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मुखरित मौन ...

>> Saturday, 30 October 2010




भाषा हो 

मौन की ,

एहसास हों 

ज़िंदगी के 

व्यवहार में थोड़ी 

गहराई लाइए 

भावनाएं हो जाएँ 

न कहीं दूषित 

इसलिए मुझे 

शब्द नहीं चाहिए .





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सूखे फूल और बहार

>> Tuesday, 12 October 2010



यादों के सूखे  फूल   

आज भी 

महका रहे हैं 

मेरी ज़िंदगी  की 

किताब को

इस महक से 

ज़िंदगी में 

आज भी 

बहार है |


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