रेतीले ख्वाब
>> Friday, 23 September 2011

ख्यालों के समंदर से
निकली एक लहर
भिगो देती है
मेरे ज़िंदगी के साहिल को
और मैं
नम हुयी रेत से
बनाती हूँ
ख़्वाबों के घरौंदे
जिन्हें
हकीकती आफताब
सुखा देता है आकर
और वो फिर
बिखर जाते हैं
सूखी रेत से ....




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