हसरत ...
>> Sunday, 27 March 2011
एक वक्त था
कि
छाये रहते थे
मेघ नेह के
इन आँखों में ,
आज
पसर गया है
एक रेगिस्तान
और
तरस गयीं हैं
ये आँखें
एक बूँद
नमी के लिए .
खलिश होती है तो यूँ ही बयां होती है , हर शेर जैसे सीप से निकला हुआ मोती है
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