jaane k baad ham bas yahee sochate rah jaate hai aur hamaari yaadon mai aa kar wo hamase kahate hai ki ......
याद करो जब हमने तुमको
रो रो करके पुकारा था
बेबस और लाचार से थे हम
और वो वक्त तुम्हारा था
आज समय ने फिर से देखो
अपनी करवट बदली है
बुला रहे तुम रो कर हमको
और हमने नजरें फेरी है
na jane kyu
hamesha hi aisa hota hai
jab sab hote hain tab tu bhi hota hai
par jab koi nahi
tab tu bhi nahi hota...
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