ताउम्र
>> Friday, 17 October 2008
बूंद - बूंद अश्कों को हम पीते रहे ,
जुबान पे तेरा नाम ले कर जीते रहे ,
गुज़र गया हर लम्हा बस तेरी उम्मीद पे ,
मिला जो ज़ख्म उसे ताउम्र बस सीते रहे।
खलिश होती है तो यूँ ही बयां होती है , हर शेर जैसे सीप से निकला हुआ मोती है
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2 comments:
बूंद - बूंद अश्कों को हम पीते रहे ,
जुबान पे तेरा नाम ले कर जीते रहे ,
गुज़र गया हर लम्हा बस तेरी उम्मीद पे ,
मिला जो ज़ख्म उसे ताउम्र बस सीते रहे।
boond boond ashko ki pite ho kyu..
hamse door rehne ki zid karte ho kyu??
har lamhe per jb likh hi diya hai mera naam..
to mil kar sare jakhm nahi site ho kyu??
wow nice one....senti ho gayi main to...mumma m proud of u..aap itna achcha likhti ho ...i hope kabhi main bhi aisa kuch likh paaun :(
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