समंदर रेत का
>> Wednesday, 13 April 2011
पलकों को
निचोड़ कर
जब मैंने
खोलीं थीं
आँखें
रेत का
समंदर उनमें
नज़र आया था
खलिश होती है तो यूँ ही बयां होती है , हर शेर जैसे सीप से निकला हुआ मोती है
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