ज़ख्म
>> Thursday, 16 October 2008
वक्त ने बेरहमी से ज़ुल्म ढाया है
फिर भी हमने अपना प्यार निभाया है
तंज़ नही दे रहे है हम किसी को
दिल के हाथों ये ज़ख्म मैंने खाया है
.
खलिश होती है तो यूँ ही बयां होती है , हर शेर जैसे सीप से निकला हुआ मोती है
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1 comments:
aa jaan tere jakhmo ko hawa du..
waqt ki berehmi ko me ye saza ju..
jisne tera aaj nazuk dil dukhaya he..
usko main bad-dua bechainiyo ki de du..
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