बरगद !!!!
>> Saturday, 8 May 2021
ज़िन्दगी की धूप में
छाँव की तलाश में
और
बरगद
अपनी बाहें फैलाये
रह जाता है
एक जगह
ठिठका सा .
रंगरेज़
>> Friday, 23 April 2021
इश्क़ तो
खुद है रंगरेज़
रंग देता
मन को
जैसे हो केसर ,
रे मन !
कभी तो
इस रंग के
समंदर में उतर ।
ख्वाहिश ....
>> Wednesday, 31 March 2021
ख्वाहिश थी मेरी कि
कभी मेरे लिए
तेरी आँख से
एक कतरा निकले
भीग जाऊँ मैं
इस कदर उसमें
कि समंदर भी
कम गहरा निकले ।
इतिहास या इति का हास .
>> Sunday, 14 March 2021
जब जब
मैंने इतिहास के
पन्ने पढ़े हैं ,
तब तब
हर खंडहर की नींव में
मुझे गड़े मुर्दे मिले हैं ,
नींव पर पड़ते ही
किसी कुदाल का प्रहार ,
बिलबिला जाते हैं
अक्सर इतिहासकार ।
असल में
होता है जितना
पुराना इतिहास ,
बढ़ती जाती है
मुर्दों की संख्या ,
क्यों कि जान चुके है
वो कि
वो मौन हैं तो
ज़िंदा हैं ,
ज़िंदा रहने के लिए
मुर्दा होना ज़रूरी है
लम्बे इतिहासों में
अपने हिसाब से ,
बदल दिया जाता है
अक्सर इतिहास ,
नई पीढ़ी से इस तरह
किया जाता है परिहास ।
फिर भले ही चाहे वो
चार हज़ार दिन का हो ,
या हो चार हज़ार साल का
किसी को नहीं होता
मलाल इस बात का ,
चकित सी जनता
समझ नहीं पाती
इतिहास का सच ,
मान लेती है उसे सही
दिखता है सामने जो बस ।
तो फिर क्यों भला
उखाड़े जाएँ मुर्दे
जो गड़े हुए हैं
हम ज़िंदा भी तो
मुर्दों जैसे पड़े हुए हैं ।
ऐ ज़िन्दगी बता !
>> Wednesday, 3 March 2021
दरक गया है
इस कदर दिल
कि ऐ ज़िन्दगी
बता कैसे मैं
तेरा ऐतबार करूँ ?
अपनी ही सोचों में
गुम है मन मेरा
तो भला बता कि
मैं कैसे तुझसे
प्यार करूँ ?
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और - बसन्त मुरझा गया
>> Friday, 26 February 2021
सर ए राह
मुड़ गए थे कदम
पुराने गलियारों में
अचानक ही
मिल गयीं थीं
पुरानी उदासियाँ
पूछा उन्होंने
कैसी हो ? क्या हाल है ?
मुस्कुरा कर
कहा मैंने
मस्तम - मस्त
बसन्त छाया है ।
सुनते ही इतना
जमा लिया कब्ज़ा
उन्होंने मेरे ऊपर
और -
बसन्त मुरझा गया ।
बासंती मन
>> Wednesday, 10 February 2021
बड़े जतन से
छिपा रखी थी
एक पोटली
मन के किसी कोने में
खोल दी आज
गिरह लबों की
खुलते ही गाँठ
सारे शिकवे - शिकायतें
चाहे - अनचाहे
ख्वाब और ख्वाहिशें
बिखर गए सामने ।
उठा कर नज़र से
एक एक को
समेट ही तो लिया
तुमने बड़े करीने से ,
बस -
मन बासन्ती हो गया ।
संगीता स्वरुप
10 - 02- 21
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