पतझर / हाइकु
>> Thursday, 27 September 2012
झरते पत्ते
देते यह संदेश
जाना तो है ही ।
ये मेरा मन
झर झर जाता है
पीले पत्तों सा ।
ऋतु दबंग
हर लेती है पत्ते
सूनी शाखाएँ ।
पत्रविहीन
कर रहा प्रतीक्षा
नए पत्तों की ।
उदास मन
टूटता है नि:शब्द
पतझर सा ।
बेखौफ पत्ते
छोड़ गए शाखाएँ
पल्लव आयें
सूखे जो पत्ते
टपक ही तो गए
शाख से नीचे ।
पतझर में
पीली हुयी धरती
ज़र्द पत्तों सी ।