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कताई

>> Friday, 31 December 2010



ख़्वाबों की पुनिया को 
आँखों की तकली से
काता  है शिद्दत से 
सारी ज़िंदगी मैंने 
कभी तो मन माफिक 
सूत  मिले , 
आज भी कातना
बदस्तूर जारी है ... 



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निर्मल धारा

>> Wednesday, 22 December 2010


मन की अगन को
बढा देती हैं
काम , क्रोध,
मोह , लोभ
की आहुतियाँ .

बढ़ाना है
गर इसको
तो
बहानी होगी
प्रेम की निर्मल धारा .


बढाने के दो अर्थ हैं --
१--- अधिक करना
२-- बुझाना

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सिहरन .....

>> Tuesday, 14 December 2010

रूखसार पर ढुलका 
पलक का इक बाल 
चुटकी से पकड़ 
रख दिया था 
तुमने मेरी 
उल्टी बंद 
मुट्ठी पर 
और कहा था कि
मांग लो 
जो मांगना है ,
बस यह पल 
यहीं ठहर जाए 
यही ख़याल आया था .
और फिर तुमने 
अपनी फूंक से 
उड़ा दिया था उसे .
आज भी मेरी 
मुट्ठी पर 
तेरी फूंक की सिहरन 
चस्पां  है ..





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धुंधली लकीरें ...

>> Monday, 6 December 2010




लोग कहते हैं कि 

हथेली की लकीरों में 
किस्मत लिखी होती है . 
मेरी किस्मत भी 
स्याह स्याही से लिखी थी . 
फिर भी लकीरें 
धुंधली हो गयीं . 
और अब 
मेरी किस्मत 
कोई पढ़ नही पाता . 
धुंधली होती लकीरें 
एक जलन का 
एहसास कराती हैं 
और मुझे 
तन्हाई में ले जाती हैं 
जहाँ मैं खुद ही , 
खुद को नही पढ़ पाती हूँ. 



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सिर्फ एक गुज़ारिश .....

>> Wednesday, 24 November 2010




तेरी बातों की

रुखाई ने 
ला दी थी नमी 
मेरी आँखों में 
और तुमने 
बो दिए थे बीज 
कुछ उदासी के ,
अब  अंकुरित हो 
सज गए हैं वो 
खामोशी के पत्तों से .

आज जब 
बन गया है वो 
विशाल  वृक्ष 
और आ गया है 
दोनों की 
राह के बीच ,
तो चाहते हो कि
काट डाला जाये इसे .

बस एक 
गुज़ारिश है तुमसे 
कम से कम 
अब तो पर्यावरण का 
लिहाज करो ..



.

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लबों की गाँठ ....

>> Thursday, 18 November 2010

मेज़ पर 
बिखरी पड़ी 
हमारी बातो को 
सहेज कर 
रख दिया  था 
तुमने 
और चाहा था कि 
मैं   कर दूँ 
सारे लफ़्ज़ों को 
फिर से बेतरतीब
गिरह खोल कर .
अपने लबों की,
पर  
बांच ली हैं 

मैंने 
सारी तहरीरें 
तेरी आँखों में ही .  
लफ़्ज़ों  को 
बेतरतीब 
करने के लिए
लबों की गाँठ 
खोलना ज़रूरी नहीं  


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बरस ही गए बादल

>> Thursday, 11 November 2010





बादल....और आसमां    से  आगे की कड़ी .....





सबने कहा था कि-
बादल बरस ही जायेंगे 
देर - सबेर, 

कल हुयी थी 
बारिश  मूसलाधार, 

आज हल्की सी 
धूप निखर आई है, 

बस ज़रा आँखों में 
सुर्खी उतर आई है ...


.

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बादल ....और ..आसमां

>> Wednesday, 10 November 2010





उदासी के बादल 
छा गए हैं 
मेरे ज़िंदगी के 
फ़लक पर 
अब कुछ 
बरसें 
तो उजला 
आसमां  हो ...


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मुखरित मौन ...

>> Saturday, 30 October 2010




भाषा हो 

मौन की ,

एहसास हों 

ज़िंदगी के 

व्यवहार में थोड़ी 

गहराई लाइए 

भावनाएं हो जाएँ 

न कहीं दूषित 

इसलिए मुझे 

शब्द नहीं चाहिए .





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सूखे फूल और बहार

>> Tuesday, 12 October 2010



यादों के सूखे  फूल   

आज भी 

महका रहे हैं 

मेरी ज़िंदगी  की 

किताब को

इस महक से 

ज़िंदगी में 

आज भी 

बहार है |


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विश्वास की ईंट

>> Thursday, 30 September 2010




झूठ की एक 

नन्हीं सी फांस 

उखाड़ देती है 

विश्वास की 

जमी हुई नींव को 

फिर कितना ही 

सच का गारा 

लगाओ 

जम नहीं पाती 

एक भी ईंट 

विश्वास की ...

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राख बनती ख्वाहिशें

>> Tuesday, 21 September 2010






कहा था यूँ 

कि 

अब जँचती हैं..

तुम्हारी..

कजरारी आँखें 

पर सच 

काली  नहीं हैं 

मेरी आँखें  ,

बस    

राख बन गयी हैं 

कुछ ख्वाहिशें ...





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दीपक तले अँधेरा ..

>> Monday, 13 September 2010




ज़िंदगी के चाक पर 

भावनाओं की मिट्टी गूँथ 

छोटी छोटी ख्वाहिशों के 

दिए बना 

चढा दिया था 

यथार्थ के ताप पर 

जिम्मेदारियों के 

तेल में भिगो

अरमानो की बाती  

जला दी थी  

आज उजाला है चारों ओर 

बस है तो 

दीपक तले अँधेरा ....



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खामोशियाँ ..

>> Monday, 6 September 2010





खामोशियाँ 

ठहर गयीं हैं 

आज 

आ कर 

मेरे लबों पर 

खानाबदोशी की 

ज़िंदगी शायद 

उन्हें 

रास नहीं आई 



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घुलते अलफ़ाज़

>> Monday, 30 August 2010



खत पढ़ कर 

आँखों से 

आँसू बहते रहे 

और  

सारे अलफ़ाज़ 

जैसे  

अश्कों में 

घुलते रहे ....





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उदासी के जाले

>> Saturday, 28 August 2010




वक्त के हाथों 
पड़ गए थे 
आँखों में 
उदासी के जाले
आज उन्हें 
धो - धो कर 
निकाला है 
चेहरे  की 
नमी को 
हकीकत की 
गर्मी से 
सुखाया है .

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सीला - सीला सा

>> Monday, 23 August 2010

सहेज लिए 

मैंने 

तेरे आंसू 

सारे के सारे 

अपनी कमीज़ की

जेब में 

अब 

हर पल 

मेरा दिल 

सीला - सीला सा 

रहता है ...


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गम के घुंघरू

>> Thursday, 19 August 2010




इश्क के पैरों में
ना जाने क्यों 
गम के घुंघरू 
बंध जाते हैं 
आँखों में 
हंसी भी हो 
तो भी रुखसार पर 
अश्क के मोती 
टपक जाते हैं 
  
  
  
 

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भीगी खामोशी

>> Tuesday, 10 August 2010




खामोशियों  की 

पैरहन को 

आँखों की 

बारिश ने 

भिगो दिया है 

इतना कि

चिपक कर 

रह गयी है 

जेहन से 

इसे उतारने की

कोशिश भी 

नाकाम हो चली है ..









.

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