मन समंदर
>> Thursday, 24 May 2012
लहरें तो आती जाती हैं
दुख सुख का भी हाल यही
फिर हम इतना क्यों सोचें
बस मन समंदर करना है ,
मोती सीपों में मिल जाते
पर गोता खुद लगाना है
श्रम से फिर क्यों भागें हम
बस तन अर्पण करना है
पैसा तो आना जाना है
इसके पीछे हैं पागल लोग
क्यों हम पागल हो जाएँ
बस मन मंदिर करना है ।



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