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और - बसन्त मुरझा गया

>> Friday, 26 February 2021



सर ए राह 

मुड़ गए थे कदम 
पुराने गलियारों में 
अचानक ही 
मिल गयीं थीं 
पुरानी उदासियाँ 
पूछा उन्होंने 
कैसी हो ? क्या हाल है ? 
मुस्कुरा कर 
कहा मैंने 
मस्तम - मस्त 
बसन्त छाया है ।
सुनते ही इतना 
जमा लिया कब्ज़ा 
उन्होंने मेरे ऊपर 
और -
बसन्त मुरझा गया । 





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मन पलाश

>> Saturday, 20 February 2021

 


बदला तो नहीं
कुछ भी ऐसा 
फिर - 
क्यों हो रहा 
भला ये बसन्त ? 
बस मैंने
भरे घट से 
उलीच दिए थे
दो अंजुर भर 
कसैले शब्द ,
और मन 
पलाश  हो गया ।




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बासंती मन

>> Wednesday, 10 February 2021



बड़े जतन से 
छिपा रखी थी 
एक पोटली 
मन के किसी कोने में 
खोल दी आज 
गिरह लबों की 
खुलते ही गाँठ 
सारे शिकवे -  शिकायतें 
चाहे -  अनचाहे 
ख्वाब और ख्वाहिशें 
बिखर गए सामने ।
उठा कर नज़र से
एक एक को
समेट ही तो लिया 
तुमने बड़े करीने से ,
बस - 
मन  बासन्ती हो गया   ।

संगीता स्वरुप 
10 - 02- 21

 

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