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कुनकुनी धूप

>> Sunday, 25 December 2011


 



धूप जो निकली है 
कुनकुनी सी 
मन होता है कि  
घूंट घूंट पी लूँ  
तृप्त हो जाऊं 
तो फिर मैं 
झंझावातों की 
आंधियां भी जी लूँ .


तपिश

>> Sunday, 4 December 2011





मैं 
समंदर के साहिल पर 
भीगी रेत सी 
ज़रा सी कोशिश से  
बन जाती हूँ 
एक घरौंदा 
और फिर 
न जाने कौन सी  
तपिश से 
यूँ ही 
बिखर जाती हूँ 


वक्त की आँधी

>> Thursday, 17 November 2011





मरुस्थल सी 
ज़िंदगी में 
छाई थी 
घटा कुछ देर 
और खिल गए थे  
चाहत के कुछ फ़ूल ,
वक्त की आँधी
उड़ा ले चली 
उन बादलों को
और अब फ़ूल 
मुरझा गए हैं 
नमी की कमी से 

नमकीन खीर

>> Monday, 31 October 2011



मेरे 
ज़ख्मों पर 
छिडकते  हो 
जब भी नमक ,
तो 
खाने  में 
झर जाता है 
नमक सारा
और 
नमकीन हो जाती है 
खीर भी .



आंसू और बारिश

>> Friday, 21 October 2011




मिलते होंगे 
लोगों को 
न जाने 
कितने कंधे 
रोने के लिए ,
मुझे तो 
बारिश से 
मुहब्बत है 
जो निभाती  है 
हर बार 
मेरा साथ .



रेतीले ख्वाब

>> Friday, 23 September 2011


Seashore : sea seaside to spain.

ख्यालों के समंदर से 
निकली एक लहर 
भिगो देती है 
मेरे ज़िंदगी के साहिल को 
और मैं 
नम हुयी रेत से 
बनाती हूँ 
ख़्वाबों के घरौंदे                                                              
जिन्हें 
हकीकती आफताब 
सुखा देता है आकर 
और वो फिर 
बिखर जाते हैं 
सूखी रेत से ....


उदासी के जाले

>> Sunday, 28 August 2011




वक्त के हाथों 
पड़ गए थे 
आँखों में 
उदासी के जाले
आज उन्हें 
धो - धो कर 
निकाला है, 
चेहरे  की 
नमी को 
हकीकत की 
गर्मी से 
सुखाया है .

अजनबी ...

>> Tuesday, 9 August 2011




तल्ख़ जुबां 
करती है असर 
जब होता है 
अपनापन 
कहीं न कहीं 
जब हो गए 
अजनबी 
तो सच ही 
तल्खी जाती रही ..

चटख धूप

>> Tuesday, 2 August 2011




यादों की चादर में 
समेट लायी हूँ 
खुशियों की 
चटख धूप 
गम के 
बादलों की ओट से 
उग आया है 
एक सतरंगी 


केसरिया चावल

>> Saturday, 9 July 2011


सोचा था 
मन की  हांड़ी में 
ज़िंदगी का केसरिया 
चावल पकाऊँगी  खास 
पर न केसरिया 
प्रेम मिला 
और न ही 
भावनाओं की मिठास .

चवन्नियां ख्यालों की

>> Friday, 1 July 2011

    


पोटली में बंधी चवन्नियां 
खनखनाती  हैं ज्यों 
ख्याल भी मेरे मन में 
कुछ इसी तरह बजते हैं 
रही नहीं कीमत 
जैसे अब  उनकी 
मेरे ख्याल  भी 
धराशायी  हो गए हैं ..



दंश ..

>> Tuesday, 24 May 2011




जब  भी 
मन के 
चूल्हे पर 
मैंने 
ख़्वाबों क़ी
रोटी  सेकी
तेरे 
दंश भरे 
अंगारों ने 
उसे जला डाला ...


हरसिंगार से ख्वाब

>> Tuesday, 10 May 2011



हरसिंगार से 

मेरे ख्वाब 

महकते रहे 

सारी रात 

पर सुबह  के 

सूरज ने आ 

उन्हें मिट्टी में 

मिला दिया 

समंदर रेत का

>> Wednesday, 13 April 2011


पलकों को 
निचोड़ कर 
जब मैंने 
खोलीं थीं 
आँखें 
रेत का 
समंदर उनमें 
नज़र आया था 


तेरे होने का एहसास

>> Wednesday, 6 April 2011






निशा का 
अंतिम प्रहर हो 
अम्बर मेघ से 
आच्छादित 
मेरे मन की 
धरती पर 
छाई हो 
गहन धुंध 
ऐसे में -
मात्र तेरे 
होने का एहसास 
सूरज की 
किरण बन 
भर देता है 
मेरे मन में उजास ..


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हसरत ...

>> Sunday, 27 March 2011




एक वक्त था 
कि 
छाये रहते थे 
मेघ नेह के 
इन आँखों में , 
आज 
पसर गया है 
एक रेगिस्तान 
और 
तरस गयीं हैं 
ये आँखें 
एक बूँद 
नमी के लिए .

पलाश

>> Friday, 18 March 2011




पलक पर जमी 
शबनम की बूंद को 
तर्जनी पर ले कर 
जैसे ही तुमने चूमा 
मेरी आँखों में 
न जाने कितने 
पलाश खिल गए ....


बाढ़ का कहर

>> Sunday, 13 March 2011






सजा तो लिए थे 

मैंने पलकों पर 

फिर से 

मना कर 

रूठे हुए ख्वाब 


पर आज 

इतनी बारिश हुयी 

कि सारे ख्वाब 

बाढ़ में बह गए .......


.

नीलकंठ

>> Sunday, 23 January 2011


संवादों का आज 
मंथन कर लिया 
उसमें से निकला 
हलाहल पी लिया .
तुमने नीलकंठ तो  देखा है न ? 
अब मुझे लोग नील कंठ कहते हैं .



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