दोस्ती की नींव पर ....... हाइकु रचनाएँ
>> Thursday, 21 June 2012
| तुम्हारे बोल झुलसा ही तो गए मन आँगन |
| रोने वालों को मिल जाते हैं कंधे तभी रोते हैं |
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| मन के छाले रिसते रहे यूं ही नासूर हुये |
| आँखों की सुर्खी झरते रहे आँसू खुश्क हुयी मैं |
| धुआँ है उठा सुलगता है मन राख़ हुयी मैं |
| इंतज़ार क्यों ? तोड़ा है विश्वास हतप्रभ मैं |
| तुम्हारी राहें अलग थलग थीं सो ,मैं भटकी |
| दुश्मनी कहाँ ? दोस्ती की नींव पर गहरा घाव |



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