दंश ..
>> Tuesday, 24 May 2011
जब भी
मन के
चूल्हे पर
मैंने
ख़्वाबों क़ी
रोटी सेकी
तेरे
दंश भरे
अंगारों ने
उसे जला डाला ...
खलिश होती है तो यूँ ही बयां होती है , हर शेर जैसे सीप से निकला हुआ मोती है
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