कुनकुनी धूप
>> Sunday, 25 December 2011
धूप जो निकली है
कुनकुनी सी
मन होता है कि
घूंट घूंट पी लूँ
तृप्त हो जाऊं
तो फिर मैं
झंझावातों की
आंधियां भी जी लूँ .
खलिश होती है तो यूँ ही बयां होती है , हर शेर जैसे सीप से निकला हुआ मोती है
© Free Blogger Templates Wild Birds by Ourblogtemplates.com 2008
Back to TOP