ख्वाहिश ....
>> Wednesday, 31 March 2021
ख्वाहिश थी मेरी कि
कभी मेरे लिए
तेरी आँख से
एक कतरा निकले
भीग जाऊँ मैं
इस कदर उसमें
कि समंदर भी
कम गहरा निकले ।
खलिश होती है तो यूँ ही बयां होती है , हर शेर जैसे सीप से निकला हुआ मोती है
ख्वाहिश थी मेरी कि
दरक गया है
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